ad

Tuesday 8 December 2015

हमारा हरा-भरा विद्यालय



हमारा हरा-भरा विद्यालय

नित नूतन जीवन..
स्फूर्ति तन मे पाता हूँ,
रोज प्रात मतवाले उपवन में
खुद से ही मिल पाता हूँ,
बीत गया जो बचपन मेरा
उसका दीदार कर पाता हूँ
कल्पना सागर में नित गोते
विद्या उपवन में लगाता हूँ,
मूर्त रूप पाने की चाह में
कुछ नव सृजन पुष्प उगाता हूँ.

  विजय जयाड़ा
 

Thursday 3 December 2015

जज्बातों के सैलाब में अक्सर अल्फ़ाज़ बह जाते हैं



जज्बातों के सैलाब में अक्सर अल्फ़ाज़ बह जाते हैं
होंठ बुदबुदाते हैं मगर स्वर कुंद पड़ जाते हैं,
कहने की जिद में भूल हो तो जज्बातों को सजा देना
आपका साथी हूँ साथियों, मुझे माफ कर देना ..

... विजय जयाड़ा

        साथी अध्यापिका श्रीमती शीला देवी जी के सेवानिवृत्ति सम्मान कार्यक्रम में प्रधानाचार्या श्रीमती कमलेश जी द्वारा सौंपी गई मंच संचालन की कठिन जिम्मेदारी की शुरुआत इस शेर से की !!
       मैं स्वयं भी भावुक प्रकृति का हूँ और विदाई के भावनात्मक माहौल में मंच संचालन विधा से मैं कितना न्याय कर पाया, ये तो कार्यक्रम में उपस्थित अतिथिगण ही ज्यादा बेहतर बता सकेंगे लेकिन आज मैं आत्मविश्वास बटोरने में सफल अवश्य रहा।

        कलाम साहब ने कहा है .. उत्कृष्ठता, आकस्मिक घटना नहीं !! निरंतर कार्य करते रहने से उत्कृष्ठता प्राप्त होती है.
          तस्वीर की पृष्ठभूमि में श्यामपट्ट सज्जा पर भी मैनें ही हाथ आजमाए हैं।


Thursday 12 November 2015

संस्कृति से जुड़ा प्राचीन वाद्य : मृदंग



संस्कृति से जुड़ा प्राचीन वाद्य : मृदंग

       पांच वर्ष पूर्व, दस दिन की उड़ीसा घुमक्कड़ी के दौरान संस्कृति समृद्ध उड़ीसा के सादगी परिपूर्ण जन-जीवन, ऐतिहासिक व धार्मिक स्थलों से काफी करीब से रूबरू होने का सौभाग्य मुझे प्राप्त हुआ था.
       कल दीपावली के अवसर पर, कॉलोनी में उड़ीसा निवासी, बहुत पुराने मित्र कपिल राय जी, मृदंग गले में डालकर कर गीत-संगीत का माहौल बनाने को ही थे कि मैं उनके घर पहुँच गया. मृदंग की सज्जा देखकर आकर्षित हुआ !! तो उत्सुकता में कपिल जी से मृदंग लेकर अपने गले में डाल कर अनाड़ी स्टाइल में थाप देने को ही था कि कपिल जी ने रोका !
          “ भाई साहब ! ऐसे नहीं !! मृदंग पर थाप देने के कुछ नियम हैं, अकेले बाएं हाथ से थाप देने पर, ब्रह्म हत्या और अकेले दायें हाथ से थाप देने पर गौ हत्या मानी जाती है ! “ और दोनों हथेलियों से एक साथ मृदंग पर एक साथ थाप देते हुए मस्त अंदाज में बोले, “दोनों हाथों से एक साथ थाप देकर ...ऐसे बजाइए !!
           कपिल जी की बात सुनकर सोचने लगा ! ये वर्जनाएं संभवत: संगीत में फूहड़ता रोकने और संगीत की मर्यादा व शालीनता बनाये रखने के उद्देश्य से धर्म से जोड़कर लगायी गयी होंगी !!
           मृदंग, ढोलक की तरह का ही थाप वाद्य है जो दक्षिण भारत में प्राचीन काल से प्रचलित है लकड़ी के खोल पर चमड़े की थाप से मढ़े जाने वाले मृदंग के एक सिरे की गोलाई दूसरी सिरे से कम होती है. चैतन्य महाप्रभु ने दोनों शिष्यों के साथ मिलकर मृदंग, झांझ, मजीरे आदि की ताल पर भक्ति की एक नयी धारा बहायी.
         अमीर खुसरो ने मृदंग को काटकर ही तबला बनाया था.. जिसका आधुनिक संगीत में वाद्य के रूप में हर जगह उपयोग किया जाता है.   

           हर विधा के कुछ नियम होते हैं और एक अनुशासन होता है. उनको अंतर्मन से अनुसरित करने पर ही साधना की सफलता सुनिश्चित है तत्पश्चात ही सम्बंधित विधा में नए आयाम स्थापित करने का मार्ग प्रशस्त हो पाता है..

 

Monday 26 October 2015

स्मृतियाँ


       


                 अमेरिका में शैक्षिक क्षेत्र में सेवारत संगठन, Melinda And Gates Foundation से जुड़े, मृदुभाषी व शालीन स्वभाव के धनी श्री Allen Goldston, आज हमारे विद्यालय में, भारतीय विद्यालयों में प्राथमिक शिक्षा व्यवस्था का जायजा लेने के उद्देश्य से पहुंचे,
                मेरी कक्षा में पहुंचे तो विदेशी व्यक्ति को देख छोटे बच्चों में कौतुहल होना स्वाभाविक सी बात थी. स्वयं मैं भी इन क्षणों की स्मृतियाँ सहेजने का लोभ संवरण न कर सका.. 


Wednesday 21 October 2015

जब मैं पहाड़ के नीचे से गुजरा !! : संस्मरण


जब मैं पहाड़ के नीचे से गुजरा !!

     ( निवेदन : ये कौतुहल जनित और निहायत व्यक्तिगत संस्मरण है इसका उद्देश्य किसी भी तरह से अंधविश्वास को पोषित करना नहीं है.)
             कल एक जिज्ञासु की जन्म कुंडली लेकर परिचित अच्छे ज्योतिष, पंडित जी के पास पहुंचा और जिज्ञासु का प्रश्न प्रस्तुत किया. पंडित जी ने पूर्ण मनोयोग से कुंडली का अध्ययन किया और फलित बताया लेकिन मैं पूर्ण संतुष्ट नहीं हो पाया !!
             मैं उस जिज्ञासु की हस्तरेखा का अध्ययन पहले ही कर चुका था तो अंत में मैंने सकुचाते हुए पंडित जी से, जो उस जिज्ञासु की हस्तरेखा देखकर फलित अनुभूत किया था, साझा किया, पंडित जी ने फिर से लेपटॉप निकालकर गणना शुरू की !! तो मेरे आंकलन से पूर्ण सहमती जताई !!
           पंडित जी ने उत्सुकता व कौतुहलवश अपने बेटे का भी हाथ देखने का आग्रह किया !! अब तो जैसे ये बिना पूर्व निर्धारित समय सारणी के ही मेरी त्वरित परीक्षा ली जा रही थी !!
मेरा नर्वस होना स्वाभाविक था ! क्योंकि पंडित जी स्वयं अच्छे पेशेवर ज्योतिष हैं ! आत्मविश्वास डोलने लगा और सोचने लगा !! विजय जयाड़ा !! आज आया तू पहाड़ के नीचे !!
           खैर, आत्मविश्वास बटोरकर फलित वाचना प्रारम्भ किया और जो कुछ कहा, उसकी सत्यता को क्रॉस चैक करने के लिए, जिज्ञासु भाव से पंडित जी से ही जानना चाहा.
पंडित जी आश्चर्यचकित होकर कहने लगे, मास्टर जी .. हम तो कुंडली से शुभ-अशुभ समय का काल निर्धारित कर देते हैं लेकिन आपने तो, हस्त रेखाओं से ही घटनाओं का बहुत सटीक काल निर्धारण कर लिया !! फिर मेरे पास क्यों कुंडली लेकर आते हो. मैंने कहा महोदय मैं शौकिया हूँ और आप पेशेवर !! लिहाजा,अधिक अनुभव होने के कारण आपका ज्ञान पुख्ता है। आपके पास आकर मैं स्वयं द्वारा आंकलित फलित को क्रॅास चैक कर लेता हूँ जिससे मेरा आत्मविश्वास बढ़ता है ..
           संस्मरण द्वारा स्वयं को प्रचारित की मंशा कदापि नहीं है। जिज्ञासुओं के बढ़ते विश्वास के उपरान्त घर पर आने वाले जिज्ञासुओं की बढती संख्या के कारण, मैं यह काम लगभग आठ वर्ष पूर्व ही बंद कर चुका हूँ, लेकिन पहली बार पहाड़ के नीचे से गुजरने के बाद जो आत्मविश्वास हासिल हुआ वो पहले कभी नहीं हुआ था !!
          इतना अवश्य कहूँगा कि.....

