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Monday 27 August 2018

आश्चर्यजनक पत्र..



आश्चर्यजनक पत्र..

                अकबर-बीरबल का एक रोचक किस्सा याद आया !! इसे केवल किस्से तक सीमित न रखियेगा. प्रस्तुतीकरण के मंतव्य पर विवेकानुसार अभिमत दीजिएगा।
सुखदेव सिंह ईरान यात्रा से लौटे तो दरबार में बादशाह अकबर ने उनकी यात्रा के बारे में पूछा. सुखदेव सिंह बोले, हुज़ूर ! आपके लिए शाहे ईरान ने सलाम कहा है वे बीरबल को भी याद कर रहे थे साथ ही बीरबल को शाही अतिथि के रूप में ईरान आने का न्यौता भी दिया है..
ईरान के शाह द्वारा बीरबल को दिए गए महत्व पर अकबर को मन ही मन ईर्ष्या हुई और बीरबल से मुखातिब होते हुए पूछा तुम भी शाह ईरान से मिले हो तुमको वो कैसे लगे ? हुजूर ! मुझे भी वो अच्छे लगे वे बहुत समझदार बादशाह हैं, बीरबल ने जवाब दिया. बीरबल का जवाब सुनकर अकबर को शंका हुई और फिर से सवाल दागा .. क्या तुम उनको मुझसे बेहतर शहंशाह मानते हो. बीरबल बोले. हुजुर ! मैंने तुलना नहीं की ! मैंने उनको समझदार शहंशाह कहा.
अब अकबर ने सभी दरबारियों से तुलना करने को कहा. सभी दरबारियों ने बादशाह अकबर की तारीफ में लम्बी-लम्बी बाते कहीं जब बीरबल से तुलना करने को कहा गया तो बीरबल बोला.. हुजुर मैं यह नहीं कह सकता कि इससे बेहतर सल्तनत नहीं हो सकती या आपसे बेहतर बादशाह हो ही नहीं सकता ! यह सुनकर बादशाह चौंके ! दरबार में सन्नाटा छा गया.. अन्य दरबारी बीरबल को कई तरह उलाहना देने लगे.
बादशाह ने स्वयं को सँभालते हुए कहा .. तो ये बताओ हमसे बेहतर बादशाह कौन है ? जवाब में बीरबल बोला, हुजुर ! फिर से दोहराता हूँ... आप बेशक अच्छे शहंशाह हैं लेकिन सबसे बेहतर नहीं ! हर किसी इंसान की तरह आपमें भी खामियां हैं..भगवान् ने इंसान को कुछ ऐसा ही बनाया है.. जिससे कि वो स्वयं में निरंतर सुधार करता रहे.
यह सुनकर अकबर का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया और इसे अपनी शान में गुस्ताखी मानकर, बीरबल को दरबार से निकल जाने को कहा .. लेकिन बाद में एक विद्वान, काबिल और हाज़िर जवाब बीरबल को इस तरह दरबार से निकालने पर अकबर को स्वयं भी अच्छा न लगा. रात भर नींद नहीं आई . सुबह, बीरबल को दरबार में आने की सूचना भिजवाई लेकिन संदेशवाहक ने बताया कि बीरबल के नौकर ने बताया है कि बीरबल बहुत लम्बी यात्रा पर चले गए हैं उनके घर पर ताला लगा है. अब बादशाह बहुत परेशान हो गए उन्होंने बीरबल को खोजने के लिए अपने दूत हर दिशा में भेजे लेकिन बीरबल का पता न लगा.
अकबर ने ईरान के शाह को पैगाम भेजा जिसमें लिखा था “ अज़ीज़ दोस्त ! हमने, हमारे तालाबों का रिश्ता तय किया है. आपकी सल्तनत की नदियों को हम शादी का न्यौता देते हैं. इस पैगाम का अर्थ न शहंशाह समझ सका न दरबारी ! शाह ईरान ने बीरबल से ख़त का जवाब लिखने को कहा.. बीरबल ने जवाब में लिखा. “ हमारी नदियाँ आपके तालाबों की शादी में आने से बहुत खुश होंगी लेकिन अपने शहर के कुओं से कहिये कि वे शहर के दरवाज़े पर नदियों का स्वागत करें.".
पैगाम का जवाब पढ़कर बादशाह समझ गए कि इस तरह का जवाब कौन दे सकता है और.. स्वयं बीरबल को लेने ईरान चल दिए ..



मानव और मानवता


मानव और मानवता

मजहबी मेलों में इंसान गुम गया, 
कोई हिन्दू कोई मुसलमां तो कोई ईसाई हो गया !!
.. विजय जयाड़ा

मानव और मानवता ... उत्तराखंड में स्वामी विवेकानंद
अपने अस्तित्व में आने के बाद हिमालय, मानव को अपनी नैसर्गिक सुन्दरता से आकर्षित करता आया है लेकिन वाह्य सुन्दरता से इतर जो भी हिमालय की आतंरिक या अप्रत्यक्ष सुन्दरता और चुम्बकत्व को महसूस कर पाया, वह हिमालय से रहस्यमय ऊर्जा प्राप्त करके विशिष्ट मानव हो गया..
स्वामी विवेकानंद जी ने उत्तराखंड की प्रथम यात्रा पर ही हिमालय के इन दिव्य पहलुओं को भलीभांति महसूस कर लिया था. यही कारण था कि स्वामी जी कई बार उत्तराखंड आये..
बकौल पूर्व मुख्यमंत्री उत्तराखंड श्री निशंक जी.... एक बार अल्मोड़ा यात्रा पर लम्बे चढ़ाई वाले मार्ग पर चलते हुए जब स्वामी जी बहुत थक गए तो करबला नाम के स्थान पर रुके. उन्होंने गुरु भाई से पानी लाने को कहा. अखंडानंद पानी लेने चले गए लेकिन स्वामी जी इतने निढाल हो गए कि लगभग अचेतावस्था में चले गए. तभी पास ही कब्रिस्तान में रहने वाले फ़कीर जुल्फिकार अली की नजर उन पर पड़ी. वो दौड़कर आया और उसने खाने के लिए स्वामी जी की तरफ ककड़ी बढाई लेकिन स्वामी जी अपना हाथ तक हिलाने में असमर्थ थे इसलिए स्वामी जी ने फ़कीर से ककड़ी मुंह में डालने का इशारा किया.
किन्तु फ़कीर पीछे हटते हुए बोला– " मैं मुसलमान हूँ ! "
स्वामी जी ने कहा- “ तो इसमें क्या हुआ ? क्या हम सब भाई नहीं हैं ? “
इसके बाद फ़कीर ने अपने हाथों से स्वामी जी को ककड़ी खिलाई. इस प्रकार स्वामी जी की प्राण रक्षा हो गयी.
कालांतर में शिकागो धर्म संसद से जगत प्रसिद्धि पाने के बाद जब स्वामी जी पुन: अल्मोड़ा आये तो स्वागत के लिए पहुंची हजारों की भीड़ में भी स्वामी जी ने फ़कीर जुल्फिकार को पहचान लिया और मंच पर बुलाकर लोगों को बताया – “मैं जीवन में कभी भी इतना नहीं थका था तब इन्होने मेरे प्राण बचाए थे."

