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Monday 26 October 2015

स्मृतियाँ


       


                 अमेरिका में शैक्षिक क्षेत्र में सेवारत संगठन, Melinda And Gates Foundation से जुड़े, मृदुभाषी व शालीन स्वभाव के धनी श्री Allen Goldston, आज हमारे विद्यालय में, भारतीय विद्यालयों में प्राथमिक शिक्षा व्यवस्था का जायजा लेने के उद्देश्य से पहुंचे,
                मेरी कक्षा में पहुंचे तो विदेशी व्यक्ति को देख छोटे बच्चों में कौतुहल होना स्वाभाविक सी बात थी. स्वयं मैं भी इन क्षणों की स्मृतियाँ सहेजने का लोभ संवरण न कर सका.. 


Wednesday 21 October 2015

जब मैं पहाड़ के नीचे से गुजरा !! : संस्मरण


जब मैं पहाड़ के नीचे से गुजरा !!

     ( निवेदन : ये कौतुहल जनित और निहायत व्यक्तिगत संस्मरण है इसका उद्देश्य किसी भी तरह से अंधविश्वास को पोषित करना नहीं है.)
             कल एक जिज्ञासु की जन्म कुंडली लेकर परिचित अच्छे ज्योतिष, पंडित जी के पास पहुंचा और जिज्ञासु का प्रश्न प्रस्तुत किया. पंडित जी ने पूर्ण मनोयोग से कुंडली का अध्ययन किया और फलित बताया लेकिन मैं पूर्ण संतुष्ट नहीं हो पाया !!
             मैं उस जिज्ञासु की हस्तरेखा का अध्ययन पहले ही कर चुका था तो अंत में मैंने सकुचाते हुए पंडित जी से, जो उस जिज्ञासु की हस्तरेखा देखकर फलित अनुभूत किया था, साझा किया, पंडित जी ने फिर से लेपटॉप निकालकर गणना शुरू की !! तो मेरे आंकलन से पूर्ण सहमती जताई !!
           पंडित जी ने उत्सुकता व कौतुहलवश अपने बेटे का भी हाथ देखने का आग्रह किया !! अब तो जैसे ये बिना पूर्व निर्धारित समय सारणी के ही मेरी त्वरित परीक्षा ली जा रही थी !!
मेरा नर्वस होना स्वाभाविक था ! क्योंकि पंडित जी स्वयं अच्छे पेशेवर ज्योतिष हैं ! आत्मविश्वास डोलने लगा और सोचने लगा !! विजय जयाड़ा !! आज आया तू पहाड़ के नीचे !!
           खैर, आत्मविश्वास बटोरकर फलित वाचना प्रारम्भ किया और जो कुछ कहा, उसकी सत्यता को क्रॉस चैक करने के लिए, जिज्ञासु भाव से पंडित जी से ही जानना चाहा.
पंडित जी आश्चर्यचकित होकर कहने लगे, मास्टर जी .. हम तो कुंडली से शुभ-अशुभ समय का काल निर्धारित कर देते हैं लेकिन आपने तो, हस्त रेखाओं से ही घटनाओं का बहुत सटीक काल निर्धारण कर लिया !! फिर मेरे पास क्यों कुंडली लेकर आते हो. मैंने कहा महोदय मैं शौकिया हूँ और आप पेशेवर !! लिहाजा,अधिक अनुभव होने के कारण आपका ज्ञान पुख्ता है। आपके पास आकर मैं स्वयं द्वारा आंकलित फलित को क्रॅास चैक कर लेता हूँ जिससे मेरा आत्मविश्वास बढ़ता है ..
           संस्मरण द्वारा स्वयं को प्रचारित की मंशा कदापि नहीं है। जिज्ञासुओं के बढ़ते विश्वास के उपरान्त घर पर आने वाले जिज्ञासुओं की बढती संख्या के कारण, मैं यह काम लगभग आठ वर्ष पूर्व ही बंद कर चुका हूँ, लेकिन पहली बार पहाड़ के नीचे से गुजरने के बाद जो आत्मविश्वास हासिल हुआ वो पहले कभी नहीं हुआ था !!
          इतना अवश्य कहूँगा कि.....

 किसी भी क्षेत्र में अर्जित ज्ञान, समाज द्वारा हमारी सहज स्वीकार्यता बढ़ाता है..

Sunday 18 October 2015

परवाज़ परिंदों की भी एक हद में ही रह जाए..



                देहरादून से प्रकाशित साप्ताहिक समाचार पत्र "न्यू एनर्जी स्टेट " में मेरी रचना को स्थान देने के लिए संपादक श्री गणेश जुयाल जी का हार्दिक धन्यवाद. 