 किसी भी क्षेत्र में अर्जित ज्ञान, समाज द्वारा हमारी सहज स्वीकार्यता बढ़ाता है..

Sunday 18 October 2015

परवाज़ परिंदों की भी एक हद में ही रह जाए..



                देहरादून से प्रकाशित साप्ताहिक समाचार पत्र "न्यू एनर्जी स्टेट " में मेरी रचना को स्थान देने के लिए संपादक श्री गणेश जुयाल जी का हार्दिक धन्यवाद. 

                                                    परवाज़ परिंदों की भी एक हद में ही रह जाए
                                                 अगर आसमान भी परिंदों में आपस में बंट जाए !
                                               क्यों सरहद बनी जो बांटती है दिलों और मुल्कों को
                                             काश ! हर इंसान भी सरहद छोड़ कर परिंदा हो जाए !
                                                                       .. विजय जयाड़ा
 

                     फेसबुक पर " न्यू एनर्जी स्टेट " पत्र का मित्र बनते समय मुझे यह ज्ञात न था कि इस पत्र के संपादक श्री गणेश जुयाल जी मेरे पूर्व छात्र रहे हैं !
                   एक दिन जब जुयाल जी ने मेरी रचना को अपने पत्र में स्थान दिया और रचना के साथ मेरा नाम " "विजय प्रकाश जयाड़ा", प्रकाशित किया तो अपना सही नाम पढ़कर मुझे कौतुहल मिश्रित आश्चर्य अनुभूत हुआ !! क्योंकि मुझे विजय जयाड़ा के नाम से ही अधिकतर साथी जानते हैं ! जिज्ञासा हुई तो पता लगा कि संपादक मेरे पूर्व छात्र रह चुके हैं ! बहुत प्रसन्नता हुई.
साथियों, आज के समय में अखबार प्रकाशित करना किसी कठिन चुनौती को स्वीकार करने से कम नहीं ! अखबार प्रकाशित करने के लिए बहुमुखी प्रतिभा का धनी होना आवश्यक है.
               लकधक इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के वर्चस्व के दौर में प्रिंट मीडिया कठिन दौर से गुजर रहा है कई अखबार पाठक व अर्थाभाव में दम तोड़ रहे हैं. मुझे आत्मिक प्रसन्नता व गर्व अनुभूत हो रहा है कि इस कठिन दौर में भी मेरे पूर्व छात्र श्री गणेश जुयाल, दृढ़ता से सफलता पूर्वक साप्ताहिक पत्र का संपादन कर रहे हैं.
                 एक अध्यापक को इससे अधिक और क्या प्रसन्नता हो सकती है कि उसका छात्र अपनी कलम के माध्यम से समाज की सेवा में रत है. रचना प्रकाशन प्रसन्नता से अधिक मुझे अपने छात्र की योग्यता पर गर्व है.


Monday 5 October 2015

जब शिक्षार्थी किताबों में छपे प्रकरण से उबने लगें !!


                         जब शिक्षार्थी किताबों में छपे प्रकरण से उबने लगें तो जिस वातावरण से उनका रोज वास्ता पड़ता है उसे ही विषय प्रकरण से जोड़कर रोचकता बढ़ाई जा सकती है ..
आज अपनी कक्षा-तृतीय, में नीम की उपयोगिता समझा रहा था तो सहसा ही विद्यालय में, अब
विशाल आकर ले चुके पेड़ की याद आ गयी .. सब बच्चे जानते हैं कि उस नीम को मैंने लगाया था.. इस कारण उससे उनको लगाव भी है. बस फिर क्या था, प्रकरण को उस नीम के पेड़ से जोड़कर छात्राओं के सहयोग से उन्ही की भाषा में,धीरे-धीरे बढ़ते हुए, इस बाल कविता का जन्म हो गया !! ... मजे की बात !!! बच्चों ने स्वयं ही इस कविता को एक्शन बेस्ड भी बना दिया !!! धन्यवाद, मेरी प्रिय छात्राओं..
प्रकरण में रोचकता भी आ गयी.. वृक्ष लगाओ का सन्देश भी दे दिया .. और छात्राओं में साहित्यिक सृजन का अंकुर भी प्रस्फुटित हो गया .... अर्थात एक पंथ तीन काज !!

>>> नीम का पेड़ <<<

सुबह सवेरे सबसे पहले
गेट से दिखता प्यारा नीम,
सुबह-सुबह जब स्कूल पहुंची
सो रहा था प्यारा नीम,
झट मैंने जो उसको पानी डाला
सोकर जागा प्यारा नीम,
लेकर अंगडाई टहनियां हिलाता
खिल-खिलाकर हंसा प्यारा नीम,
बच्चे खुश होकर जा लिपटे
सबको भाता हरा-भरा प्यारा नीम,
आओ सब मिलकर पेड़ लगायें
रोग भगाता मनभावन प्यारा नीम.

^^ विजय जयाड़ा व कक्षा-3 की छात्राएं


Monday 28 September 2015

कौन कहता है आसमान में सुराख नहीं हो सकता,



                                         कौन कहता है आसमान में सुराख नहीं हो सकता,
                                                 एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों.

        राष्ट्र के अन्दर यदि किसी भी दिशा में सकारात्मक परिवर्तन लाना है तो समाज को विभिन्न माध्यमों से जागरूक करना आवश्यक है. परिवर्तन चमत्कार की तरह घटित नहीं होता !! बल्कि सम्बंधित दिशा में ईमानदारी से प्रयासों में निरंतरता हमें शनै शनै मगर दृढ़ता से मंजिल की तरफ ले जाती है...
            समाज में स्वच्छता के प्रति जागरूकता लाने के उद्देश्य से, आजकल निगम विद्यालयों द्वारा, स्वच्छ भारत अभियान के अंतर्गत प्रतिदिन अलग-अलग तरह के रोचक कार्यक्रम व प्रतियोगिताएं आयोजित की जा रही हैं. इस क्रम में आज विद्यालय में स्वच्छता अभियान में अभिभावकों की सहभागिता सुनिश्चित करने व स्वच्छता के प्रति जागरूकता उत्पन्न करने के उद्देश्य से प्रदर्शनी का आयोजन किया गया जिसमें काफी संख्या में अभिभावकों ने उत्साह के साथ भाग लिया..
          पूरे विद्यालय परिवार ने प्रधानाचार्या श्रीमती कमलेश कुमारी जी के कुशल मार्गदर्शन में प्रदर्शनी को सफल बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया ..
          मुझे ब्लैक बोर्ड सजाने व चिर-परिचित छायांकन का कार्य मिला. जैसा भी बन पड़ा !! ब्लैक बोर्ड को सजाने का प्रयास किया .


