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Saturday, 12 September 2015

मंजिल करीब आती हैं ...



मंजिल करीब आती हैं
कठिन राहों पर चलने के बाद
हासिल होता है कोई मुकाम
इम्तिहानों से गुज़र जाने के बाद..
 
... विजय जयाड़ा

          जब पढाये गए पुराने बच्चे मिलते हैं तो प्राथमिक कक्षाओं के समय की उनसे जुड़ी यादें उनसे ही साझा करने में बहुत आनंद आता है,
       तस्वीर में मेरे द्वारा पढाई गयी खेल प्रतिभा छात्राएं हैं. ..आज ये बच्चे आठवीं की छात्राएं हैं.. तब ये बच्चे चौथी कक्षा में पढ़ते थे,मेरे बाएं से पहली रुबिना है.. हम केंद्रीय खेल प्रतियोगिताओं में भाग लेकर बाइक से वापस आ रहे थे. भ्रमवश मैंने गलत मार्ग अपना लिया !! रुबिना को पता लगा तो घबरा कर रोने लगी !! किसी तरह मनोवैज्ञानिक तरीका अपनाकर रुबिना की घबराहट समाप्त की ..
               मेरे दायें से अंतिम सोनी है.. इस बच्ची को साथ की सहेलियां चिढ़ाती तो ये मैदान में ही रो पड़ती थी !! सोनी के   आज रवीना सीनियर सेकेंडरी स्कूल में अपने आयु वर्ग में खेल की कैप्टेन है और सोनी, आत्मविश्वास से परिपूर्ण मेधावी छात्रा !!
         पुरातन छात्राएं आज भी जब कोई सफलता प्राप्त करती हैं तो खुश होकर मुझे अपनी सफलता के बारे में बताने आती हैं..
आज ये खो-खो फ़ाइनल टाई करके आई हैं ..
       हर बच्चे के अन्दर असीम संभावनाएं निहित हैं !! आवश्यकता है बच्चों में आत्मविश्वास उत्पन्न कर उन संभावनाओं को मूर्त रूप देने की !!


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