हमारा हरा-भरा विद्यालय
नित नूतन जीवन..
स्फूर्ति तन मे पाता हूँ,
रोज प्रात मतवाले उपवन में
खुद से ही मिल पाता हूँ,
बीत गया जो बचपन मेरा
उसका दीदार कर पाता हूँ
कल्पना सागर में नित गोते
विद्या उपवन में लगाता हूँ,
मूर्त रूप पाने की चाह में
कुछ नव सृजन पुष्प उगाता हूँ.
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