Wednesday 23 September 2015

चलता - फिरता - बोलता इतिहास : हमारे बुजुर्ग


 चलता - फिरता - बोलता इतिहास : हमारे बुजुर्ग


                तेज रफ़्तार जीवन ने मनुष्य की दिनचर्या बदल कर रख दी है. एक समय था जब बच्चे घर के बुजुर्गों के इर्द-गिर्द ही रहा करते थे, उनसे कहानी- किस्सों व व्यवहार से जाने-अनजाने में समृद्ध संस्कार प्राप्त करते थे लेकिन आज, मजबूरी कहिये या स्वच्छंदता में हस्तक्षेप बर्दाश्त न करने की मानसिकता के कारण एकल परिवार संस्कृति विकसित हुई है. बच्चे बुजुर्गों से दूर होते जा रहे हैं. इस क्रम में अपनी सभ्यता,संस्कृति व इतिहास से दूरियां बन जाना स्वाभाविक सी बात है !! खैर इस सम्बन्ध में फिर कभी चर्चा करूँगा ..
               यहाँ यह कहना चाहता हूँ कि हमारे बुजुर्ग, इतिहास की चलती - फिरती - बोलती पुस्तकें, गवाह और संस्कृति के संवाहक हैं. परम्परिक शिक्षा के अभाव में, बेशक उनके पास तथ्यपूर्ण जानकारी न हो लेकिन उनसे प्राप्त सांकेतिक जानकारी व अनुभवजनित विचार, विषय सापेक्ष रोचकता उत्पन्न करती है जो हमें शोध की तरफ प्रेरित अवश्य करती है. जब भी ससुराल जाता हूँ तो 85 वर्षीय, ससुर जी, आदरणीय श्री सिंगरोप सिंह तड़ियाल जी के सानिध्य में रात को एक-दो घंटे अवश्य व्यतीत करता हूँ ..            यह सानिध्य समय केवल पुराने समय की घटनाओं, संस्कृति, परिवेश व सामाजिक व्यवस्था पर ही केन्द्रित होता है... .जिस सफ़ेद लोई (शाल) को हमने ओढ़ा हुआ है उसे ससुर जी ने स्वयं 40 वर्ष पहले तैयार किया था।
              जहाँ कहीं भी जाता हूँ बुजुर्गों से मिलने का उत्साह रहता है . बुजुर्ग रूपी बरगद की स्नेह छाँव में जिज्ञासा शांत करने का कुछ अलग ही आनंद है, साथ ही स्नेह आशीर्वाद भी प्राप्त होता है . लेकिन विडंबना ये है कि हम स्वयं को आधुनिक दिखाने की होड़ में बुजुर्गों की बातों को गुजरे जमाने की और दकियानूसी बातों की संज्ञा देकर प्रायः नज़रंदाज़ ही करते हैं ! इस प्रकार एक काल खंड के अनुभवों से हम महरूम रह जाते हैं !! बुजुर्गों के प्रति हमारे व्यवहार को देखकर हमारी संतान भी बुजुर्गों की बात को महत्व नहीं देती ! 

Sunday 20 September 2015

स्वयं का सम्पूर्ण फेसबुक डाटा संग्रह ; क्यों और कैसे ! : एक सुझाव


स्वयं का सम्पूर्ण फेसबुक डाटा संग्रह ; क्यों और कैसे ! : एक सुझाव


          सोचता हूँ कि हो सकता है आपके लिए ये जानकारी महत्वपूर्ण न हो लेकिन फिर भी, सोचता हूँ कि हो सकता है मेरे जैसे कुछ अनविज्ञ साथी इस विषय पर रूचि अवश्य लेंगे !! क्योंकि हर कोई अपनी फेसबुक सामग्री को सुरक्षित रखना चाहेगा !.मौलिक पोस्ट करने वाले साथियों के लिए ये विषय अधिक महत्वपूर्ण है. आये दिन हैकर्स द्वारा आई. डी. हैक करने की पोस्ट आप देखते ही होंगे !! हैकर्स के अलावा फेसबुक टीम भी अधिक मित्रों व अधिक फोलोविंग वाली प्रोफाइल या पेज को लेकर सशंकित रहती है. हालाँकि ये स्थिति किसी के भी साथ बन सकती है !!
          सही व्यक्ति ही प्रोफाइल या पेज का इस्तेमाल कर रहा है ?? ये जानने के लिए आई. डी. को अस्थायी रूप से ब्लॉक कर, फेसबुक टीम द्वारा परीक्षा भी लेती है !! मैं इस तरह की परीक्षाओं से अब तक कुछ समयांतराल पर छ: बार गुजर चुका हूँ !!
_____________________________________
इस परीक्षा में मुख्य रूप से “ टैग “ की गयी पोस्ट्स के बारे में पूछा जाता है !! कि ये पोस्ट आपको किसने "टैग" की ?? मित्रों के प्रोफाइल फोटो दिखाकर भी पहचानने को कहा जाता है ... इसी कारण अनावश्यक टैग न करने का व स्वयं की तस्वीर ही प्रोफाइल तस्वीर बनाने का आग्रह करता हूँ

         अब मुख्य विषय पर आता हूँ, यदि किसी भी कारण से हम अपनी आई. डी. का इस्तेमाल करने या देख पाने में असमर्थ हो जाते हैं तो उस समय हमारी किंकर्तव्यविमूढ़ वाली स्थिति बन जाती है !! खासकर मौलिक सृजन करने वाले साथियों के लिए ये एक दु:स्वप्न से कम नहीं !! मेरे जैसे लापरवाह और आलसी व्यक्ति के लिए ये विषय बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि कुछ साथी तो “ सेव “ करते रहते हैं,मैं कभी करता हूँ कभी भूल जाता हूँ !! फिर भी तकनीकी कारणों से सिस्टम से डाटा फॉर्मेट हो जाने का भी खतरा तो बना ही रहता है .
         अब प्रश्न उठता है की आई. डी. के “हैक “ या “ ब्लॉक “ होने से पहले हमें अपने फेसबुक डाटा को कैसे सुरक्षित रख सकते हैं ?
       शायद ये विषय आपके लिए महत्वपूर्ण न हो लेकिन आई.डी. ब्लॉक व हैक होने की पोस्ट पढ़कर मुझे चिंता होने लगती थी !!
        प्रोफाइल के “ सेटिंग “ विकल्प पर क्लिक करने के बाद सबसे नीचे एक विकल्प आता है .. Download a copy of your Facebook data. ( शायद ये विकल्प मोबाइल में नहीं होता) इस पर क्लिक कीजिये और आगे बढ़ते चले जाइए. पहले आपके फेसबुक से संलग्न ई-मेल पते पर एक मेसेज आएगा फिर कुछ घंटों में , डाउनलोड के लिंक वाला मेसेज आयेगा, लिंक पर क्लिक करने पर लॅाग इन करने को पासवर्ड डाल दिजिए, डाउनलोडिंग ब्राउजर सैलेक्ट कर ओके क्लिक कीजिए । लो जी !! हो गया डाउनलोड शुरू। आपकी अब तक की फेसबुक सामग्री आपके सिस्टम में कम्प्रेस्ड फ़ाइल (Compressed File) के रूप में सुरक्षित हो जाती है .. है ना बिलकुल आसान !! अब आप नेट उपलब्ध रहने पर कभी भी फेसबुक को log in किये बिना पुरानी पोस्ट देख सकते हैं.. Script Matter को कॅापी - पेस्ट करके Word Document के रूप में "सेव" करके बिना नेट भी देख - पढ़ सकते हैं। कुछ समय अंतराल पर ये अनुक्रम दोहराते रहे और पहले " सेव " किये गए मैटर को हटाकर अपडेट मैटर को फिर सुरक्षित कर सकते हैं ..
          आई. डी. “हैक” या “ब्लाक” होने की दशा में आप अपने पुराने मित्रो की सूची देखकर, पुन: मित्र निवेदन भी भेज कर पुराने मित्रों के साथ पुन: जुड़ सकते हैं .. और पोस्ट किये गए फोटो भी पुन: प्राप्त कर सकते हैं ..

परीक्षा परिणाम : एक विश्लेषण !!


परीक्षा परिणाम : एक विश्लेषण !!


