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Monday 28 September 2015

कौन कहता है आसमान में सुराख नहीं हो सकता,



                                         कौन कहता है आसमान में सुराख नहीं हो सकता,
                                                 एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों.

        राष्ट्र के अन्दर यदि किसी भी दिशा में सकारात्मक परिवर्तन लाना है तो समाज को विभिन्न माध्यमों से जागरूक करना आवश्यक है. परिवर्तन चमत्कार की तरह घटित नहीं होता !! बल्कि सम्बंधित दिशा में ईमानदारी से प्रयासों में निरंतरता हमें शनै शनै मगर दृढ़ता से मंजिल की तरफ ले जाती है...
            समाज में स्वच्छता के प्रति जागरूकता लाने के उद्देश्य से, आजकल निगम विद्यालयों द्वारा, स्वच्छ भारत अभियान के अंतर्गत प्रतिदिन अलग-अलग तरह के रोचक कार्यक्रम व प्रतियोगिताएं आयोजित की जा रही हैं. इस क्रम में आज विद्यालय में स्वच्छता अभियान में अभिभावकों की सहभागिता सुनिश्चित करने व स्वच्छता के प्रति जागरूकता उत्पन्न करने के उद्देश्य से प्रदर्शनी का आयोजन किया गया जिसमें काफी संख्या में अभिभावकों ने उत्साह के साथ भाग लिया..
          पूरे विद्यालय परिवार ने प्रधानाचार्या श्रीमती कमलेश कुमारी जी के कुशल मार्गदर्शन में प्रदर्शनी को सफल बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया ..
          मुझे ब्लैक बोर्ड सजाने व चिर-परिचित छायांकन का कार्य मिला. जैसा भी बन पड़ा !! ब्लैक बोर्ड को सजाने का प्रयास किया .


Wednesday 23 September 2015

चलता - फिरता - बोलता इतिहास : हमारे बुजुर्ग


 चलता - फिरता - बोलता इतिहास : हमारे बुजुर्ग


                तेज रफ़्तार जीवन ने मनुष्य की दिनचर्या बदल कर रख दी है. एक समय था जब बच्चे घर के बुजुर्गों के इर्द-गिर्द ही रहा करते थे, उनसे कहानी- किस्सों व व्यवहार से जाने-अनजाने में समृद्ध संस्कार प्राप्त करते थे लेकिन आज, मजबूरी कहिये या स्वच्छंदता में हस्तक्षेप बर्दाश्त न करने की मानसिकता के कारण एकल परिवार संस्कृति विकसित हुई है. बच्चे बुजुर्गों से दूर होते जा रहे हैं. इस क्रम में अपनी सभ्यता,संस्कृति व इतिहास से दूरियां बन जाना स्वाभाविक सी बात है !! खैर इस सम्बन्ध में फिर कभी चर्चा करूँगा ..
               यहाँ यह कहना चाहता हूँ कि हमारे बुजुर्ग, इतिहास की चलती - फिरती - बोलती पुस्तकें, गवाह और संस्कृति के संवाहक हैं. परम्परिक शिक्षा के अभाव में, बेशक उनके पास तथ्यपूर्ण जानकारी न हो लेकिन उनसे प्राप्त सांकेतिक जानकारी व अनुभवजनित विचार, विषय सापेक्ष रोचकता उत्पन्न करती है जो हमें शोध की तरफ प्रेरित अवश्य करती है. जब भी ससुराल जाता हूँ तो 85 वर्षीय, ससुर जी, आदरणीय श्री सिंगरोप सिंह तड़ियाल जी के सानिध्य में रात को एक-दो घंटे अवश्य व्यतीत करता हूँ ..            यह सानिध्य समय केवल पुराने समय की घटनाओं, संस्कृति, परिवेश व सामाजिक व्यवस्था पर ही केन्द्रित होता है... .जिस सफ़ेद लोई (शाल) को हमने ओढ़ा हुआ है उसे ससुर जी ने स्वयं 40 वर्ष पहले तैयार किया था।
              जहाँ कहीं भी जाता हूँ बुजुर्गों से मिलने का उत्साह रहता है . बुजुर्ग रूपी बरगद की स्नेह छाँव में जिज्ञासा शांत करने का कुछ अलग ही आनंद है, साथ ही स्नेह आशीर्वाद भी प्राप्त होता है . लेकिन विडंबना ये है कि हम स्वयं को आधुनिक दिखाने की होड़ में बुजुर्गों की बातों को गुजरे जमाने की और दकियानूसी बातों की संज्ञा देकर प्रायः नज़रंदाज़ ही करते हैं ! इस प्रकार एक काल खंड के अनुभवों से हम महरूम रह जाते हैं !! बुजुर्गों के प्रति हमारे व्यवहार को देखकर हमारी संतान भी बुजुर्गों की बात को महत्व नहीं देती ! 

