देहरादून से प्रकाशित साप्ताहिक समाचार पत्र "न्यू एनर्जी स्टेट " में मेरी रचना को स्थान देने के लिए संपादक श्री गणेश जुयाल जी का हार्दिक धन्यवाद.
परवाज़ परिंदों की भी एक हद में ही रह जाए
अगर आसमान भी परिंदों में आपस में बंट जाए !
क्यों सरहद बनी जो बांटती है दिलों और मुल्कों को
काश ! हर इंसान भी सरहद छोड़ कर परिंदा हो जाए !
.. विजय जयाड़ा
फेसबुक पर " न्यू एनर्जी स्टेट " पत्र का मित्र बनते समय मुझे यह ज्ञात न था कि इस पत्र के संपादक श्री गणेश जुयाल जी मेरे पूर्व छात्र रहे हैं !
एक दिन जब जुयाल जी ने मेरी रचना को अपने पत्र में स्थान दिया और रचना के साथ मेरा नाम " "विजय प्रकाश जयाड़ा", प्रकाशित किया तो अपना सही नाम पढ़कर मुझे कौतुहल मिश्रित आश्चर्य अनुभूत हुआ !! क्योंकि मुझे विजय जयाड़ा के नाम से ही अधिकतर साथी जानते हैं ! जिज्ञासा हुई तो पता लगा कि संपादक मेरे पूर्व छात्र रह चुके हैं ! बहुत प्रसन्नता हुई.
साथियों, आज के समय में अखबार प्रकाशित करना किसी कठिन चुनौती को स्वीकार करने से कम नहीं ! अखबार प्रकाशित करने के लिए बहुमुखी प्रतिभा का धनी होना आवश्यक है.
लकधक इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के वर्चस्व के दौर में प्रिंट मीडिया कठिन दौर से गुजर रहा है कई अखबार पाठक व अर्थाभाव में दम तोड़ रहे हैं. मुझे आत्मिक प्रसन्नता व गर्व अनुभूत हो रहा है कि इस कठिन दौर में भी मेरे पूर्व छात्र श्री गणेश जुयाल, दृढ़ता से सफलता पूर्वक साप्ताहिक पत्र का संपादन कर रहे हैं.
एक अध्यापक को इससे अधिक और क्या प्रसन्नता हो सकती है कि उसका छात्र अपनी कलम के माध्यम से समाज की सेवा में रत है. रचना प्रकाशन प्रसन्नता से अधिक मुझे अपने छात्र की योग्यता पर गर्व है.
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