          खुशखबरी ये है कि हमारे साहबज़ादे, चैतन्य जयाड़ा ने आंशिक भूख हड़ताल खत्म कर दी है !! अब आप सोच रहे होंगे कि ये साहबजादे कौन सी आज़ादी की जंग लड़ रहे थे !! तो इतना ही कहूँगा रिजल्ट के शिकंजे से निकलने के लिए जनाब दो दिन से आंशिक भूख हड़ताल पर चले गए थे !!
         लेकिन रिजल्ट के तेवर देखिये ! बदस्तूर मुल्तवी हुए जा रहा था.! खूब समझाया पर क्या मजाल जो जनाब का लटका चेहरा जरा सा भी ऊपर को उठे !! भीषण गर्मी और धूप में फुटबॉल का अभ्यास करते रहने से जनाब का चेहरा वैसे भी काला पड़ गया है ऊपर से तनाव में भूख हड़ताल पर जाने से जनाब कोयला हुए जा रहे थे !
तो आज दोपहर में आये, जनाब के दसवीं जमात के रिजल्ट की बात भी कर ली जाय तो जनाब का CGPA, 8.8 है यानि 83.6%, ठीक-ठाक ही कहूँगा.
        अब आप सोच रहे होंगे दूसरे बच्चों के तो ढेर नंबर आये हैं. इतने अंको में बहुत ख़ुश होने जैसी बात तो नहीं बनती ! लेकिन मैं संतुष्ट हूँ क्योंकि चैतन्य ने स्वीकारा की नंबर कम हैं और मुझे इस कारण पोस्ट करने को भी मना किया ! संतुष्ट होने का कारण ये भी है कि चैतन्य, बेसबॉल में राष्ट्रीय स्तर और फुटबॉल में राज्य स्तर तक खेल चुका है.साथ में सैंट मैरी स्कूल का फुटबॉल कैप्टेन तो है ही ऊपर से पूरे स्कूल का गेम्स वाइस कैप्टेन भी है. पढाई के अलावा इन सब गतिविधियों व क्रियाओं में समय भी लगता है और अतिरिक्त शारीरिक ऊर्जा व्यय होने से थकान भी होती है जिसका फर्क पढाई पर पड़ना लाज़मी है.
साथियों, सबसे बड़ी बात सेवाकारक है दादी की पीठ सहलाता है पैर दबाता है बिना कहे !! इसलिए चैतन्य को कुछ छूट देना तो बनता ही है कि नहीं ??
        इस आलेख का उद्देश्य अपनी प्रसन्नता जताने से अधिक, चैतन्य को माध्यम बनाकर, कम अंक प्राप्त होने पर भी बच्चे के स्वाभाविक विकास पर प्रकाश डालना है। पोस्ट में चैतन्य (बच्चे) के व्यक्तित्व के अधिकतर सकारात्मक पहलुओं को केवल इसलिए स्पर्श किया गया है कि हम कम अंक प्राप्त होने पर अपने बच्चे की तुलना दूसरे अधिक अंक वाले बच्चों से बिलकुल भी न करें। अच्छे अंक प्राप्त करना एक कला है आवश्यक नहीं कि अधिक अंक पाने वाले छात्र को कम अंक पाने छात्र से अधिक ज्ञान हो !! हर बच्चे के अन्दर अकूत संभावनाएं व ऊर्जा होती हैं। 

         ये भी न भूलिए कि हर बच्चा दूसरे बच्चे से अलग होता है। बच्चा कभी भी वापसी कर सकता है। कम अंकों को ही उसके भविष्य के असुरक्षित होने का पैमाना न बनाइए। बच्चे का मन बहुत कोमल होता है, विपरीत रिजल्ट से व हमारी नकारात्मक टिप्पणियों से उसका मन आहत हो सकता है, इस मानसिक स्थिति का हमें तब पता चलता है जब स्थिति बेकाबू हो चुकी होती है। निरन्तर उलाहनों से बच्चे में हीन भावना घर कर जाती है जिससे जीवन भर निजात पाना आसान नही !घर, स्कूल और समाज के उलाहनों से क्षुब्ध होकर बच्चा स्वयं को बिलकुल अकेला, लाचार व परिस्थितियों से मुकाबला करने में असमर्थ समझने लगता है !! इससे उसका व्यवहार विद्रोही व आक्रामक भी हो सकता है !! साथ ही बच्चा जहाँ भी जाएगा पहले ही मानसिक रूप से स्वयं को हारा हुआ महसूस करेगा !!
          अत: पारिवारिक माहौल सामान्य रख कर, कम अंक प्राप्त होने पर " हमदर्दी " जताने वाले " हमदर्दों " से बच्चे को दूर रखिए। ऐसे समय पर बच्चे को उपजी हताशा की मन:स्थिति से जल्द से जल्द निकालने का काम प्राथमिकता से किया जाना चाहिए, क्योंकि वहअसफलता से हतोत्साहित होकर संकोचवश या अपराध बोधवश मन की बात कह सकने की स्थिति में नहीं होता !! इसलिए बच्चे को आउटिंग पर ले जाकर खुला माहौल प्रदान कीजिए। अपने बच्चे का सम्पूर्ण मूल्यांकन कीजिये कम अंक लाने पर भी उसकी पीठ थप थपाइए ... विश्वास में लीजिये और खेल-खेल में उसकी कमियों का धीरे-धीरे, दोस्त बनकर सकारात्मक तरीके से हल सुझाते हुए मिलजुल कर निस्तारण कीजिएगा . बहुत आवश्यक होने पर,ही बच्चे के सामने किसी अन्य को, उसके कम अंको को बच्चे के अन्य सकारात्मक पहलुओं से जोड़कर गर्व से बताइए ।
           विपरीत परिस्थितियों में, आपका सकारात्मक व सहयोग पूर्ण व्यवहार, वयस्क होते बच्चे को आपके करीब लायेगा इस तरह एक उत्साह भरा और सकारात्मक वातावरण निर्मित होगा जिससे बच्चे में आगे कुछ अच्छा कर दिखाने का जज्बा उत्पन्न होगा।
          यहीं से उसके व्यवहार, लगन और लक्ष्य के प्रति समर्पण भाव में अपेक्षित परिवर्तन नजर आने लगेगा और जो आप बच्चे से चाहते हैं वो आपको सहज ही प्राप्त हो सकता है। बच्चे पर अप्रत्यक्ष नजर रखना भी अति आवश्यक है।

Saturday 12 September 2015

मंजिल करीब आती हैं ...



मंजिल करीब आती हैं
कठिन राहों पर चलने के बाद
हासिल होता है कोई मुकाम
इम्तिहानों से गुज़र जाने के बाद..
 
... विजय जयाड़ा

          जब पढाये गए पुराने बच्चे मिलते हैं तो प्राथमिक कक्षाओं के समय की उनसे जुड़ी यादें उनसे ही साझा करने में बहुत आनंद आता है,
       तस्वीर में मेरे द्वारा पढाई गयी खेल प्रतिभा छात्राएं हैं. ..आज ये बच्चे आठवीं की छात्राएं हैं.. तब ये बच्चे चौथी कक्षा में पढ़ते थे,मेरे बाएं से पहली रुबिना है.. हम केंद्रीय खेल प्रतियोगिताओं में भाग लेकर बाइक से वापस आ रहे थे. भ्रमवश मैंने गलत मार्ग अपना लिया !! रुबिना को पता लगा तो घबरा कर रोने लगी !! किसी तरह मनोवैज्ञानिक तरीका अपनाकर रुबिना की घबराहट समाप्त की ..
               मेरे दायें से अंतिम सोनी है.. इस बच्ची को साथ की सहेलियां चिढ़ाती तो ये मैदान में ही रो पड़ती थी !! सोनी के   आज रवीना सीनियर सेकेंडरी स्कूल में अपने आयु वर्ग में खेल की कैप्टेन है और सोनी, आत्मविश्वास से परिपूर्ण मेधावी छात्रा !!
         पुरातन छात्राएं आज भी जब कोई सफलता प्राप्त करती हैं तो खुश होकर मुझे अपनी सफलता के बारे में बताने आती हैं..
आज ये खो-खो फ़ाइनल टाई करके आई हैं ..
       हर बच्चे के अन्दर असीम संभावनाएं निहित हैं !! आवश्यकता है बच्चों में आत्मविश्वास उत्पन्न कर उन संभावनाओं को मूर्त रूप देने की !!