परिवर्तन


       परिवर्तन  

       हर शिक्षक की अभिलाषा होती है कि उसकी कक्षा का हर बच्चा उस कक्षा के शैक्षिक स्तर को प्राप्त करे और वह अपने पेशे के साथ न्याय कर सके. सरकारी विद्यालय की हर कक्षा में विभिन्न व प्रतिकूल परिवेश से बच्चे आते हैं इस कारण उनके अधिगम स्तर में भी काफी अंतर होता है. प्राय:: बहुत मेहनत करने के बाद भी जब कुछ बच्चों से वांछित परिणाम नहीं मिलता तो मानवीय स्वभाव होने के कारण झल्लाहट स्वाभाविक सी बात है लेकिन यदि बच्चे को प्रोत्साहित करते हुए बच्चे पर करीबी नजर रख कर उसका लगातार अप्रत्यक्ष मूल्यांकन किया जाता रहे तो झल्लाहट के स्थान पर आत्म संसुष्टि और सुकून निश्चित है.यदि प्रारंभ में ही तुरंत ध्यान न दिया जाय तो ऐसे बच्चे पिछड़ते चले जाते हैं फलस्वरूप हीन भावना से ग्रस्त होकर प्राथमिक स्तर में ही स्कूल आना छोड़ देते हैं और शिक्षा से दूर हो जाते हैं..
तस्वीर में मेरे साथ ज्योति है. पहली कक्षा से ही बहुत ही आक्रामक स्वभाव ! पढाई-लिखाई में कोई रुचि नहीं !! मैले-कुचैले कपड़े, बिखरे बाल !!! कोई बच्चा या अभिभावक शिकायत करने आता तो मैं पूर्व अनुमान लगा लेता था कि शरारत करने वाली कोई और नहीं ! ज्योति ही होगी !
खैर ! ज्योति के घर-परिवार की जानकारी ली तो ज्ञात हुआ की पिता का निधन हो चुका है ..माँ कोठियों में काम करके परिवार का भरण-पोषण करती है...अब ज्योति की इस अतिरिक्त ऊर्जा को कक्षा कार्य के साथ-साथ अन्य रचनात्मक कार्यों की तरफ मोड़कर, डांट-डपट के स्थान पर व्यक्तिगत महत्व देकर, छोटे-छोटे काम पर प्रशंसा, प्यार- दुलार, समझाने और प्रोत्साहन का दौर चलता रहा लेकिन शरारतें कम न हुई. खैर मैंने भी हार नहीं मानी ....तीन साल के बाद पिछले साल चौथी कक्षा में ज्योति में सार्थक परिवर्तन नजर आने लगा तो प्रयास का प्रतिफल अनुभव कर आत्म संतुष्टि हुई.
अब पांचवीं कक्षा में पहुँचने पर स्थिति ये है कि जब मैं कक्षा में पढ़ा रहा होता हूँ तो बात करने वाले बच्चे को धमका कर ध्यान देने को कहती है. कभी-कभी बच्चों का भाषा मात्रा ज्ञान परखने के उद्देश्य से श्याम पट्ट पर लेखन में जानबूझकर कुछ शब्दों पर मात्राएँ नहीं लगाता तो ज्योति तुरंत उस तरफ ध्यान आकर्षित करने लगी है अर्थात पढाई की तरफ गज़ब का रुझान उत्पन्न हो गया है ...
अब मैं पूर्ण आश्वस्त हूँ कि ज्योति में नेतृत्व व विपरीत परिस्थितियों में भी कुछ अच्छा करने का जज्बा विकसित हो चुका है. इस साल इस पाँचवीं उत्तीर्ण करके दूसरे बड़े विद्यालय में चली जाएगी तो आसानी से वहाँ के वातावरण में खुद को समायोजित कर लेगी।
खैर, इस तरह के बच्चों पर मेरे व्यक्तिगत सम सामयिक अभिनव प्रयोगों और फलस्वरूप प्राप्त सफलता की फेहरिस्त काफी लम्बी है
बहरहाल आज इस बच्ची का जिक्र करने का कारण ये है किआज गणतंत्र दिवस सांस्कृतिक कार्यक्रमों में पहली बार भाग लेकर अपनी नृत्य प्रतिभा से सभी को आश्चर्य चकित कर अपनी तरफ आकर्षित कर दिया ... सोचता हूँ विद्यालय केवल किताबी पाठ्यक्रम को पूर्ण करने का केंद्र न होकर, विभिन्न क्रियाकलापों के माध्यम से छात्र में अन्तर्निहित प्रतिभा को पहचानकर, छात्र के सम्पूर्ण व्यक्तित्व को निखारने का संस्थान है.
मेरा निजी अनुभव है कि इस तरह के बच्चों की अतिरिक्त ऊर्जा को सकारात्मक दिशा देकर जीवन को सही राह पर लगा दिया जाय तो ये बच्चे कक्षा के होशियार बच्चों की अपेक्षा, सम्बन्धित शिक्षक को जीवन भर याद रखते हैं...और अधिक मान भी देते हैं.



पूर्वोत्तर क्षेत्र शैक्षिक भ्रमण


(1)
पुरस्कृत अध्यापक  पूर्वोत्तर क्षेत्र शैक्षिक भ्रमण
23/03/2018 से 28/03/2018
      आखिरकार  अथक व कर्मठ ADE महोदया कु. डौली कौर जी के अथक  प्रयासों  से   अनिश्चितताओं  के  धुंधलके बीच अभिलाषाओं  का  दीप प्रज्ज्वलित हुआ और लगभग दो सालों से विलंबित व प्रतीक्षित निगम अध्यापक पुरस्कार से सम्मानित अध्यापकों हेतु पूर्वोत्तर क्षेत्र भ्रमण का मार्ग प्रशस्त हुआ.
       यात्रा वृत्त/आख्या को  ख़्वाजा मीर 'दर्द' द्वारा लिखे गए  अपने पसंदीदा शेर से प्रारंभ करना चाहूँगा.....
                                         सैर कर दुनिया की ग़ाफ़िल ज़िंदगानी फिर कहाँ
                                        ज़िंदगी गर कुछ रही तो ये जवानी फिर कहाँ...
    दिनांक  16/01/2018 को  ADE  महोदया  कु. डौली कौर जी ने भ्रमण में जाने वाले सभी शिक्षक/शिक्षिकाओं की बैठक ली  और उड़ान,  भ्रमण आदि के दौरान  बरती जाने  वाली  सावधानियों, सतर्कता और साथ ले जाए जाने वाले यात्रानुकूल  सामान  के सम्बन्ध  में दिशा निर्दिष्ट  किया. सभी साथी उत्साहित व उमंगित थे. 23 मार्च  सुबह इन्डिगो एयरलाइन के  विमान द्वारा 7.30  की उड़ान तय थी. edmc मुख्यालय के गेट पर सुबह 3.45 पर सभी भ्रमणकारी साथियों के एकत्रित  होने  का समय निर्धारित किया गया. विमान ने लगभग 7.45 पर उड़ान भरी और विमान द्वारा बादलों के  ऊपर  से उड़ते हुए  हिमालय  पर्वत  श्रंखला  का विहंगम दृश्य  अप्रतिम  अहसास  दे रहा  था.  विमान ने लगभग ढाई घंटे की सुखद यात्रा के बाद  प्रात: 10.25 को हम सब को अपने गंतव्य गुवाहाटी उतार दिया.
      एयरपोर्ट से बस द्वारा लगभग डेढ़ घंटे के सफ़र के उपरांत होटल “ सिग्नेट इन “ पहुंचे.
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     होटल पहुँचते ही भ्रमणकारी दल के सभी सदस्यों को चार टूरिस्ट कैब्स में विभाजित किया गया. हमारी बस का नंबर AS01H C8036 था. अब यही बस सम्पूर्ण भ्रमण में हमारी हमसफ़र थी.
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(2)

