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Sunday 30 August 2015

अनुपम मंदिर

 

अनुपम मंदिर 

विद्यालय ही वह अनुपम मंदिर
किसी मजहब से नहीं यहाँ गिला,
हर चेहरे पर रौनक बसती है
  हर मजहब का फूल यहाँ खिला !!
 
... विजय जयाड़ा
 


Saturday 29 August 2015

जब मेरी शिष्या .... मेरी उर्दू की प्रथम शिक्षिका बनीं !!


 जब मेरी शिष्या .... मेरी उर्दू की प्रथम शिक्षिका बनीं !!

       आज विद्यालय में मध्यावकाश हुआ तो अरीबा सहसा शिकायत भरे लहजे में बोली “ सर जी, आपने कहा था, उर्दू सीखूंगा लेकिन अभी तक सीखना शुरू नहीं किया, आज मैं आपके लिए उर्दू का, " कायदा " (वर्णमाला पुस्तक) भी लायी हूँ.”
          कुछ दिन पहले मैंने उर्दू जानने वाली छात्राओं से कहा था कि मैं भी आपसे उर्दू सीखूंगा. इतने में कौतुहल और उत्साह से परिपूर्ण अरीबा, झट से मेरे लिए पेंसिल भी ले आई और बन गई मेरी शिक्षिका !! और मैं शिक्षार्थी !! उर्दू लिखना मेरे लिए सहज न था. मैडम अरीबा तुनक कर कहती “ ओफो ! सर जी, ऐसे नहीं ..ऐसे बनाइये !! मैं कभी अक्षर बनाने में गलती करता कभी नुक्ता लगाना भूल जाता !! तो मैडम अरीबा,अपने दोनों हाथ माथे पर रख स्वयं पर झुंझलाती !!
मध्यावकाश का समय समाप्त हो गया तो कहने लगी, “ कल मैं आपके लिए दूसरी किताब लाऊंगी उससे सीखने में आपको आसानी होगी”.
          खैर !! आज का सबक पूरा हुआ. प्रसन्नता भी हुई और बहुत आनंद भी आया क्योंकि आज मेरी ही छात्रा मेरी उर्दू की प्रथम शिक्षिका के रूप में थी. इस प्रक्रिया से अरीबा मैं आत्मविश्वास उत्पन्न होगा और स्वयं को नि:संकोच प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत करने का गुण भी विकसित होगा..
         मेरे विचार से ज्ञान जिस किसी भी स्रोत से आसानी से मिल जाय उसे लेने में संकोच या देरी करना उचित नहीं. ज्ञान किसी उम्र विशेष का मोहताज या पैरोकार नहीं और न ही ज्ञान की कोई सीमा है ..
        यह भी कहना चाहूँगा, प्रकृति सबसे बड़ा गुरु है और प्रकृति का हर सृजन, प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से ज्ञान देता है और ज्ञान प्रदान करने की क्षमता रखता है..
 
 
 
 


Friday 28 August 2015

सच है कि.....


    सच है कि .....
सजदों और इबादत से मिलता खुदा है,
   मगर ! बेनूर को ..

जो नूरानी कर दे, बसता उसमें भी खुदा है !

 
... विजय जयाड़ा
 
 

Thursday 27 August 2015

वृक्षारोपण सार्थकता और रक्षाबंधन

 

वृक्षारोपण सार्थकता और रक्षाबंधन

बिन मांगे ही जो लुटाते हैं,ध्यान उनका भी धरें,
वो जीते हैं स्वाभिमान से, किसी से मांगते नहीं !!.
                                                                     .. विजय जयाड़ा
            आज सुबह विद्यालय में प्रार्थना प्रारंभ हुई तो टहलते हुए हाल ही में लगाये गए पांच अर्जुन के पेड़ों का हाल-चाल जानने उनके पास पहुँच गया. आज भी चार पेड़ सुरक्षित थे !! प्रसन्नता हुई !! लेकिन जैसे ही पांचवे पेड़ की तरफ गया, मन ख़राब हो गया !! बेचारा मरणासन्न पड़ा मानों दर्द से कराह रहा था !! किसी उत्पाती ने उसके मूल तने को ही मोड़कर तोड़ने की कोशिश की थी !!
            तुरंत अपनी कक्षा की उत्साही बच्चियों, ललिता व गुनगुन से प्राथमिक चिकित्सा हेतु, पानी, दो अलग-अलग चौडाई की टेप मंगवाई, खाद मिली मिटटी का स्नेह लेप लगाकर एक लकड़ी के टुकड़े के सहारे तने को मूल अवस्था तक सीधा किया और अच्छी तरह से टेप लगा दिया.
         हमने कोई बहुत बड़ा काम नही किया !! लेकिन पेड़ पर रक्षा सूत्र बांधकर बहुत सुकून मिला !! साथ ही इन बच्चियों में प्रत्यक्ष रूप से वृक्ष मित्र होने के संस्कार भी संप्रेषित कर सका..