Tuesday 8 September 2015

निगम शिक्षक पुरस्कार


निगम शिक्षक पुरस्कार 

            शिक्षक दिवस के अवसर पर एक दिन पूर्व, 4 सितम्बर को EDMC प्रेक्षागृह, पटपड़ औद्यौगिक क्षेत्र, में भव्य समारोह के मध्य,मेरे नियोक्ता पूर्वी दिल्ली नगर निगम द्वारा शिक्षकों को दिया जाने वाला सर्वोच्च पुरस्कार “निगम शिक्षक पुरस्कार“, माननीय महापौर, निगम आयुक्त, सदन के गणमान्य नेताओं, जन प्रतिनिधि व अधिकारियों के कर कमलों द्वारा पांच प्रधानाचार्य/प्रधानाचार्या व 20 अध्यापक/ अध्यापिका को प्रदान कर सम्मानित किया गया.. आपके स्नेह आशीर्वाद से सम्मान पाने वाले शिक्षकों में मैं भी था.
             इस पुरस्कार की प्रथम पात्रता अहर्ता, "क्षेत्रीय शिक्षक पुरस्कार", मुझे 2004 में मिल प्राप्त हो था। लम्बे अंतराल के बाद प्रधानाचार्या जी के निरन्तर आग्रह को इस वर्ष न टाल सका और "निगम शिक्षक पुरस्कार" हेतु स्वयं की प्रविष्टि की थी।                

             सम्मान समारोह में कई गणमान्य व्यक्तित्वों द्वारा हम शिक्षकों को सम्मानित दिया जा रहा था !! मेरे विद्यालय परिवार की कर्मठ व प्रेरणादायी व्यक्तित्व, प्रधानाचार्या श्रीमती कमलेश कुमारी जी, भी विद्यालय परिवार के उत्साही व स्नेहिल साथियों सहित वहां उपस्थित थीं !!
             लेकिन !! एक कमी मुझे अखर रही थी !! वो कमी थी !! पुरस्कार के क्रम में दो बार औचक निरीक्षण के दौरान जिन छात्राओं के उत्साहवर्धक व उत्कृष्ट प्रदर्शन पर मुझे सम्मानित किया जा रहा था, मेरी कक्षा की वे सभी छात्राएं वहां नहीं थी ! 

बिना शिक्षार्थी ! भला शिक्षक का क्या अस्तित्व !! 
            दरअसल प्रेक्षागृह में स्थान उपलब्धता के आधार पर सीमित संख्या में अतिथियों को आमंत्रित करने की विवशता है.
            पुरस्कार प्राप्त करने के दो दिन बाद अवकाश उपरान्त आज पुन: विद्यालय खुला तो प्रार्थना स्थल पर विद्यालय के सारे बच्चों के साथ मिलकर प्रसन्नता साझा की. तस्वीर में मेरी कक्षा के प्रतिभावान बच्चे हैं.
             प्रसन्नता की बात ये भी है कि ये यादगार तस्वीर मेरी पुरातन छात्रा व खेल प्रतिभा, रवीना ने क्लिक की है जो इस समय आठवीं कक्षा में है।
              पुरस्कार से सम्बंधित अधिकारियों के प्रति कृतज्ञ हूँ कि उन्होंने मुझे इस सम्मान के काबिल समझा साथ ही विद्यालय परिवार के स्नेह व उत्साहवर्धन का ह्रदय से आभारी हूँ.. पुराने साथी,अध्यापक/ अध्यापिकाओं, व छात्र/ छात्राओं का भी आभारी हूँ कि उन्होंने मुझे सदैव उत्साही बनाये रखा.


Friday 4 September 2015

दरस ..


शिक्षक दिवस पर हार्दिक बधाइयां व शुभ कामनाओं सहित ..

....... || दरस || .......

हक़ सबने जतलाया मगर
वो हमेशा ही खामोश थे
मांस पिंड को सुगढ़ बनाने में
    हमेशा ही वो व्यस्त थे ...

माता - पिता उनमे दिखे
सखा भी उनमे ही मिला
ज्ञान रस जी भर पिलाया
    नि:स्वार्थ प्रतिमूर्ति वो बने ...

अहर्निश चरण वंदन उनका
आज उनको अर्पित किया
   रूप अनेकों हैं उनके मगर..
    सबका दरस “गुरु“ में ही किया...

..विजय जयाड़ा 

Sunday 30 August 2015

अनुपम मंदिर

 

अनुपम मंदिर 

विद्यालय ही वह अनुपम मंदिर
किसी मजहब से नहीं यहाँ गिला,
हर चेहरे पर रौनक बसती है
  हर मजहब का फूल यहाँ खिला !!
 
... विजय जयाड़ा
 


Saturday 29 August 2015

जब मेरी शिष्या .... मेरी उर्दू की प्रथम शिक्षिका बनीं !!


 जब मेरी शिष्या .... मेरी उर्दू की प्रथम शिक्षिका बनीं !!

       आज विद्यालय में मध्यावकाश हुआ तो अरीबा सहसा शिकायत भरे लहजे में बोली “ सर जी, आपने कहा था, उर्दू सीखूंगा लेकिन अभी तक सीखना शुरू नहीं किया, आज मैं आपके लिए उर्दू का, " कायदा " (वर्णमाला पुस्तक) भी लायी हूँ.”
          कुछ दिन पहले मैंने उर्दू जानने वाली छात्राओं से कहा था कि मैं भी आपसे उर्दू सीखूंगा. इतने में कौतुहल और उत्साह से परिपूर्ण अरीबा, झट से मेरे लिए पेंसिल भी ले आई और बन गई मेरी शिक्षिका !! और मैं शिक्षार्थी !! उर्दू लिखना मेरे लिए सहज न था. मैडम अरीबा तुनक कर कहती “ ओफो ! सर जी, ऐसे नहीं ..ऐसे बनाइये !! मैं कभी अक्षर बनाने में गलती करता कभी नुक्ता लगाना भूल जाता !! तो मैडम अरीबा,अपने दोनों हाथ माथे पर रख स्वयं पर झुंझलाती !!
मध्यावकाश का समय समाप्त हो गया तो कहने लगी, “ कल मैं आपके लिए दूसरी किताब लाऊंगी उससे सीखने में आपको आसानी होगी”.
          खैर !! आज का सबक पूरा हुआ. प्रसन्नता भी हुई और बहुत आनंद भी आया क्योंकि आज मेरी ही छात्रा मेरी उर्दू की प्रथम शिक्षिका के रूप में थी. इस प्रक्रिया से अरीबा मैं आत्मविश्वास उत्पन्न होगा और स्वयं को नि:संकोच प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत करने का गुण भी विकसित होगा..
         मेरे विचार से ज्ञान जिस किसी भी स्रोत से आसानी से मिल जाय उसे लेने में संकोच या देरी करना उचित नहीं. ज्ञान किसी उम्र विशेष का मोहताज या पैरोकार नहीं और न ही ज्ञान की कोई सीमा है ..
        यह भी कहना चाहूँगा, प्रकृति सबसे बड़ा गुरु है और प्रकृति का हर सृजन, प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से ज्ञान देता है और ज्ञान प्रदान करने की क्षमता रखता है..
 
 
 
 


Friday 28 August 2015

सच है कि.....


    सच है कि .....
सजदों और इबादत से मिलता खुदा है,
   मगर ! बेनूर को ..

जो नूरानी कर दे, बसता उसमें भी खुदा है !