      होटल में ठहरने और खाने की उत्तम व्यवस्था थी. दोपहर भोजन के बाद उमस और तेज धूप के बीच दोपहर बाद 3.15 बजे, मध्य कालीन कवि, नाटककार व समाज सुधारक के नाम पर बने  श्रीमंत शंकरदेव कला क्षेत्र पहुंचे.

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      करीने से बने छोटे छोटे हरे-भरे उद्यानों के में खिले रंग बिरंगे सुन्दर फूलों व स्थानीय संस्कृति की झलक लिए संगीत, नाटक, कला व संस्कृति को बढ़ावा देते इस विस्तृत परिसर में खुले  आसमान के  नीचे  रंगमंच, सांस्कृतिक संग्रहालय व डॉ. भूपेन हजारिका संग्रहालय है. हमने मुख्य रूप से भूपेन हजारिका संग्रहालय का अवलोकन किया. यहाँ  हजारिका जी से सम्बंधित वस्तुएं व उनके द्वारा उपयोग किये गए विभिन्न बाद्य यंत्र तस्वीरें व प्राप्त पुरस्कार आदि हर किसी आगंतुक के लिए प्रेरणा श्रोत हैं.
          मांचा पहुंचकर क्रुइज़ की सैर और सूर्यास्त का आनंद लेना था इसलिए समय रहते वहां पहुंचना आवश्यक  था. सायं 4.50 बजे  श्रीमंत शंकरदेव कला क्षेत्र से रवाना होकर  5.30 बजे मांचा पहुँच गए क्रुइज़ मिलने में अभी समय बाकी  था. इस दौरान सभी साथियों ने सूर्यास्त का आनंद लिया और आपस में तस्वीरें लीं.

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      पहली बार ब्रह्मपुत्र दर्शन कौतुहल परिपूर्ण थे. चेमयुंग दुंग हिमवाह, तिब्बत से निकलकर भारत और बांग्लादेश, तीन देशों में  बहते हुए लगभग 2900 किमी. यात्रा की तय करके बंगाल की खाड़ी में विलित हो जाने वाली ब्रह्मपुत्र नदी को लेकर एक विशेष बात यह भी है कि भारत में सभी नदियों के नाम स्त्रीलिंग में हैं लेकिन ब्रह्मपुत्र नाम पुल्लिंग है.





(3)

ब्रह्मपुत्र नदी की औसत गहराई 252 फीट है जो जल परिवहन के लिए बहुत उपयुक्त है इसी कारण बड़े बड़े मालवाहक स्टीमर व यात्री नावों को ब्रह्मपुत्र में देखा जा सकता है.

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ब्रहमपुत्र नदी के तट पर काफी स्थानीय लोगों एकत्र थे. संभवत:  धार्मिक कार्यक्रम चल रहा था . 

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      MV MANASPUTRA नाम के  क्रुइज़ के सबसे ऊपरी डेक पर चढ़कर यात्रा करना एक सुखद अनुभव था सूर्यास्त हो चुका था और हम क्रुइज़ पर सवार होकर ब्रह्मपुत्र  नदी पर सैर कर रहे थे .
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     सैर के दौरान, दुनिया में किसी नदी पर सबसे छोटे आवासित टापू “ उमानंद” का भी दृश्यावलोकन किया. लोक मान्यताओं  के  अनुसार यहाँ शिवजी ने  तपस्या की थी. जब कामदेव ने उनकी तपस्या भंग करने की कोशिश की तो शिवजी ने इसी स्थान पर कामदेव को भस्म भंग कर दिया था. क्रुइज़  सैर  के अंतिम  चरण में क्रुइज़ के सबसे निचले

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स्तर पर डी जे संगीत चल रहा था जिसमे भ्रमण कारी दल के अधिकतर सदस्यों ने डांस करके समां बाँध दिया. इसके बाद हम सभी होटल सिग्नेट लौट आये  .
    कल समय अधिक हो गया था जिस कारण नवरात्रि पर्व पर श्रृद्धालुओं की भीड़ को देखते हुए गुवाहाटी से  लगभग 8 किमी. दूर स्थित कामाख्या देवी दर्शन हेतु 24 मार्च का कार्यक्रम तय हुआ. प्रात:  6.30 पर  सभी कामख्या पहुँच गए.इस दौरान कामख्या का स्थानीय बाजार देखने को मिला.
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      मंदिर  परिसर में  जिस तरफ  से हमने  प्रवेश  किया  वहां ज्यादा लम्बी लाइन न थी, दरअसल वह लाइन VIP टिकट खरीदने वालों की लाइन थी. जानकारी लेने पर ज्ञात हुआ की सामान्य दर्शनार्थियों की लाइन अलग से है और वो काफी लम्बी है. मां कामख्या  दर्शन के बाद हमें काजीरंगा नेशनल पार्क भी पहुंचना तय था इस कारण समयाभाव के कारण हम सभी ने 500 रूपये प्रति सदस्य की दर से VIP टिकट खरीद लीं लेकिन इसके बावजूद भी दर्शन करने में लगभग पांच घंटे का समय लग गया.

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      इक्यावन शक्ति पीठों में से एक,सर्वोच्च कौमारी तीर्थ  और दुनिया में तंत्र सिद्धि के लिए प्रसिद्ध कामख्या मंदिर के बारे  में  इससे  पहले  काफी सुना और पढ़ा था इसलिए करीब से देखने की जिज्ञासा  थी. कामख्या मंदिर,  नीलांचल पर्वत पर है.  भगवती के महातीर्थ (योनिमुद्रा) नीलांचल पर्वत पर ही कामदेव को पुन जीवनदान मिला था. इसीलिए यह क्षेत्र कामरूप के नाम से भी जाना जाता है.जन श्रुतियों के अनुसार...
   