           रक्षाबंधन के दिन पेड़-पौधों पर भी रक्षा सूत्र बांधकर, उनकी दीर्घायु होने की कामना करके की स्वस्थ परंपरा,पेड़-पौधों की सुरक्षा व स्वच्छ पर्यावरण के सम्बन्ध में एक सार्थक पहल अवश्य हो सकती है..
          सोचता हूँ वृक्षारोपण को एक पखवाड़े व कुछ तस्वीरें क्लिक करने तक ही सीमित नहीं रखा जाना चाहिए. यदि रोपित वृक्षों के वयस्क हो जाने तक उनकी सुरक्षा और देखभाल सुनिश्चित की जाय, तो ही वृक्षारोपण सार्थक सिद्ध हो सकता है. इससे एक ओर जहाँ वन क्षेत्र बढेगा वहीँ बागवानी विभाग के माध्यम से वृक्षों की पौध तैयार करने पर किये जाने वाले सार्वजनिक धन की बर्बादी भी रुक सकती है..

Thursday 20 August 2015

व्यवहार में शिक्षा: वृक्ष मित्र शिक्षार्थी

 

व्यवहार में शिक्षा: वृक्ष मित्र शिक्षार्थी

            विद्यालय में रेतीली जमीन है तो वृक्ष की जड़ें मजबूती से जमीन को नहीं पकड़ पाती. इस कारण अधिक शाखाओं और पत्तियों के वजन के कारण वृक्ष एक तरफ झोक खाकर गिर सकता है. गत वर्ष ये पेड़ इसी कारण गिर गया था तब छोटा था तो किसी तरह संभाल लिया . लेकिन अब बड़ा और वजनदार हो गया है, अत: एक बार पेड़ के गिर जाने के बाद उसे संभाल पाना नामुमकिन होगा !!
            विद्यालय परिसर में पेड़-पौधों की देखभाल यदि एक टीम वर्क के तहत हो तभी विद्यालय में हरियाली संभव है, इस दिशा में हम भाग्यशाली हैं कि हमारी प्रधानाचार्या श्रीमती कमलेश जी (तस्वीर में) सेवानिवृत्ति के करीब होने के बावजूद भी बहुत ही उत्साही, कर्मठ व कर्तव्यनिष्ठ प्रधानाचार्या हैं.इस कारण विद्यालय परिवार का कार्य करने का उत्साह दुगना हो जाता है !! आज मध्याह्न भोजन व मध्यावकाश समय का उपयोग कर उमस भरे गर्म मौसम में साथी अध्यापक श्री गिरीश जी के साथ पेड़ों की छंटाई कर कक्षा में पहुंचा.
          सोचा !! दो मिनट पंखे की हवा में पसीना सुखा लूँ !! लेकिन तभी मेरी कक्षा की छात्रा, अरीबा, तुनकती सी बाल नाराजगी जताती हुई, मेरे पास आई और एक सांस में कई सवाल कर बैठी !!.. “ सर जी !! आप हमें पेड़ों की देखभाल करने को कहते हैं !! पेड़ उखाड़ने व तोड़ने को मना करते हैं !! आप ये भी बताते हैं कि पेड़- पौधों को तोड़ने व काटने से हमारी तरह दर्द भी महसूस होता है !! फिर आपने पेड़ की टहनियां क्यों काट दी ! उनको भी तो दर्द हुआ होगा !! उसकी पत्तियां भी टहनियों के साथ गिर गयी अब वो खाना कैसे बनाएगा !!
        अरीबा, अपने बाल मन में उठ रहे प्रश्नों के उत्तर जानने हेतु दृढ थी !! अब तो कक्षा की दूसरी छात्राएं भी प्रश्न वाचक निगाहों से मेरी तरफ देख रही थी !!
साथियों, मैं अक्सर बच्चों को वृक्ष मित्र होने के लिए प्रेरित करता रहता हूँ. बच्चे भी पेड़-पौधों की देखभाल मन से करते हैं. कुदरती आज कक्षा में भी सुबह मैंने उनको वृक्ष की पूरी फिजियोलोजी पूर्ण मनोयोग से समझाई थी !!
           मैंने धैर्यपूर्वक अरीबा के प्रश्न सुने. साथ ही मन ही मन मुझे यह जानकार बहुत प्रसन्नता भी हो रही थी कि पेड़-पौधों से मित्रभाव अपनाने के जिस तरह के संस्कार मैं बच्चों के मन मस्तिष्क पर अंकित करना चाहता था, उनमे मैं काफी हद तक सफल भी हुआ !!
            बहरहाल ! मैंने कक्षा में अरीबा की जिज्ञासा का पूर्ण मनोयोग से उचित समाधान किया तो अरीबा और दूसरी छात्राएं संतुष्ट हो गयी साथ ही छात्राओं को पेड़-पौधों की देखभाल के सम्बन्ध में अनायास ही व्यवहारिक रूप में सहजता से नया ज्ञान मिल गया !!
                 पोस्ट में अरीबा प्रकरण, पट कथा लेखन न होकर पूर्णतया यथार्थ परिपूर्ण है..