 
... विजय जयाड़ा
 
 

Thursday 27 August 2015

वृक्षारोपण सार्थकता और रक्षाबंधन

 

वृक्षारोपण सार्थकता और रक्षाबंधन

बिन मांगे ही जो लुटाते हैं,ध्यान उनका भी धरें,
वो जीते हैं स्वाभिमान से, किसी से मांगते नहीं !!.
                                                                     .. विजय जयाड़ा
            आज सुबह विद्यालय में प्रार्थना प्रारंभ हुई तो टहलते हुए हाल ही में लगाये गए पांच अर्जुन के पेड़ों का हाल-चाल जानने उनके पास पहुँच गया. आज भी चार पेड़ सुरक्षित थे !! प्रसन्नता हुई !! लेकिन जैसे ही पांचवे पेड़ की तरफ गया, मन ख़राब हो गया !! बेचारा मरणासन्न पड़ा मानों दर्द से कराह रहा था !! किसी उत्पाती ने उसके मूल तने को ही मोड़कर तोड़ने की कोशिश की थी !!
            तुरंत अपनी कक्षा की उत्साही बच्चियों, ललिता व गुनगुन से प्राथमिक चिकित्सा हेतु, पानी, दो अलग-अलग चौडाई की टेप मंगवाई, खाद मिली मिटटी का स्नेह लेप लगाकर एक लकड़ी के टुकड़े के सहारे तने को मूल अवस्था तक सीधा किया और अच्छी तरह से टेप लगा दिया.
         हमने कोई बहुत बड़ा काम नही किया !! लेकिन पेड़ पर रक्षा सूत्र बांधकर बहुत सुकून मिला !! साथ ही इन बच्चियों में प्रत्यक्ष रूप से वृक्ष मित्र होने के संस्कार भी संप्रेषित कर सका..

           रक्षाबंधन के दिन पेड़-पौधों पर भी रक्षा सूत्र बांधकर, उनकी दीर्घायु होने की कामना करके की स्वस्थ परंपरा,पेड़-पौधों की सुरक्षा व स्वच्छ पर्यावरण के सम्बन्ध में एक सार्थक पहल अवश्य हो सकती है..
          सोचता हूँ वृक्षारोपण को एक पखवाड़े व कुछ तस्वीरें क्लिक करने तक ही सीमित नहीं रखा जाना चाहिए. यदि रोपित वृक्षों के वयस्क हो जाने तक उनकी सुरक्षा और देखभाल सुनिश्चित की जाय, तो ही वृक्षारोपण सार्थक सिद्ध हो सकता है. इससे एक ओर जहाँ वन क्षेत्र बढेगा वहीँ बागवानी विभाग के माध्यम से वृक्षों की पौध तैयार करने पर किये जाने वाले सार्वजनिक धन की बर्बादी भी रुक सकती है..

Thursday 20 August 2015

व्यवहार में शिक्षा: वृक्ष मित्र शिक्षार्थी

 

व्यवहार में शिक्षा: वृक्ष मित्र शिक्षार्थी

            विद्यालय में रेतीली जमीन है तो वृक्ष की जड़ें मजबूती से जमीन को नहीं पकड़ पाती. इस कारण अधिक शाखाओं और पत्तियों के वजन के कारण वृक्ष एक तरफ झोक खाकर गिर सकता है. गत वर्ष ये पेड़ इसी कारण गिर गया था तब छोटा था तो किसी तरह संभाल लिया . लेकिन अब बड़ा और वजनदार हो गया है, अत: एक बार पेड़ के गिर जाने के बाद उसे संभाल पाना नामुमकिन होगा !!
            विद्यालय परिसर में पेड़-पौधों की देखभाल यदि एक टीम वर्क के तहत हो तभी विद्यालय में हरियाली संभव है, इस दिशा में हम भाग्यशाली हैं कि हमारी प्रधानाचार्या श्रीमती कमलेश जी (तस्वीर में) सेवानिवृत्ति के करीब होने के बावजूद भी बहुत ही उत्साही, कर्मठ व कर्तव्यनिष्ठ प्रधानाचार्या हैं.इस कारण विद्यालय परिवार का कार्य करने का उत्साह दुगना हो जाता है !! आज मध्याह्न भोजन व मध्यावकाश समय का उपयोग कर उमस भरे गर्म मौसम में साथी अध्यापक श्री गिरीश जी के साथ पेड़ों की छंटाई कर कक्षा में पहुंचा.
          सोचा !! दो मिनट पंखे की हवा में पसीना सुखा लूँ !! लेकिन तभी मेरी कक्षा की छात्रा, अरीबा, तुनकती सी बाल नाराजगी जताती हुई, मेरे पास आई और एक सांस में कई सवाल कर बैठी !!.. “ सर जी !! आप हमें पेड़ों की देखभाल करने को कहते हैं !! पेड़ उखाड़ने व तोड़ने को मना करते हैं !! आप ये भी बताते हैं कि पेड़- पौधों को तोड़ने व काटने से हमारी तरह दर्द भी महसूस होता है !! फिर आपने पेड़ की टहनियां क्यों काट दी ! उनको भी तो दर्द हुआ होगा !! उसकी पत्तियां भी टहनियों के साथ गिर गयी अब वो खाना कैसे बनाएगा !!
        अरीबा, अपने बाल मन में उठ रहे प्रश्नों के उत्तर जानने हेतु दृढ थी !! अब तो कक्षा की दूसरी छात्राएं भी प्रश्न वाचक निगाहों से मेरी तरफ देख रही थी !!
साथियों, मैं अक्सर बच्चों को वृक्ष मित्र होने के लिए प्रेरित करता रहता हूँ. बच्चे भी पेड़-पौधों की देखभाल मन से करते हैं. कुदरती आज कक्षा में भी सुबह मैंने उनको वृक्ष की पूरी फिजियोलोजी पूर्ण मनोयोग से समझाई थी !!
           मैंने धैर्यपूर्वक अरीबा के प्रश्न सुने. साथ ही मन ही मन मुझे यह जानकार बहुत प्रसन्नता भी हो रही थी कि पेड़-पौधों से मित्रभाव अपनाने के जिस तरह के संस्कार मैं बच्चों के मन मस्तिष्क पर अंकित करना चाहता था, उनमे मैं काफी हद तक सफल भी हुआ !!
            बहरहाल ! मैंने कक्षा में अरीबा की जिज्ञासा का पूर्ण मनोयोग से उचित समाधान किया तो अरीबा और दूसरी छात्राएं संतुष्ट हो गयी साथ ही छात्राओं को पेड़-पौधों की देखभाल के सम्बन्ध में अनायास ही व्यवहारिक रूप में सहजता से नया ज्ञान मिल गया !!
                 पोस्ट में अरीबा प्रकरण, पट कथा लेखन न होकर पूर्णतया यथार्थ परिपूर्ण है..

