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Sunday 5 June 2016

हॉर्न को खिलौना न समझें !!



हॉर्न को खिलौना न समझें !!

       शांत मष्तिष्क से मुख्य सड़क पर पहुंचा ही था कि पीछे से लगातार व अनावश्यक पैं - पैं हॉर्न बजाते परिपक्व उम्र के बाइक सवार ने मन अशांत कर दिया. हालांकि सड़क पर वाहन निर्बाध और अनुशासन में चल रहे थे फिर भी महाशय की पैं - पैं बंद होने का नाम ही नहीं ले रही थी.. मानो, गाड़ी का हॉर्न नहीं बल्कि बच्चे को नया-नया बाजा मिल गया हो !
      जब रहा न गया तो इशारे से समझाने के लिए दो-तीन बार पीछे मुड़कर देखा. खैर ! पैं - पैं महाशय ने बाइक का रुख बदल लिया लेकिन पैं - पैं बंद नहीं हुई ! लाल बत्ती हुई तो वहां भी .. पैं–पैं, पैं-पैं !!
      अब महाशय का पाला ठेठ देशी सज्जन से पड़ गया .. तेज धूप में लाल बत्ती होते ही पसीने से लथ-पथ उन सज्जन ने छूटते ही पैं-पैं महाशय को आड़े हाथों लेते हुए कहा, “ क्यों भाई ! तेरे अलावा क्या हम सब यही लाल बत्ती पर टेबल डाल कर डिनर करेंगे ?? जो तू इस तरह आगे बढ़ने की चिल्ल - पों मचाये हुए है !! रास्ते भर पैं-पैं करता ऐसे चला आ रहा है जैसे तेरे अलावा बाकी सब सड़क पर सन बाथ लेने के मूड में हैं ! कम से कम लाल बत्ती पर तो सब्र कर ! अरे यार ! कुत्ता भी बेवजह नहीं भौंकता तू तो मनुष्य सा दिखता है !! “
      अब तो पैं - पैं महाशय की शर्मिंदगी का अंत न था. शर्मिंदगी व जलालत में चुपचाप सबके सामने सुनने के अलावा कोई चारा भी न था !! हरी बत्ती होते ही पैं-पैं महाशय शर्मसार से चुपचाप चल दिए।
शहरों में पैं - पैं टाइप वाहन चालकों द्वारा अनावश्यक हॉर्न बजाने से उत्पन्न ध्वनि, वातावरण के ध्वनि प्रदूषण में लगभग 70% का योगदान करती है. अचानक और अवांछित ध्वनि, मानवीय व्यवहार, झुंझलाहट, अवसाद, मानसिक तनाव, उच्च रक्तचाप, याददाश्त में ह्रास, सुनने की क्षमता में कमी आदि प्रभाव उत्पन्न करती है.. रोड रेज हो जाना भी कोई बड़ी बात नहीं !!
      कुछ वाहन चालक व्यक्तिगत झुंझलाहट और तनाव के कारण भी बार-बार अनावश्यक हॉर्न बजाते हैं जो कि गलत है. हॉर्न बजाना भी जरूरी है लेकिन आवश्यक होने पर ही .. कहीं ऐसा न हो हमें भी पैं-पैं महाशय की तरह सबके सामने शर्मिंदगी और ज़लालत झेलनी पड़े... 

         अगर अपनी बात कहूँ तो बिना हॉर्न बजाये बाइक चलाते मुझे कई -कई महीने हो जाते हैं !!

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