Monday 17 August 2015

मेरे शैक्षिक अनुप्रयोग : कक्षा में भाषा असजता


मेरे शैक्षिक अनुप्रयोग : कक्षा में भाषा असजता 

               मनोभावों को समझने का सबसे आसान माध्यम भाषा है. बहु भाषी व विविध संस्कृति संपन्न भारत के संविधान की आठवीं अनुसूची में 22 भारतीय भाषाओँ को मान्यता दी गयी है. आजादी के बाद भाषा विवाद से निपटने के लिए त्रिभाषा फ़ॉर्मूला बनाया गया था, इसको तैयार करने की शुरुआत 1960 के दशक में हुई जिससे उत्तर भारत और दक्षिण भारत के लोगों में भाषाई एक रूपता आ सके. इस त्रिभाषा फ़ॉर्मूला के तहत हिंदी भाषी राज्यों में छात्रों को जो तीन भाषाएँ पढाई जानी थी उसमे हिंदी अंग्रेजी और एक आधुनिक भारतीय भाषा (बांगला, तमिल, तेलगु, कन्नड़, असमिया,मराठी, और पंजाबी) शामिल थी ..
              इस त्रिभाषा फ़ॉर्मूला को तमिलनाडु के अलावा देश के दूसरे हिस्सों में बेहतर तरीके से लागू किया गया लेकिन हिंदी भाषी क्षेत्रों में इस फ़ॉर्मूले को लागू करने में लापरवाही हुई.
             अब विषय पर आता हूँ, तस्वीर में मेरे साथ कड़ी बच्ची प्रवीना है, काफी पहले इसकी माँ स्वर्गवासी हो गयी और कुछ माह पूर्व पिता का भी देहांत हो गया !! इस कारण ये बच्ची तमिलनाडु से दिल्ली अपने ताऊ जी के पास रहने आ गयी.
             जब इसका प्रवेश हुआ तो साथी अध्यापिका इसको मेरे पास लायी और बोली, इसको हिंदी पढना बिलकुल भी नहीं आता !!
              मैंने कहा, जिनको पढना नहीं आता, सरकार उनको पढ़ाने के लिए ही तो हमें वेतन देती है, जिनको पढना-लिखना सब कुछ आता है उन तैयार बच्चों के लिए तो पब्लिक स्कूल खुले हैं !! और इस बच्ची को अपनी चौथी कक्षा में मैंने दाखिल कर दिया !
              एक-दो दिन तो ये बच्ची कक्षा में सामान्य रूप से बैठी रही लेकिन तीसरे दिन जोर-जोर से रोती दिखी !! मैं कक्षा में आई नयी बच्ची की असहजता समझ गया ! प्रवीना का मनोबल बढाने के उद्देश्य से कुछ विकल्प सुझाता तो प्रवीना झटके से गर्दन हिलाकर मना कर देती !!
              कुछ देर बाद मैं समझ गया ! प्रवीना मेरी हिंदी में कही गयी बातों को समझ ही नहीं रही थी !! केवल अलग कक्षा में पढने वाली अपनी बहन के पास जाने की रट लगाये हुए थी !!
              अब मैंने व्यावहारिक धरातल पर उतरना उचित समझा, प्रवीना की बहन को बुलाकर प्रवीना से प्यार से पूछा कि माँ और पिता को तमिल में क्या कहते हैं ?? फिर श्याम पट्ट पर भी तमिल में लिखने को कहा. जब उसने लिख दिया तो ..प्रवीना के तमिल ज्ञान पर सारे बच्चों से ताली बजवाई. अब तो प्रवीना अब सहज थी और उसके चेहरे पर मुस्कराहट उतर आई !!
             प्रवीना से मैंने कहा, मुझे तमिल नहीं आती और आपको हिंदी !! अब से आप मुझे तमिल सिखाना और मैं आपको हिंदी सिखाऊंगा..यह सुनकर प्रवीना और भी खुश हो गयी.
              हिंदी और तमिल भाषाई धरातल पर हम दोनों, एक दूसरे के लिए एक ही स्तर पर हैं.. बल्कि प्रवीना मुझसे आगे है, क्योंकि वो कुछ ही दिनों में हिंदी समझने और थोडा बहुत बोलने भी लगी है. मैं भी प्रयास रत हूँ. प्रवीना से रोज बोलचाल के दो तीन वाक्य सीखता हूँ ..
भोजनावकाश समाप्त हुआ तो मैंने पूछा ,.. " प्रवीना !!, सापड़ साप्टिया ???
प्रवीना बोली, " सापटे " और हम दोनों हंस पड़े 