Monday 17 August 2015

मेरे शैक्षिक अनुप्रयोग : कक्षा में भाषा असजता


मेरे शैक्षिक अनुप्रयोग : कक्षा में भाषा असजता 

               मनोभावों को समझने का सबसे आसान माध्यम भाषा है. बहु भाषी व विविध संस्कृति संपन्न भारत के संविधान की आठवीं अनुसूची में 22 भारतीय भाषाओँ को मान्यता दी गयी है. आजादी के बाद भाषा विवाद से निपटने के लिए त्रिभाषा फ़ॉर्मूला बनाया गया था, इसको तैयार करने की शुरुआत 1960 के दशक में हुई जिससे उत्तर भारत और दक्षिण भारत के लोगों में भाषाई एक रूपता आ सके. इस त्रिभाषा फ़ॉर्मूला के तहत हिंदी भाषी राज्यों में छात्रों को जो तीन भाषाएँ पढाई जानी थी उसमे हिंदी अंग्रेजी और एक आधुनिक भारतीय भाषा (बांगला, तमिल, तेलगु, कन्नड़, असमिया,मराठी, और पंजाबी) शामिल थी ..
              इस त्रिभाषा फ़ॉर्मूला को तमिलनाडु के अलावा देश के दूसरे हिस्सों में बेहतर तरीके से लागू किया गया लेकिन हिंदी भाषी क्षेत्रों में इस फ़ॉर्मूले को लागू करने में लापरवाही हुई.
             अब विषय पर आता हूँ, तस्वीर में मेरे साथ कड़ी बच्ची प्रवीना है, काफी पहले इसकी माँ स्वर्गवासी हो गयी और कुछ माह पूर्व पिता का भी देहांत हो गया !! इस कारण ये बच्ची तमिलनाडु से दिल्ली अपने ताऊ जी के पास रहने आ गयी.
             जब इसका प्रवेश हुआ तो साथी अध्यापिका इसको मेरे पास लायी और बोली, इसको हिंदी पढना बिलकुल भी नहीं आता !!
              मैंने कहा, जिनको पढना नहीं आता, सरकार उनको पढ़ाने के लिए ही तो हमें वेतन देती है, जिनको पढना-लिखना सब कुछ आता है उन तैयार बच्चों के लिए तो पब्लिक स्कूल खुले हैं !! और इस बच्ची को अपनी चौथी कक्षा में मैंने दाखिल कर दिया !
              एक-दो दिन तो ये बच्ची कक्षा में सामान्य रूप से बैठी रही लेकिन तीसरे दिन जोर-जोर से रोती दिखी !! मैं कक्षा में आई नयी बच्ची की असहजता समझ गया ! प्रवीना का मनोबल बढाने के उद्देश्य से कुछ विकल्प सुझाता तो प्रवीना झटके से गर्दन हिलाकर मना कर देती !!
              कुछ देर बाद मैं समझ गया ! प्रवीना मेरी हिंदी में कही गयी बातों को समझ ही नहीं रही थी !! केवल अलग कक्षा में पढने वाली अपनी बहन के पास जाने की रट लगाये हुए थी !!
              अब मैंने व्यावहारिक धरातल पर उतरना उचित समझा, प्रवीना की बहन को बुलाकर प्रवीना से प्यार से पूछा कि माँ और पिता को तमिल में क्या कहते हैं ?? फिर श्याम पट्ट पर भी तमिल में लिखने को कहा. जब उसने लिख दिया तो ..प्रवीना के तमिल ज्ञान पर सारे बच्चों से ताली बजवाई. अब तो प्रवीना अब सहज थी और उसके चेहरे पर मुस्कराहट उतर आई !!
             प्रवीना से मैंने कहा, मुझे तमिल नहीं आती और आपको हिंदी !! अब से आप मुझे तमिल सिखाना और मैं आपको हिंदी सिखाऊंगा..यह सुनकर प्रवीना और भी खुश हो गयी.
              हिंदी और तमिल भाषाई धरातल पर हम दोनों, एक दूसरे के लिए एक ही स्तर पर हैं.. बल्कि प्रवीना मुझसे आगे है, क्योंकि वो कुछ ही दिनों में हिंदी समझने और थोडा बहुत बोलने भी लगी है. मैं भी प्रयास रत हूँ. प्रवीना से रोज बोलचाल के दो तीन वाक्य सीखता हूँ ..
भोजनावकाश समाप्त हुआ तो मैंने पूछा ,.. " प्रवीना !!, सापड़ साप्टिया ???
प्रवीना बोली, " सापटे " और हम दोनों हंस पड़े 

बहरहाल !!अब प्रवीना बहुत खुश है...
अब प्रवीना बहुत खुश है...


Saturday 15 August 2015

धरती मेरे देश की : आभार


आभार .._.\\ धरती मेरे देश की //._             

        कुछ दिन पूर्व मैंने स्वरचित “धरती मेरे देश की “ बाल गीत पोस्ट किया था. स्कूल के बच्चे उस गीत को स्वतंत्रता पर्व कार्यक्रम पर गाने की जिद करने लगे !! मैं धर्म संकट में पड़ गया ! मैं लिख तो सकता हूँ.. मंच सञ्चालन भी करता हूँ लेकिन नाचना और गाना दो क्षेत्र ऐसे हैं जिसमे स्वयं की शून्यता मुझे सदैव सालती है ! बच्चों की जिद पर पहले खुद प्रयास किया लेकिन फिर स्कूल की अध्यापिकाओं Riya SoniNidhi Malhotra जी की सेवाएं ली,
            दिल्ली में स्कूलों में एक दिन पूर्व विद्यालयों में स्वतंत्रता दिवस कार्यक्रम मनाये जाते हैं. आज प्रस्तुत कार्यक्रम में ये प्यारे-प्यारे बच्चे कार्यक्रम की अच्छी प्रस्तुति पर बधाई के पात्र तो हैं ही लेकिन धन्य हैं ये अध्यापिकाएं जिन्होंने इन छोटे छोटे बच्चों से अल्प समय में इच्छित भाव-भंगिमाएं बनवाकर, मेरी रचना को Action Song के रूप में मंच पर बहुत अच्छी तरह से प्रस्तुत कर मान्यता प्रदान की.. धन्यवाद रिया सोनी जी व निधि मल्होत्रा जी, आप दोनों ने इस रचना को अलग-अलग अंदाज में बहुत सुन्दर प्रस्तुतियां दी ....
          विद्यालय भी एक परिवार की तरह ही होता है. यदि विद्यालय परिवार का हर सदस्य अपने कौशल व निपुणता अनुसार सहयोग करे तो कार्यक्रम बहुत अच्छी तरह से प्रस्तुत किये जा सकते हैं ..
 

_.\\ धरती मेरे देश की //._

विविध धर्मों के फूल खिले हैं
बहुरंगी धरती....मेरे देश की,
झरने पर्वत .....बहती नदियाँ
प्यारी धरती.......मेरे देश की ....
बहुरंगी....धरती मेरे देश की । 1 ।
 
जगत कल्याणी.......अवतार प्रसूता
वीरों की जननी धरती मेरे देश की,
संत फकीर........सूफियों से सेवित
रत्नगर्भा............धरती मेरे देश की....
बहुरंगी.............धरती मेरे देश की । 2 ।

चरण पखारता हिन्द महासागर
मुकुट हिमालय .........डटा हुआ,
पूरब पश्चिम............वंदन करता
सतरंगी.........धरती मेरे देश की .....
बहुरंगी..........धरती मेरे देश की । 3 ।

हर दिन उत्सव...........खेले मेले हैं
खलिहान ......अनाजों से भरे हुए,
इस धरत. पर मिलजुल सब रहते
शस्य-स्यामल, धरती मेरे देश की...
बहुरंगी............धरती मेरे देश की । 4 ।

प्यारी दुनिया में सबसे प्यारा भारत
हम जय बोलें........भारत महान की,
जयकारा................भारत माता का
जय...............भारत भूमि महान की...
जय..............भारत भूमि महान की । 5 ।

... विजय जयाड़ा 08..08.15

Thursday 13 August 2015

SAVE EARTH : T - Shirt Painting

 

 SAVE EARTH : T - Shirt Painting  

By My Daughter, Deepika Jayara 

 

 


Monday 10 August 2015

स्पंदन : प्रकृति और अंधविश्वास

स्पंदन : प्रकृति और अंधविश्वास 


          यात्रा क्रम में एक पनियल स्थान पर
ड्रैगन फ्लाई उड़ते दिखे तो कौतुक जगा चलिए आज इस पर ही चर्चा हो जाय ! पानी वाले स्थानों पर आसानी से दिखाई देने वाले, ड्रैगन फ्लाई के जीवाश्मों से अनुमान लगाया गया है कि लाखों साल पहले ड्रैगन फ्लाई पूर्वजों के पंख 75 सेमी. तक बड़े होते थे !!
        किसी कालखंड में घटित शुभ-अशुभ घटनाओं के आधार पर हम सम्बंधित जड़-चेतन को ही स्वयं के लिए शुभ-अशुभ मानने लगते हैं ! देश-काल-परिस्थितियों को आधार बनाकर, तथ्यपरक व वैज्ञानिक विश्लेषण के अभाव में, कालांतर में वे मिथक संस्कृति में रच-बसकर अंधविश्वास का रूप ले लेते हैं !
                        
 
अब ड्रैगन फ्लाई को ही देख लीजिये ! जापान में इसे “ साहस-शक्ति और प्रसन्नता “ का प्रतीक मान कर “ शुभ “ जाता है जबकि यूरोप में इसे अभिशाप के रूप में “अशुभ “ माना जाता है !! इंडोनेशिया में इसे भोज्य सामग्री के रूप में इस्तेमाल किया जाता है वहीँ चीन और जापान में देशी पारंपरिक दवाइयों में इस्तेमाल भी किया जाता है ! और भारत में !! बच्चे इसके पैरों से धागा बाँधकर उड़ते हुए देखने का आनंद लेते हैं !!
साथियों, प्रकृति का हर सृजन संतुलन बनाये रखने के लिए आवश्यक है लेकिन कमोवेश अज्ञानतावश व स्वार्थवश, हम अपनी सुविधा के अनुसार ही जड़-चेतन की उपयोगिता को परिभाषित करने की कुचेष्टा करते हैं ! जब हम उनकी उपयोगिता से रूबरू होते हैं तब तक बहुत देर हो चुकी होती है ..
...और फिर पर्यावरण मंत्रालय व मीडिया के वातानुकूलित कक्षों में आमंत्रित की जाती हैं विचारगोष्ठियाँ !! और कागजों पर चलाये जाते हैं....खर्चीले.. “ संरक्षण “ अभियान !!!