Sunday 20 September 2015

स्वयं का सम्पूर्ण फेसबुक डाटा संग्रह ; क्यों और कैसे ! : एक सुझाव


स्वयं का सम्पूर्ण फेसबुक डाटा संग्रह ; क्यों और कैसे ! : एक सुझाव


          सोचता हूँ कि हो सकता है आपके लिए ये जानकारी महत्वपूर्ण न हो लेकिन फिर भी, सोचता हूँ कि हो सकता है मेरे जैसे कुछ अनविज्ञ साथी इस विषय पर रूचि अवश्य लेंगे !! क्योंकि हर कोई अपनी फेसबुक सामग्री को सुरक्षित रखना चाहेगा !.मौलिक पोस्ट करने वाले साथियों के लिए ये विषय अधिक महत्वपूर्ण है. आये दिन हैकर्स द्वारा आई. डी. हैक करने की पोस्ट आप देखते ही होंगे !! हैकर्स के अलावा फेसबुक टीम भी अधिक मित्रों व अधिक फोलोविंग वाली प्रोफाइल या पेज को लेकर सशंकित रहती है. हालाँकि ये स्थिति किसी के भी साथ बन सकती है !!
          सही व्यक्ति ही प्रोफाइल या पेज का इस्तेमाल कर रहा है ?? ये जानने के लिए आई. डी. को अस्थायी रूप से ब्लॉक कर, फेसबुक टीम द्वारा परीक्षा भी लेती है !! मैं इस तरह की परीक्षाओं से अब तक कुछ समयांतराल पर छ: बार गुजर चुका हूँ !!
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इस परीक्षा में मुख्य रूप से “ टैग “ की गयी पोस्ट्स के बारे में पूछा जाता है !! कि ये पोस्ट आपको किसने "टैग" की ?? मित्रों के प्रोफाइल फोटो दिखाकर भी पहचानने को कहा जाता है ... इसी कारण अनावश्यक टैग न करने का व स्वयं की तस्वीर ही प्रोफाइल तस्वीर बनाने का आग्रह करता हूँ

         अब मुख्य विषय पर आता हूँ, यदि किसी भी कारण से हम अपनी आई. डी. का इस्तेमाल करने या देख पाने में असमर्थ हो जाते हैं तो उस समय हमारी किंकर्तव्यविमूढ़ वाली स्थिति बन जाती है !! खासकर मौलिक सृजन करने वाले साथियों के लिए ये एक दु:स्वप्न से कम नहीं !! मेरे जैसे लापरवाह और आलसी व्यक्ति के लिए ये विषय बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि कुछ साथी तो “ सेव “ करते रहते हैं,मैं कभी करता हूँ कभी भूल जाता हूँ !! फिर भी तकनीकी कारणों से सिस्टम से डाटा फॉर्मेट हो जाने का भी खतरा तो बना ही रहता है .
         अब प्रश्न उठता है की आई. डी. के “हैक “ या “ ब्लॉक “ होने से पहले हमें अपने फेसबुक डाटा को कैसे सुरक्षित रख सकते हैं ?
       शायद ये विषय आपके लिए महत्वपूर्ण न हो लेकिन आई.डी. ब्लॉक व हैक होने की पोस्ट पढ़कर मुझे चिंता होने लगती थी !!
        प्रोफाइल के “ सेटिंग “ विकल्प पर क्लिक करने के बाद सबसे नीचे एक विकल्प आता है .. Download a copy of your Facebook data. ( शायद ये विकल्प मोबाइल में नहीं होता) इस पर क्लिक कीजिये और आगे बढ़ते चले जाइए. पहले आपके फेसबुक से संलग्न ई-मेल पते पर एक मेसेज आएगा फिर कुछ घंटों में , डाउनलोड के लिंक वाला मेसेज आयेगा, लिंक पर क्लिक करने पर लॅाग इन करने को पासवर्ड डाल दिजिए, डाउनलोडिंग ब्राउजर सैलेक्ट कर ओके क्लिक कीजिए । लो जी !! हो गया डाउनलोड शुरू। आपकी अब तक की फेसबुक सामग्री आपके सिस्टम में कम्प्रेस्ड फ़ाइल (Compressed File) के रूप में सुरक्षित हो जाती है .. है ना बिलकुल आसान !! अब आप नेट उपलब्ध रहने पर कभी भी फेसबुक को log in किये बिना पुरानी पोस्ट देख सकते हैं.. Script Matter को कॅापी - पेस्ट करके Word Document के रूप में "सेव" करके बिना नेट भी देख - पढ़ सकते हैं। कुछ समय अंतराल पर ये अनुक्रम दोहराते रहे और पहले " सेव " किये गए मैटर को हटाकर अपडेट मैटर को फिर सुरक्षित कर सकते हैं ..
          आई. डी. “हैक” या “ब्लाक” होने की दशा में आप अपने पुराने मित्रो की सूची देखकर, पुन: मित्र निवेदन भी भेज कर पुराने मित्रों के साथ पुन: जुड़ सकते हैं .. और पोस्ट किये गए फोटो भी पुन: प्राप्त कर सकते हैं ..