बहरहाल !!अब प्रवीना बहुत खुश है...
अब प्रवीना बहुत खुश है...


Saturday 15 August 2015

धरती मेरे देश की : आभार


आभार .._.\\ धरती मेरे देश की //._             

        कुछ दिन पूर्व मैंने स्वरचित “धरती मेरे देश की “ बाल गीत पोस्ट किया था. स्कूल के बच्चे उस गीत को स्वतंत्रता पर्व कार्यक्रम पर गाने की जिद करने लगे !! मैं धर्म संकट में पड़ गया ! मैं लिख तो सकता हूँ.. मंच सञ्चालन भी करता हूँ लेकिन नाचना और गाना दो क्षेत्र ऐसे हैं जिसमे स्वयं की शून्यता मुझे सदैव सालती है ! बच्चों की जिद पर पहले खुद प्रयास किया लेकिन फिर स्कूल की अध्यापिकाओं Riya SoniNidhi Malhotra जी की सेवाएं ली,
            दिल्ली में स्कूलों में एक दिन पूर्व विद्यालयों में स्वतंत्रता दिवस कार्यक्रम मनाये जाते हैं. आज प्रस्तुत कार्यक्रम में ये प्यारे-प्यारे बच्चे कार्यक्रम की अच्छी प्रस्तुति पर बधाई के पात्र तो हैं ही लेकिन धन्य हैं ये अध्यापिकाएं जिन्होंने इन छोटे छोटे बच्चों से अल्प समय में इच्छित भाव-भंगिमाएं बनवाकर, मेरी रचना को Action Song के रूप में मंच पर बहुत अच्छी तरह से प्रस्तुत कर मान्यता प्रदान की.. धन्यवाद रिया सोनी जी व निधि मल्होत्रा जी, आप दोनों ने इस रचना को अलग-अलग अंदाज में बहुत सुन्दर प्रस्तुतियां दी ....
          विद्यालय भी एक परिवार की तरह ही होता है. यदि विद्यालय परिवार का हर सदस्य अपने कौशल व निपुणता अनुसार सहयोग करे तो कार्यक्रम बहुत अच्छी तरह से प्रस्तुत किये जा सकते हैं ..
 

_.\\ धरती मेरे देश की //._

विविध धर्मों के फूल खिले हैं
बहुरंगी धरती....मेरे देश की,
झरने पर्वत .....बहती नदियाँ
प्यारी धरती.......मेरे देश की ....
बहुरंगी....धरती मेरे देश की । 1 ।
 
जगत कल्याणी.......अवतार प्रसूता
वीरों की जननी धरती मेरे देश की,
संत फकीर........सूफियों से सेवित
रत्नगर्भा............धरती मेरे देश की....
बहुरंगी.............धरती मेरे देश की । 2 ।

चरण पखारता हिन्द महासागर
मुकुट हिमालय .........डटा हुआ,
पूरब पश्चिम............वंदन करता
सतरंगी.........धरती मेरे देश की .....
बहुरंगी..........धरती मेरे देश की । 3 ।

हर दिन उत्सव...........खेले मेले हैं
खलिहान ......अनाजों से भरे हुए,
इस धरत. पर मिलजुल सब रहते
शस्य-स्यामल, धरती मेरे देश की...
बहुरंगी............धरती मेरे देश की । 4 ।

प्यारी दुनिया में सबसे प्यारा भारत
हम जय बोलें........भारत महान की,
जयकारा................भारत माता का
जय...............भारत भूमि महान की...
जय..............भारत भूमि महान की । 5 ।