                                                    परवाज़ परिंदों की भी एक हद में ही रह जाए
                                                 अगर आसमान भी परिंदों में आपस में बंट जाए !
                                               क्यों सरहद बनी जो बांटती है दिलों और मुल्कों को
                                             काश ! हर इंसान भी सरहद छोड़ कर परिंदा हो जाए !
                                                                       .. विजय जयाड़ा
 

                     फेसबुक पर " न्यू एनर्जी स्टेट " पत्र का मित्र बनते समय मुझे यह ज्ञात न था कि इस पत्र के संपादक श्री गणेश जुयाल जी मेरे पूर्व छात्र रहे हैं !
                   एक दिन जब जुयाल जी ने मेरी रचना को अपने पत्र में स्थान दिया और रचना के साथ मेरा नाम " "विजय प्रकाश जयाड़ा", प्रकाशित किया तो अपना सही नाम पढ़कर मुझे कौतुहल मिश्रित आश्चर्य अनुभूत हुआ !! क्योंकि मुझे विजय जयाड़ा के नाम से ही अधिकतर साथी जानते हैं ! जिज्ञासा हुई तो पता लगा कि संपादक मेरे पूर्व छात्र रह चुके हैं ! बहुत प्रसन्नता हुई.
साथियों, आज के समय में अखबार प्रकाशित करना किसी कठिन चुनौती को स्वीकार करने से कम नहीं ! अखबार प्रकाशित करने के लिए बहुमुखी प्रतिभा का धनी होना आवश्यक है.
               लकधक इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के वर्चस्व के दौर में प्रिंट मीडिया कठिन दौर से गुजर रहा है कई अखबार पाठक व अर्थाभाव में दम तोड़ रहे हैं. मुझे आत्मिक प्रसन्नता व गर्व अनुभूत हो रहा है कि इस कठिन दौर में भी मेरे पूर्व छात्र श्री गणेश जुयाल, दृढ़ता से सफलता पूर्वक साप्ताहिक पत्र का संपादन कर रहे हैं.
                 एक अध्यापक को इससे अधिक और क्या प्रसन्नता हो सकती है कि उसका छात्र अपनी कलम के माध्यम से समाज की सेवा में रत है. रचना प्रकाशन प्रसन्नता से अधिक मुझे अपने छात्र की योग्यता पर गर्व है.


Monday 5 October 2015

जब शिक्षार्थी किताबों में छपे प्रकरण से उबने लगें !!


                         जब शिक्षार्थी किताबों में छपे प्रकरण से उबने लगें तो जिस वातावरण से उनका रोज वास्ता पड़ता है उसे ही विषय प्रकरण से जोड़कर रोचकता बढ़ाई जा सकती है ..
आज अपनी कक्षा-तृतीय, में नीम की उपयोगिता समझा रहा था तो सहसा ही विद्यालय में, अब
विशाल आकर ले चुके पेड़ की याद आ गयी .. सब बच्चे जानते हैं कि उस नीम को मैंने लगाया था.. इस कारण उससे उनको लगाव भी है. बस फिर क्या था, प्रकरण को उस नीम के पेड़ से जोड़कर छात्राओं के सहयोग से उन्ही की भाषा में,धीरे-धीरे बढ़ते हुए, इस बाल कविता का जन्म हो गया !! ... मजे की बात !!! बच्चों ने स्वयं ही इस कविता को एक्शन बेस्ड भी बना दिया !!! धन्यवाद, मेरी प्रिय छात्राओं..
प्रकरण में रोचकता भी आ गयी.. वृक्ष लगाओ का सन्देश भी दे दिया .. और छात्राओं में साहित्यिक सृजन का अंकुर भी प्रस्फुटित हो गया .... अर्थात एक पंथ तीन काज !!

>>> नीम का पेड़ <<<

सुबह सवेरे सबसे पहले
गेट से दिखता प्यारा नीम,
सुबह-सुबह जब स्कूल पहुंची
सो रहा था प्यारा नीम,
झट मैंने जो उसको पानी डाला
सोकर जागा प्यारा नीम,
लेकर अंगडाई टहनियां हिलाता
खिल-खिलाकर हंसा प्यारा नीम,
बच्चे खुश होकर जा लिपटे
सबको भाता हरा-भरा प्यारा नीम,
आओ सब मिलकर पेड़ लगायें
रोग भगाता मनभावन प्यारा नीम.

^^ विजय जयाड़ा व कक्षा-3 की छात्राएं