परीक्षा परिणाम : एक विश्लेषण !!


परीक्षा परिणाम : एक विश्लेषण !!


          खुशखबरी ये है कि हमारे साहबज़ादे, चैतन्य जयाड़ा ने आंशिक भूख हड़ताल खत्म कर दी है !! अब आप सोच रहे होंगे कि ये साहबजादे कौन सी आज़ादी की जंग लड़ रहे थे !! तो इतना ही कहूँगा रिजल्ट के शिकंजे से निकलने के लिए जनाब दो दिन से आंशिक भूख हड़ताल पर चले गए थे !!
         लेकिन रिजल्ट के तेवर देखिये ! बदस्तूर मुल्तवी हुए जा रहा था.! खूब समझाया पर क्या मजाल जो जनाब का लटका चेहरा जरा सा भी ऊपर को उठे !! भीषण गर्मी और धूप में फुटबॉल का अभ्यास करते रहने से जनाब का चेहरा वैसे भी काला पड़ गया है ऊपर से तनाव में भूख हड़ताल पर जाने से जनाब कोयला हुए जा रहे थे !
तो आज दोपहर में आये, जनाब के दसवीं जमात के रिजल्ट की बात भी कर ली जाय तो जनाब का CGPA, 8.8 है यानि 83.6%, ठीक-ठाक ही कहूँगा.
        अब आप सोच रहे होंगे दूसरे बच्चों के तो ढेर नंबर आये हैं. इतने अंको में बहुत ख़ुश होने जैसी बात तो नहीं बनती ! लेकिन मैं संतुष्ट हूँ क्योंकि चैतन्य ने स्वीकारा की नंबर कम हैं और मुझे इस कारण पोस्ट करने को भी मना किया ! संतुष्ट होने का कारण ये भी है कि चैतन्य, बेसबॉल में राष्ट्रीय स्तर और फुटबॉल में राज्य स्तर तक खेल चुका है.साथ में सैंट मैरी स्कूल का फुटबॉल कैप्टेन तो है ही ऊपर से पूरे स्कूल का गेम्स वाइस कैप्टेन भी है. पढाई के अलावा इन सब गतिविधियों व क्रियाओं में समय भी लगता है और अतिरिक्त शारीरिक ऊर्जा व्यय होने से थकान भी होती है जिसका फर्क पढाई पर पड़ना लाज़मी है.
साथियों, सबसे बड़ी बात सेवाकारक है दादी की पीठ सहलाता है पैर दबाता है बिना कहे !! इसलिए चैतन्य को कुछ छूट देना तो बनता ही है कि नहीं ??
        इस आलेख का उद्देश्य अपनी प्रसन्नता जताने से अधिक, चैतन्य को माध्यम बनाकर, कम अंक प्राप्त होने पर भी बच्चे के स्वाभाविक विकास पर प्रकाश डालना है। पोस्ट में चैतन्य (बच्चे) के व्यक्तित्व के अधिकतर सकारात्मक पहलुओं को केवल इसलिए स्पर्श किया गया है कि हम कम अंक प्राप्त होने पर अपने बच्चे की तुलना दूसरे अधिक अंक वाले बच्चों से बिलकुल भी न करें। अच्छे अंक प्राप्त करना एक कला है आवश्यक नहीं कि अधिक अंक पाने वाले छात्र को कम अंक पाने छात्र से अधिक ज्ञान हो !! हर बच्चे के अन्दर अकूत संभावनाएं व ऊर्जा होती हैं। 