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  जिस  प्रकार उत्तर भारत  में कुंभ महापर्व का महत्व  माना जाता है, ठीक उसी प्रकार उससे भी श्रेष्ठ आद्यशक्ति के अम्बूवाची पर्व का महत्व है. अम्बूवाची योग पर्व के दौरान मां भगवती के गर्भगृह के कपाट स्वत ही बंद हो जाते हैं
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और  उनका  दर्शन भी  निषेध हो जाता है. इस पर्व  की महत्ता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पूरे विश्व से इस पर्व में तंत्र-मंत्र-यंत्र साधना हेतु  यहाँ  सभी  प्रकार की सिद्धियाँ  एवं मंत्रों के पुरश्चरण हेतु उच्च कोटि के तांत्रिकों-मांत्रिकों, अघोरियों का बड़ा जमघट लगा रहता है. तीन दिनों के उपरांत मां भगवती की रजस्वला समाप्ति पर उनकी विशेष पूजा  एवं  साधना  की जाती है. इस पर्व में मां भगवती के  रजस्वला  होने से  पूर्व  गर्भगृह  स्थित महामुद्रा पर सफेद वस्त्र चढ़ाये जाते हैं, जो कि रक्तवर्ण हो जाते हैं. मंदिर के पुजारियों द्वारा ये वस्त्र प्रसाद के रूप में श्रद्धालु  भक्तों  में  विशेष रूप से वितरित  किये जाते हैं.  इस पर्व  पर भारत  ही नहीं बल्कि बंगलादेश, तिब्बत और अफ्रीका जैसे देशों के तंत्र साधक यहां आकर अपनी साधना के सर्वोच्च शिखर को प्राप्त करते हैं.वाममार्ग साधना का तो यह सर्वोच्च पीठ स्थल है.
      इस क्षेत्र में सभी वर्ण व जातियों की कौमारियां वंदनीय व
पूजनीय हैं. वर्ण-जाति का भेद करने पर साधक की सिद्धियां नष्ट हो जाती    हैं शास्त्रों में वर्णित है कि ऐसा करने पर इंद्र तुल्य शक्तिशाली देव को भी अपने पद से वंछित होना पड़ा था.
     नीलांचल पर्वत पर आठवीं सदी में बना यह मंदिर भी पंद्रहवीं शताब्दी में आक्रान्ताओं के कहर से महफूज़ न रह सका, बाद में बिखरे पड़े शिलाखंडों व अवशेषों द्वारा मंदिर का पुनर्निमाण व पुन: पूजा अर्चना प्रारंभ की गई. इतिहासकार इसका श्रेय नर नारायण व चिला राय को देते हैं.. मंदिर में आज भी बलि प्रथा है  आज अष्टमी थी, देवी को समर्पित करने के लिए काफी बकरे व भैंसे भी बलि देने के लिए बंधे गए थे. यहाँ कबूतर उडाये जाने की भी परम्परा है  ..
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     कामख्या मंदिर से वापस  होटल  आते हुए  मार्ग में  कामाख्या हाई स्कूल मिला इस वक्त विद्यालय की छुट्टी हो चुकी थी और बच्चे विद्यालय गेट से बाहर आ रहे थे. दल के कुछ साथी व अधिकारी गण विद्यालय देखने व छात्रों से बातचित करने  हेतु विद्यालय में पहुंचे.

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      कामाख्या देवी दर्शन उपरान्त  
काजीरंगा नेशनल पार्क  भ्रमण तय था इसलिए वापस होटल पहुंचकर दोपहर का भोजन किया और कैब  से गुवाहाटी से 200 किमी. दूर  काजीरंगा के  लिए  रवाना हुए.  मार्ग में अँधेरा होने लगा था लम्बी यात्रा से कुछ देर विश्राम के लिए मार्ग में रूककर  चाय  पकोड़ों  का आनंद लिया. अब भी इस स्थान से  गंतव्य की दूरी 90 किमी. थी. रात 8.45 पर हम सभी अपने  गंतव्य कन्चंजुरी पहुंचे. चारों तरफ से पर्वतीय प्रकृति की छटा लिए  रिजोर्ट  वुड लैंडमार्क   पर  हमारे ठहरने  की  व्यवस्था थी. आधुनिक सुख-सुविधाओं से संपन्न व चारों तरह से नैसर्गिक सुन्दरता की ओट में बने इस रिसोर्ट में अनुपम शांति व आनंद का अहसास हुआ.
      हम  सभी  25/03/2018  को  प्रात  काजीरंगा  पार्क के  लिए  रवाना हुए. काजीरंगा नेशनल पार्क पहुंचकर  बाजौरी से जंगल सफारी में बैठे और  काजीरंगा नेशनल पार्क भ्रमण का सभी ने आनंद लिया,

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      असम राज्य के गोलाहाट और नौगाँव जिलों के विस्तृत भू-भाग  में वर्ष 1905 स्थापित तथा  विश्व विरासत घोषित यह पार्क मुख्य रूप से एक सींग वाले गैंडे के लिए प्रसिद्ध है. यहाँ विश्व में विद्यमान एक सींग वाले गैंडों की संख्या का दो-तिहाई (2413)  निवास करता है. सफारी के दौरान कई गैंडों  को करीब से देखने का मौका मिला.  हाथी भी  देखने को मिले.. यह पार्क टाइगर, असम भैंस , बारह सिंगा व पक्षियों के लिए भी जाना जाता है .. लेकिन इन सब को प्रत्यक्ष  न देखकर निराशा हुई.

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काजीरंगा नाम के सम्बन्ध में कई लोक कथाएं प्रचलित हैं. एक लोक कथा के अनुसार  पास के गाँव में रंगा नाम की लड़की को कर्बी ऐन्ग्लोंग गाँव के लड़के, क़ाज़ी से प्यार हो गया था लेकिन ये उनके परिवार को स्वीकार्य न था. वे दोनों इस घने जंगल में आ गए इसके बाद वे  लोगों को फिर कभी न दिखे. इस कारण इस वन क्षेत्र का नाम काजीरंगा पड़ गया. काजीरंगा नेशनल पार्क कई बार बाढ़ की चपेट में आ चुका है.












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काजीरंगा नेशनल पार्क में एक भवन पर अलग-अलग वर्षों में पार्क में जल के स्तर को दिखाता संकेतक भी बनाया गया है.

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पार्क में ही एक झील देखने को भी मिले जिसमें कुछ जल पक्षी भी थे.

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          काजीरंगा नेशनल पार्क से वापस होटल आकर दोपहर का भोजन किया और कुछ  देर बाद  काजीरंगा नेशनल आर्किड पार्क के लिए रावण हुए मार्ग में  दुर्गापुर में  चाय के बागान देखने का अवसर मिला.

