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Thursday 9 June 2016

सच्ची दोस्ती बसर कर रही है ..



     सच्ची दोस्ती बसर कर रही है ..

     स्कूल के पास मुख्य सड़क पर स्थित दुकान से सामान ले रहा था तभी पसीने में तर-बर ह्रष्ट-पुष्ट युवक के पहुंचते ही पहले से इंतजार कर रहे मित्र ने नाराजगी भरे लहजे में देर से पहुंचने का कारण पूछा !
" अरे यार ! तुझको तो पता है ना !! मेरे दोस्त की बहिन की शादी होने वाली है, उसके परिवार की माली हालत आजकल बहुत खराब है ! सुबह से अपनी जानकारी के लोगों से शादी के लिए रुपये जुटा रहा था, अब तक दस हजार हो पाए हैं ! इस कारण देर हो गई !! " यह कहते हुए उस युवक के चेहरे पर जोश, आत्मविश्वास और सुकून स्पष्ट झलक रहा था।
     उनकी आपसी बातें सुनकर मेरी उत्सुकता बढ़ी तो युवक से मुखातिब होकर पूरी कहानी सुनी। किस्सा मेरे स्कूल के पास का ही था । उस युवक को छोटी सी सहयोग धनराशि के साथ दिल से शाबासी और ढ़ेरों शुभकामनाएँ देकर मैं चल दिया।


      इस प्रसंग पर याद आता है साहिर लुधियानवी साहब का सदैव सार्थक गीत ...


साथी हाथ बढ़ाना।
एक से एक मिले तो कतरा, बन जाता है दरिया
एक से एक मिले तो ज़र्रा, बन जाता है सेहरा
एक से एक मिले तो राई, बन सकती है परबत
एक से एक मिले तो इंसाँ, बस में कर ले किस्‍मत
साथी हाथ बढ़ाना।


     इस प्रत्यक्ष प्रसंग से अनुभूत किया कि समाज में अभी भी इंसानियत और सच्ची मित्रता बसर कर रही है।
      मेरे अजनबी दोस्त ! मुझ जैसे तो फेसबुक पर दिन-रात बड़ी-बड़ी बातें और कोरा ज्ञान वाचने तक ही सीमित हैं लेकिन आदर्शों व मानवीयता को व्यवहारिक रूप में चरितार्थ करने के लिए ... 

                                        एक बड़ा सा सलाम ! ... तेरे नाम

Sunday 5 June 2016

कुदरत !!



       कुदरत !!

           स्कूल में छुटियाँ हैं आज मेरी ड्यूटी लगी थी. सुबह से ही काफी गर्मी थी स्कूल पहुँचते ही आदतन पक्षियों के गंदले और गर्म हो चुके पानी को बदला, पक्षियों को रोटी दाना डालकर गमले में लगे पौंधों को पानी देने और विद्यालय के सामान्य कार्य निपटाने के बाद कार्यालय के दरवाजे के पास बैठ गया.
गर्मी के कहर से बेहाल पक्षी व गिलहरी बारी-बारी से अपनी प्रजाति की टोलियों में आते और       

         फुदक-फुदक कर अपनी बोली में बतियाते हुए साथियों के साथ एक ही स्थान पर पड़े दाने और रोटी को बिना किसी लड़ाई - झगडे के खा रहे थे और सभी एक ही बर्तन से पानी भी पी रहे थे. कुछ देर दाना चुगकर पेड़ की शाखों पर बैठकर झूलते हुए बतियाते, फुर्र से आस-पास उड़ कर जाते लेकिन फिर पानी के डिब्बे के पास आ जाते !
          उनकी गतिविधियाँ देखने में बहुत आनंद आ रहा था. हालाँकि नए परिवेश में असहज प्रवासी नए नवेले पक्षियों के अलावा अन्य पक्षियों को मुझसे किसी प्रकार का भय महसूस नहीं हो रहा था लेकिन उनके स्वाभाविक व्यवहार को कैमरे में कैद करने के प्रयास में, मैं किसी तोपची की तरह कैमरा लिए दरवाजे की आड़ में बैठकर उनकी तस्वीर क्लिक करता रहा. इस क्रम में गर्मी का भभका फेंकते पंखे में भी समय कब बीत गया पता ही न लगा !!
        हालाँकि प्रवासी सुन्दर रंग-बिरंगे पक्षी मेरे कैमरे की जद में न आ सके लेकिन इस पोस्ट के माध्यम से जो प्रस्तुत करना चाहता हूँ उसके लिए पर्याप्त तस्वीरें मुझे मिल ही गयी ..


हॉर्न को खिलौना न समझें !!



हॉर्न को खिलौना न समझें !!