         ये भी न भूलिए कि हर बच्चा दूसरे बच्चे से अलग होता है। बच्चा कभी भी वापसी कर सकता है। कम अंकों को ही उसके भविष्य के असुरक्षित होने का पैमाना न बनाइए। बच्चे का मन बहुत कोमल होता है, विपरीत रिजल्ट से व हमारी नकारात्मक टिप्पणियों से उसका मन आहत हो सकता है, इस मानसिक स्थिति का हमें तब पता चलता है जब स्थिति बेकाबू हो चुकी होती है। निरन्तर उलाहनों से बच्चे में हीन भावना घर कर जाती है जिससे जीवन भर निजात पाना आसान नही !घर, स्कूल और समाज के उलाहनों से क्षुब्ध होकर बच्चा स्वयं को बिलकुल अकेला, लाचार व परिस्थितियों से मुकाबला करने में असमर्थ समझने लगता है !! इससे उसका व्यवहार विद्रोही व आक्रामक भी हो सकता है !! साथ ही बच्चा जहाँ भी जाएगा पहले ही मानसिक रूप से स्वयं को हारा हुआ महसूस करेगा !!
          अत: पारिवारिक माहौल सामान्य रख कर, कम अंक प्राप्त होने पर " हमदर्दी " जताने वाले " हमदर्दों " से बच्चे को दूर रखिए। ऐसे समय पर बच्चे को उपजी हताशा की मन:स्थिति से जल्द से जल्द निकालने का काम प्राथमिकता से किया जाना चाहिए, क्योंकि वहअसफलता से हतोत्साहित होकर संकोचवश या अपराध बोधवश मन की बात कह सकने की स्थिति में नहीं होता !! इसलिए बच्चे को आउटिंग पर ले जाकर खुला माहौल प्रदान कीजिए। अपने बच्चे का सम्पूर्ण मूल्यांकन कीजिये कम अंक लाने पर भी उसकी पीठ थप थपाइए ... विश्वास में लीजिये और खेल-खेल में उसकी कमियों का धीरे-धीरे, दोस्त बनकर सकारात्मक तरीके से हल सुझाते हुए मिलजुल कर निस्तारण कीजिएगा . बहुत आवश्यक होने पर,ही बच्चे के सामने किसी अन्य को, उसके कम अंको को बच्चे के अन्य सकारात्मक पहलुओं से जोड़कर गर्व से बताइए ।
           विपरीत परिस्थितियों में, आपका सकारात्मक व सहयोग पूर्ण व्यवहार, वयस्क होते बच्चे को आपके करीब लायेगा इस तरह एक उत्साह भरा और सकारात्मक वातावरण निर्मित होगा जिससे बच्चे में आगे कुछ अच्छा कर दिखाने का जज्बा उत्पन्न होगा।
          यहीं से उसके व्यवहार, लगन और लक्ष्य के प्रति समर्पण भाव में अपेक्षित परिवर्तन नजर आने लगेगा और जो आप बच्चे से चाहते हैं वो आपको सहज ही प्राप्त हो सकता है। बच्चे पर अप्रत्यक्ष नजर रखना भी अति आवश्यक है।

Saturday 12 September 2015

मंजिल करीब आती हैं ...



मंजिल करीब आती हैं
कठिन राहों पर चलने के बाद
हासिल होता है कोई मुकाम
इम्तिहानों से गुज़र जाने के बाद..
 
... विजय जयाड़ा

          जब पढाये गए पुराने बच्चे मिलते हैं तो प्राथमिक कक्षाओं के समय की उनसे जुड़ी यादें उनसे ही साझा करने में बहुत आनंद आता है,
       तस्वीर में मेरे द्वारा पढाई गयी खेल प्रतिभा छात्राएं हैं. ..आज ये बच्चे आठवीं की छात्राएं हैं.. तब ये बच्चे चौथी कक्षा में पढ़ते थे,मेरे बाएं से पहली रुबिना है.. हम केंद्रीय खेल प्रतियोगिताओं में भाग लेकर बाइक से वापस आ रहे थे. भ्रमवश मैंने गलत मार्ग अपना लिया !! रुबिना को पता लगा तो घबरा कर रोने लगी !! किसी तरह मनोवैज्ञानिक तरीका अपनाकर रुबिना की घबराहट समाप्त की ..
               मेरे दायें से अंतिम सोनी है.. इस बच्ची को साथ की सहेलियां चिढ़ाती तो ये मैदान में ही रो पड़ती थी !! सोनी के   आज रवीना सीनियर सेकेंडरी स्कूल में अपने आयु वर्ग में खेल की कैप्टेन है और सोनी, आत्मविश्वास से परिपूर्ण मेधावी छात्रा !!
         पुरातन छात्राएं आज भी जब कोई सफलता प्राप्त करती हैं तो खुश होकर मुझे अपनी सफलता के बारे में बताने आती हैं..
आज ये खो-खो फ़ाइनल टाई करके आई हैं ..
       हर बच्चे के अन्दर असीम संभावनाएं निहित हैं !! आवश्यकता है बच्चों में आत्मविश्वास उत्पन्न कर उन संभावनाओं को मूर्त रूप देने की !!