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      चाय के बागान देखने का मेरा यह पहला अवसर था. चाय के पौधे के सम्बन्ध में अपनी कल्पनाओं  हटकर और काफी करीब से देखने व समझने का अवसर मिला. चाय बागानों में  भारतीय मानक समय  ( IST)  को अनुसरित  नहीं किया जाता.बागानों में Tea Garden Time या बागान टाइम को अनुसरित किया जाता है जो कि भारतीय मानक समय से एक घंटा आगे है. यह परंपरा ब्रिटिश काल से व्यवहार में है.

Description: C:\Users\hp\Desktop\Edit Camera North East\DSC09063.JPGDescription: C:\Users\hp\Desktop\Edit Camera North East\DSC09064.JPG

      ब्रहमपुत्र नदी के दोनों किनारों पर बसा असम राज्य अपनी काली चाय के लिए दुनिया भर में जाना जाता है.इस क्षेत्र में मानसून काल में बहुत वर्षा होती है, वातावरण में नमी के साथ दिन का तापमान 36 डिग्री के आसपास रहता है. इस  तरह की  वातावरणिक परिस्थितियाँ ग्रीन हाउस  जैसा प्रभाव उत्पन्न करती हैं. उष्ण  कटिबंधीय वातावरण असम  चाय को एक अलग स्वाद देता है जो दुनिया  भर में  मशहूर है. यहीं दुर्गापुर में  ही बने एक आउट लेट से मैंने अपने जानने वालों के लिए असम की यादगार के रूप में 6 पैकेट CTC चाय भी खरीदी.
                  चाय बागान में अन्य बड़े वृक्षों पर काली मिर्च  की लताएँ भी देखने को मिली..

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चाय बागान देखने के बाद हम सांय 5 बजे दुर्गापुर, काजीरंगा नेशनल आर्किड पार्क  पहुँच गए.

Description: C:\Users\hp\Desktop\Edit mobile camera North East Tour\IMG_20180325_163100597.jpg Description: C:\Users\hp\Desktop\Edit mobile camera North East Tour\IMG_20180325_163334682.jpg
      इस क्षेत्र किसानों के हितों  के लिए एक संगठन  “ कृषक मुक्ति संग्राम समिति “ प्रयासरत है , संगठन के अध्यक्ष श्री तरुण गोगोई के प्रयासों से     यह आर्किड पार्क  अस्तित्व में आया.


                         

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         इस आर्किड पार्क में आर्किड की विभिन्न प्रजातियों को बहुत करीब से देखा अधिकतर आर्किड प्रजातियों पर मन लुभावन सुन्दर फूल खिले थे.  भारत में आर्किड की लगभग 1314 प्रजातियाँ पायी जाती हैं, इस आर्किड पार्क में आर्किड की 500 से अधिक प्रजातियाँ संरक्षित हैं.
 
  आर्किड के अलावा इस पार्क में खट्टे फलों और पत्तेदार सब्जियों की 132, गन्ने की  बांस की 42 व स्थानीय मछलियों की कई प्रजातियाँ संरक्षित हैं.        
      आर्किड पार्क पर्यटकों को प्राकृतिक वातावरण उपलब्ध करता है ऊँचाई पर बने मचान, झोपड़ी नुमा संरचनाएं, छोटे तालाब, चट्टान आदि देखकर मन को हसंती मिलती है, प्रकृति को निहारते हुए व यहाँ के संग्रहालयों में स्थानीय वस्तुओं  का अध्ययन  करते हुए सांस्कृतिक  कार्यक्रम  प्रारंभ  होने  का  समय हो गयाथा .




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               कृषक मुक्ति संग्राम समिति से सम्बद्ध कलाकारों ने रंगारंग लोक नृत्यों के माध्यम से पूर्वोत्तर व बंगाल की मोहक  सांस्कृतिक छवि  प्रस्तुत की. कम उम्र कलाकार द्वारा, रुदाली के गीत  “ दिल हूम हूम करे..... “ की प्रस्तुति ने, पदम् विभूषण व दुनिया भर में लोकप्रिय कलाकार भूपेन हजारिका की यादों को जीवंत कर दिया.
Description: C:\Users\hp\Desktop\Edit Camera North East\DSC09132.JPGDescription: C:\Users\hp\Desktop\Edit mobile camera North East Tour\IMG_20180325_191410977.jpg

    रात के 8.30 बजे कार्यक्रम समाप्त हुआ . कार्यक्रम के बाद कलाकारों के साथ छायांकन करके शानदार कार्यक्रम की यादों को स्थायी रूप से संजोने के लिए कलाकारों के साथ छायांकन किया और हम सभी वापस होटल आ गए.
    दिनांक
26/03/2018 को हमें बादलों के घर, मेघालय राज्य की राजधानी शिलॉंग का लम्बा सफ़र तय करना था. इसलिए सभी  सुबह जल्दी जाग गए. नाश्ता करने के बाद शिलॉंग के लिए रवाना हुए. मार्ग में चाय बागानों के सुन्दर दृश्य व  एक  प्राथमिक विद्यालय  को देखने का अवसर  मिला. हम इस विद्यालय में  9.00 बजे पहुंचे. हालाँकि  यहाँ विद्यालय का समय सुबह 9.30 बजे से 3.30 बजे का है  लेकिन छात्र विद्यालय में पहुँच  चुके थे.





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      विद्यालय में अभी शिक्षक पहुंचे नहीं थे. छात्रो  से संवाद  में भाषा  आड़े    रही थी. इसलिए  उपस्थित छात्रों  से राष्ट्रीय गीत व राष्ट्रीय गान सुनाने को कहा तो बच्चों ने जिस शुद्धता, संगीतमय,  भावमयी  अंदाज़  में प्रस्तुत  किया. वह निहायत ही काबिले तारीफ़ था.

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         विद्यालय का भवन छोटा था लेकिन कक्षा कक्ष, हवादार व  साफ़-सुथरे थे. दीवारों पर लकड़ी की एक बैटन पर चार्ट टाँगे गए थे. कक्षा – कक्षों में आगे और पीछे दोनों तरफ  श्याम-पट्ट बने थे. इस स्थान से आगे बढ़ने पर सड़क के दोनों ओर सुपारी के जंगल देखने को मिले. मार्ग में जीवा वेज रेस्टोरेंट, नांगपुह में दोपहर का भोजन कर हम शिलॉंग की ओर चल दिए. शिलॉंग पहुँचते ही हम सीधे, 1938 में स्थापित  Sacred Heart Theological College पहुंचे.


       इस संस्थान के बंद होने का समय सायं 5.30 बजे है. देर से पहुँचने के कारण  हमारे पास वक़्त कम था. ये संग्रहालय अपने आप में अनूठा है. यहाँ पूर्वोत्तर की संस्कृति को आसानी से समझा जा सकता है. म्यूजियम में पूर्वोत्तर क्षेत्र के ..









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रहन-सहन, आर्थिकी, संस्कृति को बहुत सुन्दर और जीवंत रूप में प्रदर्शित किया गया है.. यदि पूर्वोत्तर की संस्कृति का कम समय में अध्ययन करना हो तो इस संग्रहालय  में आना बहुत ही उपयोगी सिद्ध होगा.