Friday 7 August 2015

एक मार्मिक संवाद : महा मानव कलाम

 

एक मार्मिक संवाद : महा मानव  कलाम 

 

‘‘तुम्हारा भाई अखबार बेचता था और राष्ट्रपति बन गया था। तुम अभी भी टूटे छाते ठीक करते हो?’’
‘‘मेरे भाई ने मिसाइलें बनाई और देश को सुरक्षा का छाता दिया और मैं छाते ठीक करके लोगों के सिर को सुरक्षा दे रहा हूं।’’

‘‘लेकिन लोग तो आतंकी याकूब की बीवी को सांसद बनाने की वकालत कर रहे हैं, वह बने या नहीं आप तो बन ही सकते थे?’’
‘‘संसद में विद्वान होने चाहिए, मेरे जैसे कारीगर नहीं, मेरे जैसे इंसान कारखानों की शोभा होते हैं संसद की नहीं। मेरे लिए मेरी दूकान किसी संसद से कम नहीं, क्योंकि यह दूकान पवित्र भारत भूमि पर है।’’
‘‘उन्होंने वसियत तो बनाई होगी, बड़ा भाई होने से आप तो वैसे भी करोडपति बन गए होंगे, फिर दूकान का दिखावा क्यों?’’
‘‘वे सब चल-अचल संपत्ति जो उनके नाम थी, मेरी ही सलाह पर देश के कल्याणकारी कार्यो के लिए देश के नाम कर गए हैं, इससे अच्छी वसियत और क्या हो सकती थी!’’
एक इंटरव्यू के आधार पर..... 

    माननीय कलाम जी के बडे भाई जी के साक्षात्कार के कुछ अंश..

Tuesday 28 July 2015

महा मानव को अंतिम सलाम !!

महा मानव को अंतिम सलाम !!

बड़े शौक से सुन रहा था जमाना,
  तुम ही सो गए दास्ताँ कहते-कहते !!

जाति, धर्म, पंथ, भाषा व प्रदेश की सीमित सीमाओं से कही ऊपर 
उठकर पूरे भारत का जन-मानस उदास है !! गमगीन है !!
कोई धर्म गुरु या विद्वान् मुझे सिर्फ इतना बता दे !!!

 कि कलाम साहब का जाति, धर्म,पंथ,भाषा व प्रदेश क्या था !!   और भी खूबसूरत और भी ऊंचा
   इस देश का नाम हो जाए !!
  अगर हर हिन्दू विवेकानंद और 

  हर मुस्लिम कलाम हो जाए !!


Thursday 23 July 2015

बच्चों में पढने, लिखने व याद करने की दिशा में रूचि उत्पन्न करने हेतु एक पहल ---

 बाल कविता के माध्यम से पढने, लिखने व याद करने की दिशा में रूचि उत्पन्न करने हेतु एक पहल

             कहानी और कविता बच्चों. की जन्मजात रूचि के विषय हैं, बच्चों को पंचतंत्र में पशु-पक्षियों के माध्यम से शिक्षा प्रदान करने का प्रयास किया गया है.
            पुराने समय में दादी, नानी और मां बच्चों को कहानियां व लोरियों के रूप में कविता सुनाती थी। कहानियाँ में ही बच्चे, कल्पना की उड़ान भरकर परियों के देश में पहुँच जाते थे, और लोरियों का सुखद आनंद पाकर सो जाते थे ये कहानियां और कविताएँ सत्य और यथार्थ से परिचय करवाने के साथ-साथ, साहस, बलिदान, त्याम और परिश्रम जैसे गुण, बच्चों में विकसित करतीं थीं.
बच्चे का सबसे अधिक समय मां के साथ गुजरता है, मां ही उसे प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से साहित्य तथा शिक्षा संबंधी जानकारी देती है लेकिन बदले भौतिकवादी परिदृश्य में एकल परिवार संस्कृति पनपने लगी हैं. परिवारों में बुजुर्गों नहीं दिखाई देते !! माता-पिता, परिवार की भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति करने में, चाहकर भी, बच्चों को व्यक्तिगत समय देने में असमर्थ से लगते हैं !!
      ऐसी स्थिति में विपरीत शैक्षिक परिवेश,कमजोर आर्थिक पृष्ठभूमि के संसाधन विहीन, परिवारों के बच्चों के उज्जवल भविष्य की एकमात्र आशा किरण, सरकारी विद्यालय ही हैं..
     दरअसल, बाल साहित्य का उद्देश्यव बाल पाठकों का मनोरंजन करना ही नहीं अपितु उन्हें आज के जीवन की सच्चाइयों से परिचित कराना भी होना चाहिए. उसी के अनुरुप उनका चरित्र निर्माण होगा। कहानियों व कविताओं के माध्यम  से हम बच्चों का चरित्र निर्माण कर सकते हैं तभी ये बच्चें जीवन के संघर्षों से जूझकर, ईमानदारी से देश की विभिन्न क्षेत्रो में सेवा कर सकेंगे.
बाल-मनोविज्ञान को दृष्टिगत रखकर लिखी गयी कहानियों व कविताओं से बाल मानस पटल पर उतर कर, बच्चों के निर्मल मन पर प्रभाव डालकर, संस्कार, समर्पण, सदभावना और भारतीय संस्कृति के तत्वों को स्थायी रूप से बिठाया जा सकता है.
           अब तस्वीर पर चर्चा की जाय. दरअसल आज बच्चों से कविता न सुन सका तो बच्चे सुनाने की जिद करने लगे. छुट्टी का समय हो चला था तो कुछ बच्चे अपने अभिभावकों के साथ घर जा चुके थे. तो मैंने बच्चों का मन रखने के लिए कहा, “ जिन बच्चों को कवितायेँ याद हो गयी हैं वो आगे आ जाएँ !” बहुत ही सुखद आश्चर्य परिपूर्ण अनुभव रहा, जब इस स्तर में चौथी कक्षा में पहुंचे इन उपस्थित 26 बच्चों में से 23 बच्चे उत्सुकता से दौड़ते हुए, कविता सुनाने आगे आ गए !! प्रसन्नता अविभूत क्षणों में बच्चों की तस्वीर लेने का लोभ संवरण न कर सका..
             इस सुखद आश्चर्य की पृष्ठभूमि में वे बाल कवितायें हैं जिनको मैं विभाग द्वारा निर्धारित पाठ्यक्रम पढ़ाने के पश्चात, बचे समय में इन बच्चों के सहयोग से कक्षा-कक्ष में ही लिखकर आप साथियों तक फेसबुक के माध्यम से पहुंचाता हूँ.इन कविताओं में बच्चों का सहयोग लिया जाता है, जिस कारण वे इन कविताओं में खुद को भी अनुभूत करते हैं.और याद करने में अतिरिक्त रूचि लेते हैं. साथियों, आप इन बच्चों का उत्साहवर्धन अवश्य कीजियेगा. कल इन बच्चों को आपके उत्साहवर्धन से अवगत करवाऊंगा. इससे इन बच्चों का उत्साह और अधिक बढेगा..
             कविता के माध्यम से बच्चों का विभिन्न दिशाओं में मानसिक विकास तो होता ही है लेकिन प्रत्यक्षत: मुझे बच्चों में पढने, लिखने व याद करने में रूचि उत्पन्न करने के दिशा में, कविता विधा का उपयोग कम समय खर्चीला व बहुत प्रभावकारी प्रयोग अनुभूत हुआ.
        स्वलिखित कविता याद करवाने के पीछे मेरा उद्देश्य , बच्चों में सृजन के प्रति अभिरुचि उत्पन्न करने के साथ-साथ शिक्षण में आने वाली सबसे बड़ी समस्या, पढने, लिखने व याद करने की दिशा में रूचि उत्पन्न करना है ..