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Thursday 23 July 2015

बच्चों में पढने, लिखने व याद करने की दिशा में रूचि उत्पन्न करने हेतु एक पहल ---

 बाल कविता के माध्यम से पढने, लिखने व याद करने की दिशा में रूचि उत्पन्न करने हेतु एक पहल

             कहानी और कविता बच्चों. की जन्मजात रूचि के विषय हैं, बच्चों को पंचतंत्र में पशु-पक्षियों के माध्यम से शिक्षा प्रदान करने का प्रयास किया गया है.
            पुराने समय में दादी, नानी और मां बच्चों को कहानियां व लोरियों के रूप में कविता सुनाती थी। कहानियाँ में ही बच्चे, कल्पना की उड़ान भरकर परियों के देश में पहुँच जाते थे, और लोरियों का सुखद आनंद पाकर सो जाते थे ये कहानियां और कविताएँ सत्य और यथार्थ से परिचय करवाने के साथ-साथ, साहस, बलिदान, त्याम और परिश्रम जैसे गुण, बच्चों में विकसित करतीं थीं.
बच्चे का सबसे अधिक समय मां के साथ गुजरता है, मां ही उसे प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से साहित्य तथा शिक्षा संबंधी जानकारी देती है लेकिन बदले भौतिकवादी परिदृश्य में एकल परिवार संस्कृति पनपने लगी हैं. परिवारों में बुजुर्गों नहीं दिखाई देते !! माता-पिता, परिवार की भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति करने में, चाहकर भी, बच्चों को व्यक्तिगत समय देने में असमर्थ से लगते हैं !!
      ऐसी स्थिति में विपरीत शैक्षिक परिवेश,कमजोर आर्थिक पृष्ठभूमि के संसाधन विहीन, परिवारों के बच्चों के उज्जवल भविष्य की एकमात्र आशा किरण, सरकारी विद्यालय ही हैं..
     दरअसल, बाल साहित्य का उद्देश्यव बाल पाठकों का मनोरंजन करना ही नहीं अपितु उन्हें आज के जीवन की सच्चाइयों से परिचित कराना भी होना चाहिए. उसी के अनुरुप उनका चरित्र निर्माण होगा। कहानियों व कविताओं के माध्यम  से हम बच्चों का चरित्र निर्माण कर सकते हैं तभी ये बच्चें जीवन के संघर्षों से जूझकर, ईमानदारी से देश की विभिन्न क्षेत्रो में सेवा कर सकेंगे.
बाल-मनोविज्ञान को दृष्टिगत रखकर लिखी गयी कहानियों व कविताओं से बाल मानस पटल पर उतर कर, बच्चों के निर्मल मन पर प्रभाव डालकर, संस्कार, समर्पण, सदभावना और भारतीय संस्कृति के तत्वों को स्थायी रूप से बिठाया जा सकता है.
           अब तस्वीर पर चर्चा की जाय. दरअसल आज बच्चों से कविता न सुन सका तो बच्चे सुनाने की जिद करने लगे. छुट्टी का समय हो चला था तो कुछ बच्चे अपने अभिभावकों के साथ घर जा चुके थे. तो मैंने बच्चों का मन रखने के लिए कहा, “ जिन बच्चों को कवितायेँ याद हो गयी हैं वो आगे आ जाएँ !” बहुत ही सुखद आश्चर्य परिपूर्ण अनुभव रहा, जब इस स्तर में चौथी कक्षा में पहुंचे इन उपस्थित 26 बच्चों में से 23 बच्चे उत्सुकता से दौड़ते हुए, कविता सुनाने आगे आ गए !! प्रसन्नता अविभूत क्षणों में बच्चों की तस्वीर लेने का लोभ संवरण न कर सका..
             इस सुखद आश्चर्य की पृष्ठभूमि में वे बाल कवितायें हैं जिनको मैं विभाग द्वारा निर्धारित पाठ्यक्रम पढ़ाने के पश्चात, बचे समय में इन बच्चों के सहयोग से कक्षा-कक्ष में ही लिखकर आप साथियों तक फेसबुक के माध्यम से पहुंचाता हूँ.इन कविताओं में बच्चों का सहयोग लिया जाता है, जिस कारण वे इन कविताओं में खुद को भी अनुभूत करते हैं.और याद करने में अतिरिक्त रूचि लेते हैं. साथियों, आप इन बच्चों का उत्साहवर्धन अवश्य कीजियेगा. कल इन बच्चों को आपके उत्साहवर्धन से अवगत करवाऊंगा. इससे इन बच्चों का उत्साह और अधिक बढेगा..
             कविता के माध्यम से बच्चों का विभिन्न दिशाओं में मानसिक विकास तो होता ही है लेकिन प्रत्यक्षत: मुझे बच्चों में पढने, लिखने व याद करने में रूचि उत्पन्न करने के दिशा में, कविता विधा का उपयोग कम समय खर्चीला व बहुत प्रभावकारी प्रयोग अनुभूत हुआ.
        स्वलिखित कविता याद करवाने के पीछे मेरा उद्देश्य , बच्चों में सृजन के प्रति अभिरुचि उत्पन्न करने के साथ-साथ शिक्षण में आने वाली सबसे बड़ी समस्या, पढने, लिखने व याद करने की दिशा में रूचि उत्पन्न करना है ..



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