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 संग्रहालय की सात मंजिलों के विभिन्न संग्रहालयों का अवलोकन करने के उपरान्त भवन की सबसे उपरी छत पर  जाकर स्काई वाक से बादलों की ओट में शिलॉंग की नैसर्गिक सुन्दरता व सूर्यास्त  का अवलोकन करना अत्यन सुखद व अप्रतिम अहसास था.अब अँधेरा होने लगा था.

Description: C:\Users\hp\Desktop\Edit Camera North East\DSC09236.JPG Description: C:\Users\hp\Desktop\Edit Camera North East\DSC09228.JPG

        शिलॉंग में हमारे रहन-सहन की व्यवस्था पुलिस अस्पताल के पास बने होटल एल्पाइन कोंटीनेंटल में थी. रूम में अपना सामान रखकर हम शिलॉंग के बाजार देखने चल दिए.
        




 

       यहाँ सूर्यास्त जल्दी हो जाने के कारण  शाम  को 6 बजे से ही बाजार बंद होने लगते हैं.. पुलिस बाज़ार, बड़ा बाज़ार, जेल रोड से  गुज़रते हुए .बाजार  में  स्थानीय सामान  व फल देखे. कुछ  फलों का रसास्वादन भी किया. मैं  उत्तराखंड से हूँ हमारे यहाँ गर्मियों में जंगल में वृक्षों पर  “ काफल “ एक रसीला फल मिलता है.

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    यहाँ पर भी वही काफल सड़क किनारे लगायी गई दुकानों पर बिक रहे थे. रंग,रूप,  स्वाद वही था मगर आकार  चार गुना अधिक था ! सड़क किनारे लगी अधिकतर छोटी दुकानों को महिलाएं ही संभाल रही थीं. 

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       बचपन से अब तक सर्वाधिक वर्षा वाले क्षेत्र चेरापूंजी का नाम सुनता और पढता  आ रहा हूँ. कल   
27/03/2018 को  हमें चेरापूंजी पहुँचना था. मन में उत्साह और कौतुहल था. 27 मार्च की सुबह चेरापूंजी, सोहरा के लिए रवाना हुए. मार्ग में वर्षा होने लगी तो चेरापूंजी आना सार्थक लगने लगा. वर्षा के कारण मार्ग में एलिफैन्टा केव्स  जाने का निर्णय वापसी तक के लिए स्थगित करना पड़ा.

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     सोहरा एक बड़ा क्षेत्र है मार्ग में एक स्थान पर भुट्टों का आनंद तेते हुए हम उमेस्टिव व्यू पॉइंट (Umestew View Point) सोहरा, चेरापूंजी, पर प्रकृति का नज़ारा देखने के लिए रुके,

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Description: C:\Users\hp\Desktop\Edit Camera North East\DSC09278.JPGDescription: C:\Users\hp\Desktop\Edit mobile camera North East Tour\IMG_20180327_105444224.jpg
     अभी भी बूंदाबांदी चल रही थी. घाटी से काफी ऊँचाई पर स्थित इस व्यू पॉइंट्स से प्रकति का विस्तृत व सुरम्य दृश्यावलोकन किया जा सकता है.  हालाँकि अब हमारा अगला पड़ाव दुनिया में सबसे अधिक वर्षा होने वाले क्षेत्र के रूप में गिनीज बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज, चेरापूंजी, सोहरा था. हालाँकि इस समय विश्व में सर्वाधिक वर्षा वाले स्थान के रूप में मावसिनराम (Mawsynram), मेघालय, वर्ष में 11,873 मिमी.के कारणजाना जाता है इस स्थान पर स्थानीय वस्तुओं के विक्रय हेतु कुछ दुकानें थीं. कुछ आगे पैदल चलकर अब हम एक ऐसे स्थान पर पहुँच कर गर्व महसूस कर रहे थे जहाँ पर एक साइन बोर्ड लगा था और उस पर लिखा था  “ SOHRA, The Wettest Place On Earth… Proud to be here “
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       इस स्थान पर पहुंचकर हमारी ख़ुशी का ठिकाना न था,लेकिन यहाँ लगभग मृदा विहीन पठार और जिरोफिटिक बनस्पति देखकर आश्चर्य हुआ ! क्योंकि मेरे मन-मस्तिष्क में अधिकतम वर्ष वाले क्षेत्र में घने वन और ऊँची-ऊंची हरी भरी घास होने की कल्पना थी. इस कारण यहाँ की भौगोलिक स्थिति और परिस्थितियों को करीब से जानने की जिज्ञासा हुई
     खासी पहाड़ियों, खासी शब्द का अर्थ स्थानीय भाषा में पत्थर (STONE) से है, पर समुद्र तल से 1484 मी. की ऊँचाई पर स्थित और गिनीज बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड में जुलाई 1861में  9,300 मिमी. तथा 1 अगस्त 1860 से 31 जुलाई 1861 के बीच  26,461 मिमी. वर्षा  के  कारण दो रिकॉर्ड  दर्ज कराने  वाले चेरापूंजी का ऐतिहासिक नाम “सोहरा” है. 1884 में इस कबीलाई क्षेत्र पर अंग्रेजों द्वारा अधिकार के बाद, अंग्रेज “ सोहरा “ शब्द का उच्चारण “चुरा ( Chura )“ करने लगे, कालांतर  में यही चुरा क्षेत्र,  चेरापूंजी नाम से जाना  जाने लगा. अब मेघालय सरकार द्वारा इस स्थान का नाम बदलकर पुन: “ सोहरा “ कर दिया है. खासी पहाड़ियों पर बसा समाज मातृ मूलक समाज है. यहाँ पिता की संपत्ति पर सबसे छोटी बेटी का अधिकार होता है.
       बादल, बरसात और सूर्योदय के लिए प्रसिद्ध इस क्षेत्र में अत्यधिक वर्षा  होने  के बावजूद भी यहाँ के लोगो को दिसंबर - जनवरी महीनों  में  पानी का अभाव  झेलना पड़ता है. पानी के लिए  कई किमी. दूर जाना पड़ता है. जल संकट के  हालात यहाँ तक बद्तर हो जाते हैं कि एक बाल्टी पानी के एवाज़ में 6-7 रुपये तक दाम देने होते हैं.
      आबादी बढ़ने से वन क्षेत्र घटा है जिससे कृषि पर विपरीत प्रभाव पड़ा है.  तेज वर्षा के दिनों में ऊपरी उपजाऊ मृदा बह जाती है. जल संकट का मुख्य कारण, वनों का कटान है जिसके कारण विगत 10 वर्षों में यहाँ वन क्षेत्र 40%
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कम हुआ है. औद्योगिकीकरण , आबादी का बढ़ना भी वन क्षेत्र और कृषि क्षेत्र को प्रभावित कर रहा है. मृदा अपरदन के लिए इस क्षेत्र में छोटे-छोटे चेक डैम बनाया जाना बहुत आवश्यक है.
        यही से ठीक सामने  
नोहकालिकाई (Nohkalikai) वाटर फॉल स्पष्ट दिखाई दिया. जब यह फॉल अपने पूरे शबाब पर होता है तो 340 मी. ऊँचा और 23 मी. चौड़ा गिरता दिखाई देता है.






