ad

Sunday 20 September 2015

परीक्षा परिणाम : एक विश्लेषण !!


परीक्षा परिणाम : एक विश्लेषण !!


          खुशखबरी ये है कि हमारे साहबज़ादे, चैतन्य जयाड़ा ने आंशिक भूख हड़ताल खत्म कर दी है !! अब आप सोच रहे होंगे कि ये साहबजादे कौन सी आज़ादी की जंग लड़ रहे थे !! तो इतना ही कहूँगा रिजल्ट के शिकंजे से निकलने के लिए जनाब दो दिन से आंशिक भूख हड़ताल पर चले गए थे !!
         लेकिन रिजल्ट के तेवर देखिये ! बदस्तूर मुल्तवी हुए जा रहा था.! खूब समझाया पर क्या मजाल जो जनाब का लटका चेहरा जरा सा भी ऊपर को उठे !! भीषण गर्मी और धूप में फुटबॉल का अभ्यास करते रहने से जनाब का चेहरा वैसे भी काला पड़ गया है ऊपर से तनाव में भूख हड़ताल पर जाने से जनाब कोयला हुए जा रहे थे !
तो आज दोपहर में आये, जनाब के दसवीं जमात के रिजल्ट की बात भी कर ली जाय तो जनाब का CGPA, 8.8 है यानि 83.6%, ठीक-ठाक ही कहूँगा.
        अब आप सोच रहे होंगे दूसरे बच्चों के तो ढेर नंबर आये हैं. इतने अंको में बहुत ख़ुश होने जैसी बात तो नहीं बनती ! लेकिन मैं संतुष्ट हूँ क्योंकि चैतन्य ने स्वीकारा की नंबर कम हैं और मुझे इस कारण पोस्ट करने को भी मना किया ! संतुष्ट होने का कारण ये भी है कि चैतन्य, बेसबॉल में राष्ट्रीय स्तर और फुटबॉल में राज्य स्तर तक खेल चुका है.साथ में सैंट मैरी स्कूल का फुटबॉल कैप्टेन तो है ही ऊपर से पूरे स्कूल का गेम्स वाइस कैप्टेन भी है. पढाई के अलावा इन सब गतिविधियों व क्रियाओं में समय भी लगता है और अतिरिक्त शारीरिक ऊर्जा व्यय होने से थकान भी होती है जिसका फर्क पढाई पर पड़ना लाज़मी है.
साथियों, सबसे बड़ी बात सेवाकारक है दादी की पीठ सहलाता है पैर दबाता है बिना कहे !! इसलिए चैतन्य को कुछ छूट देना तो बनता ही है कि नहीं ??
        इस आलेख का उद्देश्य अपनी प्रसन्नता जताने से अधिक, चैतन्य को माध्यम बनाकर, कम अंक प्राप्त होने पर भी बच्चे के स्वाभाविक विकास पर प्रकाश डालना है। पोस्ट में चैतन्य (बच्चे) के व्यक्तित्व के अधिकतर सकारात्मक पहलुओं को केवल इसलिए स्पर्श किया गया है कि हम कम अंक प्राप्त होने पर अपने बच्चे की तुलना दूसरे अधिक अंक वाले बच्चों से बिलकुल भी न करें। अच्छे अंक प्राप्त करना एक कला है आवश्यक नहीं कि अधिक अंक पाने वाले छात्र को कम अंक पाने छात्र से अधिक ज्ञान हो !! हर बच्चे के अन्दर अकूत संभावनाएं व ऊर्जा होती हैं। 

         ये भी न भूलिए कि हर बच्चा दूसरे बच्चे से अलग होता है। बच्चा कभी भी वापसी कर सकता है। कम अंकों को ही उसके भविष्य के असुरक्षित होने का पैमाना न बनाइए। बच्चे का मन बहुत कोमल होता है, विपरीत रिजल्ट से व हमारी नकारात्मक टिप्पणियों से उसका मन आहत हो सकता है, इस मानसिक स्थिति का हमें तब पता चलता है जब स्थिति बेकाबू हो चुकी होती है। निरन्तर उलाहनों से बच्चे में हीन भावना घर कर जाती है जिससे जीवन भर निजात पाना आसान नही !घर, स्कूल और समाज के उलाहनों से क्षुब्ध होकर बच्चा स्वयं को बिलकुल अकेला, लाचार व परिस्थितियों से मुकाबला करने में असमर्थ समझने लगता है !! इससे उसका व्यवहार विद्रोही व आक्रामक भी हो सकता है !! साथ ही बच्चा जहाँ भी जाएगा पहले ही मानसिक रूप से स्वयं को हारा हुआ महसूस करेगा !!
          अत: पारिवारिक माहौल सामान्य रख कर, कम अंक प्राप्त होने पर " हमदर्दी " जताने वाले " हमदर्दों " से बच्चे को दूर रखिए। ऐसे समय पर बच्चे को उपजी हताशा की मन:स्थिति से जल्द से जल्द निकालने का काम प्राथमिकता से किया जाना चाहिए, क्योंकि वहअसफलता से हतोत्साहित होकर संकोचवश या अपराध बोधवश मन की बात कह सकने की स्थिति में नहीं होता !! इसलिए बच्चे को आउटिंग पर ले जाकर खुला माहौल प्रदान कीजिए। अपने बच्चे का सम्पूर्ण मूल्यांकन कीजिये कम अंक लाने पर भी उसकी पीठ थप थपाइए ... विश्वास में लीजिये और खेल-खेल में उसकी कमियों का धीरे-धीरे, दोस्त बनकर सकारात्मक तरीके से हल सुझाते हुए मिलजुल कर निस्तारण कीजिएगा . बहुत आवश्यक होने पर,ही बच्चे के सामने किसी अन्य को, उसके कम अंको को बच्चे के अन्य सकारात्मक पहलुओं से जोड़कर गर्व से बताइए ।
           विपरीत परिस्थितियों में, आपका सकारात्मक व सहयोग पूर्ण व्यवहार, वयस्क होते बच्चे को आपके करीब लायेगा इस तरह एक उत्साह भरा और सकारात्मक वातावरण निर्मित होगा जिससे बच्चे में आगे कुछ अच्छा कर दिखाने का जज्बा उत्पन्न होगा।
          यहीं से उसके व्यवहार, लगन और लक्ष्य के प्रति समर्पण भाव में अपेक्षित परिवर्तन नजर आने लगेगा और जो आप बच्चे से चाहते हैं वो आपको सहज ही प्राप्त हो सकता है। बच्चे पर अप्रत्यक्ष नजर रखना भी अति आवश्यक है।

No comments:

Post a Comment