... विजय जयाड़ा 08..08.15

Thursday 13 August 2015

SAVE EARTH : T - Shirt Painting

 

 SAVE EARTH : T - Shirt Painting  

By My Daughter, Deepika Jayara 

 

 


Monday 10 August 2015

स्पंदन : प्रकृति और अंधविश्वास

स्पंदन : प्रकृति और अंधविश्वास 


          यात्रा क्रम में एक पनियल स्थान पर
ड्रैगन फ्लाई उड़ते दिखे तो कौतुक जगा चलिए आज इस पर ही चर्चा हो जाय ! पानी वाले स्थानों पर आसानी से दिखाई देने वाले, ड्रैगन फ्लाई के जीवाश्मों से अनुमान लगाया गया है कि लाखों साल पहले ड्रैगन फ्लाई पूर्वजों के पंख 75 सेमी. तक बड़े होते थे !!
        किसी कालखंड में घटित शुभ-अशुभ घटनाओं के आधार पर हम सम्बंधित जड़-चेतन को ही स्वयं के लिए शुभ-अशुभ मानने लगते हैं ! देश-काल-परिस्थितियों को आधार बनाकर, तथ्यपरक व वैज्ञानिक विश्लेषण के अभाव में, कालांतर में वे मिथक संस्कृति में रच-बसकर अंधविश्वास का रूप ले लेते हैं !
                        
 
अब ड्रैगन फ्लाई को ही देख लीजिये ! जापान में इसे “ साहस-शक्ति और प्रसन्नता “ का प्रतीक मान कर “ शुभ “ जाता है जबकि यूरोप में इसे अभिशाप के रूप में “अशुभ “ माना जाता है !! इंडोनेशिया में इसे भोज्य सामग्री के रूप में इस्तेमाल किया जाता है वहीँ चीन और जापान में देशी पारंपरिक दवाइयों में इस्तेमाल भी किया जाता है ! और भारत में !! बच्चे इसके पैरों से धागा बाँधकर उड़ते हुए देखने का आनंद लेते हैं !!
साथियों, प्रकृति का हर सृजन संतुलन बनाये रखने के लिए आवश्यक है लेकिन कमोवेश अज्ञानतावश व स्वार्थवश, हम अपनी सुविधा के अनुसार ही जड़-चेतन की उपयोगिता को परिभाषित करने की कुचेष्टा करते हैं ! जब हम उनकी उपयोगिता से रूबरू होते हैं तब तक बहुत देर हो चुकी होती है ..
...और फिर पर्यावरण मंत्रालय व मीडिया के वातानुकूलित कक्षों में आमंत्रित की जाती हैं विचारगोष्ठियाँ !! और कागजों पर चलाये जाते हैं....खर्चीले.. “ संरक्षण “ अभियान !!!

Friday 7 August 2015

एक मार्मिक संवाद : महा मानव कलाम

 

एक मार्मिक संवाद : महा मानव  कलाम 

 

‘‘तुम्हारा भाई अखबार बेचता था और राष्ट्रपति बन गया था। तुम अभी भी टूटे छाते ठीक करते हो?’’
‘‘मेरे भाई ने मिसाइलें बनाई और देश को सुरक्षा का छाता दिया और मैं छाते ठीक करके लोगों के सिर को सुरक्षा दे रहा हूं।’’

‘‘लेकिन लोग तो आतंकी याकूब की बीवी को सांसद बनाने की वकालत कर रहे हैं, वह बने या नहीं आप तो बन ही सकते थे?’’
‘‘संसद में विद्वान होने चाहिए, मेरे जैसे कारीगर नहीं, मेरे जैसे इंसान कारखानों की शोभा होते हैं संसद की नहीं। मेरे लिए मेरी दूकान किसी संसद से कम नहीं, क्योंकि यह दूकान पवित्र भारत भूमि पर है।’’
‘‘उन्होंने वसियत तो बनाई होगी, बड़ा भाई होने से आप तो वैसे भी करोडपति बन गए होंगे, फिर दूकान का दिखावा क्यों?’’
‘‘वे सब चल-अचल संपत्ति जो उनके नाम थी, मेरी ही सलाह पर देश के कल्याणकारी कार्यो के लिए देश के नाम कर गए हैं, इससे अच्छी वसियत और क्या हो सकती थी!’’
एक इंटरव्यू के आधार पर..... 

    माननीय कलाम जी के बडे भाई जी के साक्षात्कार के कुछ अंश..