 हालाँकि इस मौसम में इस फॉल में अपनी ख्याति के मुताबिक  पानी नहीं था...लेकिन बहुत ऊँचाई से पानी का झरने के रूप में गिरना बहुत सुंदर दृश्य प्रस्तुत कर रहा था..


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      नोहकालिकाई (Nohkalikai) वाटर फॉल देखने के बाद हम आगे बढ़ चले, मार्ग में रामकृष्ण मिशन द्वारा संचालित और 1931 में स्थापित हायर सेकेंडरी स्कूल देखने को मिला.

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  यहाँ कुछ देर रुक कर विद्यालय के शैक्षिक वातावरण से भरपूर भव्य परिसर अवलोकन करते हुए छात्रों से बातचीत  की.विद्यालय में लगभग 1000 छात्र-छात्राएं हैं.
  वर्ष
1924 रामकृष्ण मिशन के सन्यासी स्वामी प्रभानंद जी, स्वामी विवेकानंद जी के सन्देश अनुसार ब्रिटिश शासन के चंगुल से खासी सांस्कृतिक विरासत को बचाने के उद्देश्य से इस स्थान पर पहुंचे थे. स्थानीय लोगों ने उनका पूर्ण सहयोग किया. फलस्वरूप मिशन द्वारा जनजातीय कल्याण हेतु प्राइमरी स्कूल व डिस्पेंसरी  स्थापित किये गए . आज रामकृष्ण मिशन जनजातीय क्षेत्रों में विभिन्न कल्याणकारी कार्य कर रहा है. इस स्थान से हम आगे बढे.
         मार्ग में
“ सेवन सिस्टर फाल्स  “( Mawsmai Falls) देखने को मिले.

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    हालाँकि मानसून काल न होने के कारण इन झरनों में पाली बहुत कम था. चूना पत्थर चट्टानों से गिरते और भारत के ऊंचे झरनों में शुमार इन झरनों की वर्षा काल में अधिकतम उंचाई  315 मी. और चौडाई  70 मी. तक होती हैं. ये  प्राकृतिक झरने बरसात  के मौसम में अपने पूरे शबाब पर होते हैं.
   










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    तदुपरांत हम चेरापूंजी से लगभग 6 किमी. की दूरी पर लगातर बहते पानी से चूना पत्थर को घिसकर प्राकृतिक रूप से बनी मावस्माई गुफाएं  (Mawsmai Caves) देखने का अवसर मिला. इस समय गुफाओं में पानी न था.
      पर्यटकों को मंत्रमुग्ध करती इन गुफाओं में बहुत सुन्दर आकृतियाँ बन पड़ी हैं. मेघालय राज्य के खासी, जयंतिया व गारों जिलों में काफी प्राकतिक गुफाएं है.

Description: C:\Users\hp\Desktop\Edit mobile camera North East Tour\IMG_20180327_143753712.jpgDescription: C:\Users\hp\Desktop\Edit mobile camera North East Tour\IMG_20180327_144047277.jpg

   दुनिया की सबसे लम्बी गुफाओं में से दस सबसे लम्बी और गहरी गुफाएं भारत में है.. और उन दस गुफाओं में से नौ गुफाएं मेघालय राज्य में हैं. अब तक खोजी जा चुकी 1580 प्राकृतिक गुफाओं में  से जयंतिया पहाड़ियों परKrem Liat Prah गुफाएं लगभग 34 किमी. लम्बी हैं. ये गुफाएं मेघालय राज्य की और भारत की सबसे लम्बी गुफा है.



Description: C:\Users\hp\Desktop\Edit Camera North East\DSC09357.JPGDescription: C:\Users\hp\Desktop\Edit Camera North East\DSC09386.JPG
       
         अब हम शिलॉंग से 12 किमी. दूर एलीफैंट फाल्स  पहुँच चुके थे. यहाँ भी स्थानीय सामान की कई छोटी दुकानें थी सांझ ढलने को थी इसलिए जल्दी-जल्दी मुख्य सड़क से नीचे उतरकर व स्थित एलीफैंट फाल्स के  बेहतरीन नज़ारे देखने को मिले  अंग्रेजों  ने  हाथी सदृश आकृति की चट्टान से तीन चरणों में गिरने वाले इस झरने का नाम   “एलीफैंट फाल्स” रख दिया था. मूल रूप से खासी लोगों में यह झरना Ka Kshaid Lai Pateng Khoshiew, नाम से जाना जाता था. 1887 में आये भूकंप से हाथी की आकृति  वाली  चट्टान  नष्ट हो गयी थी. लेकिन  झरने का नाम वही बना रहा.







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      झरने के  अंतिम  सबसे  निचले  भाग में पहुँचने के लिए  लगातार  उतराई  लिए  कई  सीढियां है. बीच में छायांकन के लिए स्थान भी बने हुए हैं. तीन चरणों में गिरने वाले  एलीफैंट फाल्स के  तीनों झरनों को देखने में देखने में लगभग 40 मिनट लगे.

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Description: C:\Users\hp\Desktop\Edit mobile camera North East Tour\IMG_20180327_170757999.jpgDescription: C:\Users\hp\Desktop\Edit mobile camera North East Tour\IMG_20180327_165906035.jpg
अँधेरा घिरने लगा था. रात्री विश्राम हेतु हम वापस शिलॉंग होटल अल्पाइन कॉन्टिनेंटल आ गए.
      आज
28/03/2017 को पूर्वोत्तर क्षेत्र यात्रा भ्रमण का अंतिम दिन था. Scotland Of The East, शिलॉंग को  अलविदा  कर  गुवाहाटी  एयरपोर्ट  के  लिए चल दिया. यहाँ  से दोपह र बाद 3.35 बजे हमारी दिल्ली के लिए उड़ान तय थी.मार्ग में शिलॉंग से 15 किमी. दूर “ उमियम झील “(Umiam Lake)जलाशय देखने का अवसर मिला.
    

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      वर्ष 1960 उमियम नदी परबाँध बनाकर बनाये गए इस जलाशय का उपयोग विद्युत उत्पादन हेतु किया जाता है. यह झील  पानी सम्बंधित साहसी खेलों में रूचि रखने वाले पर्यटकों के बीच बहुत लोकप्रिय है.

Description: C:\Users\hp\Desktop\Edit Camera North East\DSC09459.JPGDescription: C:\Users\hp\Desktop\Edit Camera North East\DSC09487.JPG

प्रकृति को बहुत करीब से निहारने के साथ-साथ हमने झील में इंजन नौकाओं पर सवारी का आनंद लिया.



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      यह झील  लगातार इकट्ठी  होती गाद, अवैज्ञानिक खनन.  निर्वनीकरण, जल  निकासी के प्राकतिक रास्तों में अवरोध के कारण  प्रदूषण की चपेट में है.
    





