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Sunday 10 January 2016

Thursday 7 January 2016

भारत का राष्ट्र निर्माता !!!




भारत का राष्ट्र निर्माता !!!

       ये फेंसी ड्रेस शो नहीं !! ये निगम शिक्षकों को तीन माह से वेतन न मिलने के कारण पूर्वी दिल्ली नगर निगम मुख्यालय के सामने धरने पर सार्वजानिक रूप से दिल्ली के हर निगम के उपेक्षित शिक्षक का आत्मिक दर्द, व्यथा व भावनाओं का शालीन प्रदर्शन है !!
      हमारे देश में विभिन्न समारोहों पर शिक्षक को " राष्ट्र निर्माता " और न जाने किन-किन उपमाओं से "विभूषित" करके उसे मर्यादाओं और शिष्टता की बेड़ियों में इस कदर जकड दिया जाता है कि न वो अपना दर्द बयां कर सकता है न अशिष्ट भाषा का प्रयोग कर उग्र हो सकता है !! लेकिन शालीन भाषा कोई सुनता नहीं !! हर कोई उसे मर्यादा का पाठ पढ़ाना चाहता है !!
     शिक्षक किसी दूसरे ग्रह का प्राणी नहीं !! वो भी देश का नागरिक है उसकी भी अपनी भावनाएं हैं ..समस्याएँ हैं.. आखिर वो अपनी बात रखे ! तो रखे कैसे ! और किसके सामने रखे ! .. देश की राजधानी में होते हुए भी कोई उसके दर्द को सुनने को राजी ही नहीं !! और जो सुनते हैं उनको पता है मर्यादित शिक्षक एक सीमा तक ही विरोध जता सकता है .. सड़कों पर कूड़े का ढेर नहीं लगाएगा न गाली गलौच करेगा न स्कूल ही बंद करेगा .. इसलिए वे माँ शारदे के उपासक की व्यथा सुनकर भी अनसुना कर देते हैं !!
       हम तरक्की के लिए जिन देशों का उदाहरण देते हैं उन देशों के बजट में शिक्षा को दिए जाने वाले हिस्से, शिक्षा के आधारभूत ढाँचे को को दी जाने वाली प्राथमिकता को हम कभी चर्चा का विषय नहीं बनाते !! हम केवल शिक्षक में कमी निकालकर अपने दायित्वों की इतिश्री समझ लेते हैं !
      राजधानी का शिक्षक तीन माह से वेतन के लिए संघर्ष कर रहा है दर-दर पर वेतन के लिए मिन्नत कर रहा है !! क्या इससे उसके आत्मसम्मान व स्वाभिमान पर विपरीत प्रभाव नहीं पड़ रहा ?? महानगर में अर्थ बिना एक दिन में ही व्यक्ति स्वयं को असुरक्षित समझने लगता है .. मानसिक तनाव से पीडित हो जाता है क्या ये सब बातें शिक्षक के अध्यापन गुणवत्ता को प्रभावित नहीं करती ??
       मगर हमारे नीति नियंता किन्हीं अन्य विषयों में व्यस्त हैं .. उनके पास शिक्षक की समस्या के लिए वक्त नहीं ... तात्कालिक लाभ प्राप्ति के उद्देश्य से केवल उद्योग व उद्योगपतियों को बढ़ावा देने को लेकर ही संजीदा हैं !!
       ये देश का दुर्भाग्य ही कहूँगा कि शिक्षा को हम केवल व्ययकारी व अलाभकारी उपक्रम समझते हैं !! हम पडोसी देश पर विपत्ति आने पर दौड़ कर मदद करके राष्ट्रीय व अन्तराष्ट्रीय छवि बनाना चाहते हैं.. कोई " मन " की बात करता है कोई " मस्तिष्क " की बात !! लेकिन नाक के नीचे अपने ही देश के बेहाल शिक्षक का हाल पूछने में अपने पद की तौहीन समझते हैं !!
       लोकतंत्र के तथाकथित चौथे स्तम्भ इलेक्ट्रोनिक मीडिया को इस समस्या में कोई " ग्लैमर " नहीं दीखता या उसका मुंह बंद कर दिया गया है !! शायद मीडिया इस समस्या को खबर तब बनाएगा जब शिक्षक आत्मघाती कदम उठा चुका होगा !! शायद तब उसे समस्या में " ग्लैमर " नजर आ जाए !! और टेलीविजन पर फिर शुरू होगी तथाकथित "अर्थ शास्त्रियों " व " विद्वानों " की जुगाली !!
        लिखते-लिखते एक किस्सा याद आया !! .. छठे दशक की बात है एक कार्यक्रम में नोबेल पुरस्कार विजेता और इंग्लैण्ड के प्रधानमंत्री सर विस्टन चर्चिल समय से उपस्थित हो गए .. फिर भी कार्यक्रम काफी देर के बाद प्रारंभ हुआ !! कारण !! उनके पूर्व अध्यापक को आने में देर हो गयी थी ... !! प्रधानमंत्री चर्चिल ने जैसे ही चलने में असहजता महसूस कर रहे वृद्ध गुरु को आते देखा.. दौड़कर भीड़ के बीच जाकर गुरु को सहारा देकर मंच पर लाये और अपनी बगल में बिठाया ! फिर कार्यक्रम प्रारंभ हुआ !!
       लेकिन भारत में !!! जय हो " राष्ट्र निर्माता " की .... जय हो !! माँ शारदे के " पुजारी " की !!!