Tuesday 8 September 2015

निगम शिक्षक पुरस्कार


निगम शिक्षक पुरस्कार 

            शिक्षक दिवस के अवसर पर एक दिन पूर्व, 4 सितम्बर को EDMC प्रेक्षागृह, पटपड़ औद्यौगिक क्षेत्र, में भव्य समारोह के मध्य,मेरे नियोक्ता पूर्वी दिल्ली नगर निगम द्वारा शिक्षकों को दिया जाने वाला सर्वोच्च पुरस्कार “निगम शिक्षक पुरस्कार“, माननीय महापौर, निगम आयुक्त, सदन के गणमान्य नेताओं, जन प्रतिनिधि व अधिकारियों के कर कमलों द्वारा पांच प्रधानाचार्य/प्रधानाचार्या व 20 अध्यापक/ अध्यापिका को प्रदान कर सम्मानित किया गया.. आपके स्नेह आशीर्वाद से सम्मान पाने वाले शिक्षकों में मैं भी था.
             इस पुरस्कार की प्रथम पात्रता अहर्ता, "क्षेत्रीय शिक्षक पुरस्कार", मुझे 2004 में मिल प्राप्त हो था। लम्बे अंतराल के बाद प्रधानाचार्या जी के निरन्तर आग्रह को इस वर्ष न टाल सका और "निगम शिक्षक पुरस्कार" हेतु स्वयं की प्रविष्टि की थी।                

             सम्मान समारोह में कई गणमान्य व्यक्तित्वों द्वारा हम शिक्षकों को सम्मानित दिया जा रहा था !! मेरे विद्यालय परिवार की कर्मठ व प्रेरणादायी व्यक्तित्व, प्रधानाचार्या श्रीमती कमलेश कुमारी जी, भी विद्यालय परिवार के उत्साही व स्नेहिल साथियों सहित वहां उपस्थित थीं !!
             लेकिन !! एक कमी मुझे अखर रही थी !! वो कमी थी !! पुरस्कार के क्रम में दो बार औचक निरीक्षण के दौरान जिन छात्राओं के उत्साहवर्धक व उत्कृष्ट प्रदर्शन पर मुझे सम्मानित किया जा रहा था, मेरी कक्षा की वे सभी छात्राएं वहां नहीं थी ! 

बिना शिक्षार्थी ! भला शिक्षक का क्या अस्तित्व !! 
            दरअसल प्रेक्षागृह में स्थान उपलब्धता के आधार पर सीमित संख्या में अतिथियों को आमंत्रित करने की विवशता है.
            पुरस्कार प्राप्त करने के दो दिन बाद अवकाश उपरान्त आज पुन: विद्यालय खुला तो प्रार्थना स्थल पर विद्यालय के सारे बच्चों के साथ मिलकर प्रसन्नता साझा की. तस्वीर में मेरी कक्षा के प्रतिभावान बच्चे हैं.
             प्रसन्नता की बात ये भी है कि ये यादगार तस्वीर मेरी पुरातन छात्रा व खेल प्रतिभा, रवीना ने क्लिक की है जो इस समय आठवीं कक्षा में है।
              पुरस्कार से सम्बंधित अधिकारियों के प्रति कृतज्ञ हूँ कि उन्होंने मुझे इस सम्मान के काबिल समझा साथ ही विद्यालय परिवार के स्नेह व उत्साहवर्धन का ह्रदय से आभारी हूँ.. पुराने साथी,अध्यापक/ अध्यापिकाओं, व छात्र/ छात्राओं का भी आभारी हूँ कि उन्होंने मुझे सदैव उत्साही बनाये रखा.


Friday 4 September 2015

दरस ..


शिक्षक दिवस पर हार्दिक बधाइयां व शुभ कामनाओं सहित ..

....... || दरस || .......

हक़ सबने जतलाया मगर
वो हमेशा ही खामोश थे
मांस पिंड को सुगढ़ बनाने में
    हमेशा ही वो व्यस्त थे ...

माता - पिता उनमे दिखे
सखा भी उनमे ही मिला
ज्ञान रस जी भर पिलाया
    नि:स्वार्थ प्रतिमूर्ति वो बने ...

अहर्निश चरण वंदन उनका
आज उनको अर्पित किया
   रूप अनेकों हैं उनके मगर..
    सबका दरस “गुरु“ में ही किया...

..विजय जयाड़ा