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Tuesday 17 January 2017

आत्मबोध



 आत्मबोध .....

        मेरठ के पास एक कस्बा है शामली, वहाँ एक अध्यापक थे, नाम था सुखवीर सिंह। चेहरा गहरा श्यामवर्ण होने के कारण, राह में आते-जाते, बच्चे उनको मौका मिलने पर "काला" ! "काला" ! कहकर चिढ़ाते और भाग जाते !! इन सब बातों पर उनको बहुत गुस्सा भी आता था और परेशान भी रहते थे । स्वभाव में भी चिड़चिड़ापन घर करने लगा था।
        एक दिन बच्चों ने मार्ग में उनको रोज की तरह फिर 'काला' ! 'काला' ! कहकर चिढ़ाया ! आज तो वे आगबबूला हो गए और बच्चों को पकड़ने दौड़े !! एक बच्चा पकड़ में आ गया !! पहले तो खूब पिटाई लगाई! ! इतने पर भी गुस्सा शांत न हुआ तो बच्चे को पकड़ कर उसके पिता के पास बच्चे की करतूत का चिट्ठा तफ्तीश से बयाँ किया !!
        मानो आज वे अपनी मन-मस्तिष्क की निरंतर पीड़ा का संपूर्ण समाधान चाहते थे !!
बच्चे के पिता ने शांतिपूर्वक गुरुजी की दिल की पीड़ा सुनकर सहज भाव में प्रश्न किया ; " गुरुजी, बच्चे ने सत्य ही कहा है !! क्या आपके चेहरे का रंग "काला" नही है ??"
       प्रतियुत्तर में यह प्रश्न सुनकर गुरुजी अवाक रह गए !!
       बिना उत्तर दिये, किंकर्तव्यमूढ़ शांतभाव से सीधे पेंटर की दुकान पर पहुंचे . पेंटर से अपने नाम की नई तख्ती बनवाई जिस पर अब नाम लिखवाया सुखवीर सिंह " काला " !!
   उसे अपने घर के दरवाजे पर बाहर की तरफ लटका दिया !!
        अब गुरूजी चैन से जीवन व्यतीत करने लगे !! अब उनको चिढ़ाने वाला कोई न था !! स्वभाव में चिड़चिड़ापन भी नहीं रहा ! शायद उनकी परेशानी का स्थाई समाधान इस घटना से अनायास ही हो चुका था।17.01.14

Monday 9 January 2017

आस्तिक या नास्तिक

आस्तिक या नास्तिक .....
       भारतीय दर्शन में दो मान्यताएँ समानांतर चलती हैं ..आस्तिक व नास्तिक. आस्तिक उन्हें कहा जाता है जो ईश्वर के अस्तित्व को मानता है और नास्तिक उसे कहा जाता है जो ईश्वर के अस्तित्व को नहीं मानता.
        दरअसल "ईश्वर" को पाली भाषा में "इस्सर" कहा जाता है जिसका अर्थ होता है "मालिक"..कालांतर में "इस्सर" का परिवर्तित रूप ही "ईश्वर" हो गया.
        वेद व उपनिषद ब्रह्म, आत्मा व ईश्वर को यथार्थ व सत्य मानते हैं, एवं जगत को माया, भ्रम व स्वप्नवत कहते हैं।इस मान्यता को यदि ठीक से न समझा जाय तो यह कदाचित अकर्मण्यता को ही जन्म देते हैं.
महापंडित राहुल सांकृत्यायन ने एक बार कहा था, कि मुझे ऐसा कोई नहीं मिला कह सके कि उसने ब्रह्म, आत्मा व ईश्वर को देखा है। बुद्ध के अनुसार ज्ञान प्राप्त करने के प्रत्यक्ष व अनुमान दो ही प्रमाण होते हैं।
         बुद्ध वैज्ञानिक दृष्टि से आस्तिक थे,अर्थात यथार्थवादी क्योंकि वे जगत के 'अस्तित्व' पर विश्वास करते थे और हमेशा इसके कल्याण के बारे में सोचते थे। उन्होंने देखा कि प्रत्यक्ष व अनुमान से जगत, प्रकृति, मनुष्यों आदि को देखा जा सकता है। उनके अस्तित्व पर विश्वास किया जा सकता है। इतना ही नहीं, बल्कि वे जगत में स्थित प्राणियों के कल्याण के लिए जीवन भर लगे रहे थे।
            भगवान बुद्ध ने जगत को मिथ्या व स्वप्नवत बताकर उसकी अवहेलना नहीं की, बल्कि जीवों को हिंसा से बचाने, उनके विकास व संरक्षण एवं प्राकृतिक संतुलन बनाए रखने के लिए जीवन भर प्रयास किया। जगत को भ्रम व माया कहने वालों ने कमोवेश,कमजोर मनुष्यों व स्त्रियों का भारी शोषण किया, लेकिन बुद्ध ने मानव कल्याण का प्रयास जीवन भर किया। यही उन्हें आस्तिक बनाता है।जबकि उन्हें सामान्यतया नास्तिक कहने की भूल की जाती है
वर्तमान देश काल और परिस्थितियों में भगवान बुद्ध का दर्शन व्यावहारिक व प्रासंगिक जान पड़ता है.