आत्मबोध .....
मेरठ के पास एक कस्बा है शामली, वहाँ एक अध्यापक थे, नाम था सुखवीर सिंह। चेहरा गहरा श्यामवर्ण होने के कारण, राह में आते-जाते, बच्चे उनको मौका मिलने पर "काला" ! "काला" ! कहकर चिढ़ाते और भाग जाते !! इन सब बातों पर उनको बहुत गुस्सा भी आता था और परेशान भी रहते थे । स्वभाव में भी चिड़चिड़ापन घर करने लगा था।
एक दिन बच्चों ने मार्ग में उनको रोज की तरह फिर 'काला' ! 'काला' ! कहकर चिढ़ाया ! आज तो वे आगबबूला हो गए और बच्चों को पकड़ने दौड़े !! एक बच्चा पकड़ में आ गया !! पहले तो खूब पिटाई लगाई! ! इतने पर भी गुस्सा शांत न हुआ तो बच्चे को पकड़ कर उसके पिता के पास बच्चे की करतूत का चिट्ठा तफ्तीश से बयाँ किया !!
मानो आज वे अपनी मन-मस्तिष्क की निरंतर पीड़ा का संपूर्ण समाधान चाहते थे !!
बच्चे के पिता ने शांतिपूर्वक गुरुजी की दिल की पीड़ा सुनकर सहज भाव में प्रश्न किया ; " गुरुजी, बच्चे ने सत्य ही कहा है !! क्या आपके चेहरे का रंग "काला" नही है ??"
प्रतियुत्तर में यह प्रश्न सुनकर गुरुजी अवाक रह गए !!
बिना उत्तर दिये, किंकर्तव्यमूढ़ शांतभाव से सीधे पेंटर की दुकान पर पहुंचे . पेंटर से अपने नाम की नई तख्ती बनवाई जिस पर अब नाम लिखवाया सुखवीर सिंह " काला " !!
उसे अपने घर के दरवाजे पर बाहर की तरफ लटका दिया !!
अब गुरूजी चैन से जीवन व्यतीत करने लगे !! अब उनको चिढ़ाने वाला कोई न था !! स्वभाव में चिड़चिड़ापन भी नहीं रहा ! शायद उनकी परेशानी का स्थाई समाधान इस घटना से अनायास ही हो चुका था।17.01.14
No comments:
Post a Comment