       शांत मष्तिष्क से मुख्य सड़क पर पहुंचा ही था कि पीछे से लगातार व अनावश्यक पैं - पैं हॉर्न बजाते परिपक्व उम्र के बाइक सवार ने मन अशांत कर दिया. हालांकि सड़क पर वाहन निर्बाध और अनुशासन में चल रहे थे फिर भी महाशय की पैं - पैं बंद होने का नाम ही नहीं ले रही थी.. मानो, गाड़ी का हॉर्न नहीं बल्कि बच्चे को नया-नया बाजा मिल गया हो !
      जब रहा न गया तो इशारे से समझाने के लिए दो-तीन बार पीछे मुड़कर देखा. खैर ! पैं - पैं महाशय ने बाइक का रुख बदल लिया लेकिन पैं - पैं बंद नहीं हुई ! लाल बत्ती हुई तो वहां भी .. पैं–पैं, पैं-पैं !!
      अब महाशय का पाला ठेठ देशी सज्जन से पड़ गया .. तेज धूप में लाल बत्ती होते ही पसीने से लथ-पथ उन सज्जन ने छूटते ही पैं-पैं महाशय को आड़े हाथों लेते हुए कहा, “ क्यों भाई ! तेरे अलावा क्या हम सब यही लाल बत्ती पर टेबल डाल कर डिनर करेंगे ?? जो तू इस तरह आगे बढ़ने की चिल्ल - पों मचाये हुए है !! रास्ते भर पैं-पैं करता ऐसे चला आ रहा है जैसे तेरे अलावा बाकी सब सड़क पर सन बाथ लेने के मूड में हैं ! कम से कम लाल बत्ती पर तो सब्र कर ! अरे यार ! कुत्ता भी बेवजह नहीं भौंकता तू तो मनुष्य सा दिखता है !! “
      अब तो पैं - पैं महाशय की शर्मिंदगी का अंत न था. शर्मिंदगी व जलालत में चुपचाप सबके सामने सुनने के अलावा कोई चारा भी न था !! हरी बत्ती होते ही पैं-पैं महाशय शर्मसार से चुपचाप चल दिए।
शहरों में पैं - पैं टाइप वाहन चालकों द्वारा अनावश्यक हॉर्न बजाने से उत्पन्न ध्वनि, वातावरण के ध्वनि प्रदूषण में लगभग 70% का योगदान करती है. अचानक और अवांछित ध्वनि, मानवीय व्यवहार, झुंझलाहट, अवसाद, मानसिक तनाव, उच्च रक्तचाप, याददाश्त में ह्रास, सुनने की क्षमता में कमी आदि प्रभाव उत्पन्न करती है.. रोड रेज हो जाना भी कोई बड़ी बात नहीं !!
      कुछ वाहन चालक व्यक्तिगत झुंझलाहट और तनाव के कारण भी बार-बार अनावश्यक हॉर्न बजाते हैं जो कि गलत है. हॉर्न बजाना भी जरूरी है लेकिन आवश्यक होने पर ही .. कहीं ऐसा न हो हमें भी पैं-पैं महाशय की तरह सबके सामने शर्मिंदगी और ज़लालत झेलनी पड़े... 

         अगर अपनी बात कहूँ तो बिना हॉर्न बजाये बाइक चलाते मुझे कई -कई महीने हो जाते हैं !!

Saturday 4 June 2016

5 जून विश्व पर्यावरण दिवस


5 जून विश्व पर्यावरण दिवस ....

        धरती पर आने के बाद, प्रथम सांस लेने से लेकर अंतिम सांस तक हर मौसम में यदि कोई मनुष्य की नि:स्वार्थ सेवा करता है ... तो वो है ... हरा-भरा वृक्ष !!
            "बहुजन हिताय -बहुजन सुखाय" का मंत्र वृक्ष को विरासत में मिला है।
      धरती पर रहकर आकाश की बुलंदियों को पाने का और आंधी-तूफानों में भी अडिग रहने का सन्देश देता एक पूर्ण विकसित वृक्ष एक साल में 80 से 120 किग्रा ऑक्सीजन देता है जबकि एक वयस्क मनुष्य लगभग 315 किग्रा ऑक्सीजन का उपयोग एक साल में करता है ..अंतर स्पष्ट है ..एक एकड़ जमीन पर लगाये गए वृक्ष, 18 मनुष्यों के लिए आवश्यक आक्सीजन की आपूर्ति कर सकते हैं .. 

      हमारे धर्मग्रंथों में भी वृक्षारोपण के प्रति जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य से वृक्षारोपण को पुण्य और सात पीढ़ियों के तारण से जोड़ा गया है।
      आइए, पर्यावरण दिवस को शुभकामनाओं के आदान- प्रदान तक ही सीमित न रहकर इस भीषण गर्मी में पेड़-पौधों को पानी देकर हम पुण्य के भागीदार बनें ..


Thursday 2 June 2016

कुदरत !!




   कुदरत !!

           हम किसी भी तरह की शारीरिक असहजता महसूस होने पर चिकित्सक की शरण में पहुँच जाते हैं ! लेकिन कुदरत ने प्राणियों को स्वयं ही अपनी चिकित्सा कर सकने का हुनर भी बक्शा है.
          आज पार्क में जब सभी कुत्ते छाँव में बैठे थे तो तेज धूप में इस आवारा कुत्ते को घास खाते देखा ! कौतुहल जगा !! सामान्यत: यह माना जाता है कि पाचन विकार सुधार हेतु कुत्ते घास खाते हैं, लेकिन केवल इतना ही नहीं कुत्ते पोषण सम्बन्धी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए भी घास खाते हैं .इस क्रम में रेशेदार भोजन और शरीर में आवश्यक पोषक तत्वों की पूर्ति हेतु कुत्ते अक्सर ऐसा करते हैं.
            ये तो हुई सामान्य सी जानकारी और कुत्ते द्वारा घास खाना भी बहुत सामान्य सी बात है लेकिन इस कुत्ते को घास खाता देख सोचता रहा ! हम मानव भी प्राणी ही हैं लेकिन अध्ययन व चर्चा से ही कुछ सीख पाते हैं ! .. जबकि अन्य प्राणी ..... !!
               एक गीत याद आया .. " जिसका कोई नहीं .. उसका तो खुदा है यारों... "