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    हमारी दिल्ली वापसी  के लिए  दोपहर बाद 3.35 की फ्लाइट थी इसलिए मार्ग में “ जीवा वेज “ रेस्टोरेंट से
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दोपहर का खाना पैक करवाकर हम आगे बढे. बस में सफ़र करते हुए  मार्ग में पूर्वोत्तर क्षेत्र के  टीन  की ढालदार छत वाले व  विशेष बनावट लिए  मकान देखने को मिले. इस तरह बने मकान इससे पहले मैंने हिमाचल राज्य में भी देखे हैं.

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 सफर के दौरान ढालदार पहाड़ियों पर बसे गाँवों के  ग्राम्य दृश्य देखने को भी मिले.

Description: C:\Users\hp\Desktop\Edit Camera North East\DSC09532.JPGDescription: C:\Users\hp\Desktop\Edit Camera North East\DSC09540.JPG

बस से सफ़र के दौरान हम आपस में इस क्षेत्र के विस्तृत सघन वन वन प्रदेश, संस्कृति व स्थानीय लाल मिट्टी आदि के सम्बन्ध में चर्चा करते रहे.




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पूर्वोत्तर राज्य असम व मेघालय की सड़के यात्रा के दौरान काफी सुविधाजनक और अच्छे हालात में दिखी.

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इस भ्रमण के अंतर्गत पहली बार नारियल व सुपारी के पेड़ करीब से देखने को मिले  ..
Description: C:\Users\hp\Desktop\Edit Camera North East\DSC08970.JPGDescription: C:\Users\hp\Desktop\Edit Camera North East\DSC08962.JPG  Description: C:\Users\hp\Desktop\Edit Camera North East\DSC08897.JPGDescription: C:\Users\hp\Desktop\Edit Camera North East\DSC08898.JPG


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     अब हम इस क्षेत्र की प्राकृतिक सुन्दरता व तरक्की का आनंद लेते हुए और मन में भ्रमण से जुडी विगत दिवसों की यादों को ताज़ा करते हुए आगे बढ़ रहे थे.


Description: C:\Users\hp\Desktop\Edit Camera North East\DSC09140.JPGDescription: C:\Users\hp\Desktop\Edit Camera North East\DSC09143.JPG




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Description: C:\Users\hp\Desktop\Edit Camera North East\DSC09534.JPGDescription: C:\Users\hp\Desktop\Edit Camera North East\DSC09539.JPG
    


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      दोपहर बाद 1.25 बजे हम  “ लोकप्रिय गोपीनाथ बोरदोलोई एयरपोर्ट “ , गुवाहाटी,  पहुँच  गए. एयरपोर्ट की औपचारिकताएं पूर्ण करने के बाद भोजन किया और इन्डिगो एयरलाइन विमान में सवार होकर, लगभग ढाई घंटे के हवाई सफ़र के बाद हम वापस इंदिरा गाँधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे, दिल्ली पर पहुँच गए. भ्रमण कारी दल के सदस्यों ने यहाँ एक-दूसरे को अलविदा कहा और सुखद भ्रमण की यादों के साथ अपने-अपने घरों को प्रस्थान कर लिया.
इस सफ़र के यादगार हमसफ़र ....

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23/03/2018 से 28/03/2018  तक की अवधि में इस शैक्षिक भ्रमण के दौरान पूर्वोत्तर क्षेत्र की संस्कृति, कला, शिक्षा, आर्थिकी, रहन-सहन, वेश-भूषा व प्रकृति को शैक्षिक दृष्टिकोण से बहुत करीब से देखने का अवसर मिला.. सभी साथियों ने शैक्षिक भ्रमण को यादगार बनाने हेतु मन माफिक छायांकन किया.
     शैक्षिक दृष्टि से भ्रमण काफी सफल रहा. भ्रमण के शैक्षिक उपयोगिताओं का उपरोक्त यात्रा विवरण के अंतर्गत ही समावेश करने का प्रयास किया है भ्रमण के दौरान EDMC स्कूल, पॉकेट-एफ, मयूर फेज -2, दिल्ली में अध्यापक, श्री भीम सिंह बिष्ट जी मेरे  रूम पार्टनर रहे . आपका साथ उत्साहवर्धक व प्रेरक रहा.. भीम जी  ने छायांकन में  मेरी भरपूर सहायता की.
      भ्रमण  में अधिकारी गण , ADE हेड क्वार्टर कु. डौली कौर जी,  ADE हेड क्वार्टर श्री अम्बुज कुमार जी,  ADE शाहदरा साउथ  श्री अनिल बालियान जी, ADE शाहदरा नॉर्थ,  श्री राजीव कुमार जी,  DCA  श्री वीर सिंह जी का व्यवहार अभिभावक तुल्य, उत्साहवर्धक व  प्रेरणा दायक था.
    सम्पूर्ण भ्रमण के दौरान  
IRTC के माध्यम से भ्रमण हेतु किया गया प्रबंधन काबिले तारीफ था. हमें सम्पूर्ण भ्रमण के दौरान व्यवस्था सम्बन्धी किसी भी तरह की  परेशानी का सामना नहीं करना पड़ा. IRTC की  तरफ से दिल्ली से हमारे भ्रमण की व्यवस्था  हेतु चीफ सुपरवाईजर श्री प्रोबीर जी  और गुवाहाटी से हमारे साथ सीनियर  सुपरवाईजर  श्री विश्वरंजन जी शामिल हुए. आप दोनों ने भ्रमण कारी दल से सम्बंधित हर तरह की वांछित व्यवस्था को कुशलतापूर्वक अंजाम दिया.
     विभाग द्वारा पूर्वोत्तर क्षेत्र का भ्रमण का शैक्षिक  दृष्टि से बहुत ही उपयोगी, लाभदायक व मनोरंजक रहा. भविष्य में भी इस तरह के शैक्षिक भ्रमण आयोजित किये जाते रहें तो अध्यापकों को काफी लाभ होगा.

                                           
                                                                             विजय प्रकाश सिंह जयाड़ा
                                                                                      अध्यापक
                                                                    पूर्वी दिल्ली नगर निगम प्राथमिक विद्यालय
                                                                 त्रिलोकपुरी 28 – प्रथम पाली,दिल्ली 110091
                                                                            मो. 8802353734     

        पुरस्कृत शिक्षक
पूर्वोत्तर क्षेत्र शैक्षिक भ्रमण     

                             


Description: C:\Users\hp\Desktop\Edit Camera North East\DSC09011.JPGDescription: C:\Users\hp\Desktop\Edit Camera North East\DSC08813.JPG

(दिनांक 23/03/2018 से 28/03/2018)
रिपोर्ट..
विजय प्रकाश सिंह जयाड़ा
अध्यापक
पूर्वी दिल्ली नगर निगम प्राथमिक विद्यालय
त्रिलोकपुरी ब्लॉक-28 प्रथम पाली
दिल्ली
110091
मो. 8802353734