सच्ची दोस्ती बसर कर रही है ..
स्कूल के पास मुख्य सड़क पर स्थित दुकान से सामान ले रहा था तभी पसीने में तर-बर ह्रष्ट-पुष्ट युवक के पहुंचते ही पहले से इंतजार कर रहे मित्र ने नाराजगी भरे लहजे में देर से पहुंचने का कारण पूछा !" अरे यार ! तुझको तो पता है ना !! मेरे दोस्त की बहिन की शादी होने वाली है, उसके परिवार की माली हालत आजकल बहुत खराब है ! सुबह से अपनी जानकारी के लोगों से शादी के लिए रुपये जुटा रहा था, अब तक दस हजार हो पाए हैं ! इस कारण देर हो गई !! " यह कहते हुए उस युवक के चेहरे पर जोश, आत्मविश्वास और सुकून स्पष्ट झलक रहा था।
उनकी आपसी बातें सुनकर मेरी उत्सुकता बढ़ी तो युवक से मुखातिब होकर पूरी कहानी सुनी। किस्सा मेरे स्कूल के पास का ही था । उस युवक को छोटी सी सहयोग धनराशि के साथ दिल से शाबासी और ढ़ेरों शुभकामनाएँ देकर मैं चल दिया।
इस प्रसंग पर याद आता है साहिर लुधियानवी साहब का सदैव सार्थक गीत ...
साथी हाथ बढ़ाना।
एक से एक मिले तो कतरा, बन जाता है दरिया
एक से एक मिले तो ज़र्रा, बन जाता है सेहरा
एक से एक मिले तो राई, बन सकती है परबत
एक से एक मिले तो इंसाँ, बस में कर ले किस्मत
साथी हाथ बढ़ाना।
इस प्रत्यक्ष प्रसंग से अनुभूत किया कि समाज में अभी भी इंसानियत और सच्ची मित्रता बसर कर रही है।
मेरे अजनबी दोस्त ! मुझ जैसे तो फेसबुक पर दिन-रात बड़ी-बड़ी बातें और कोरा ज्ञान वाचने तक ही सीमित हैं लेकिन आदर्शों व मानवीयता को व्यवहारिक रूप में चरितार्थ करने के लिए ...
एक बड़ा सा सलाम ! ... तेरे नाम
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