हंसने का भी एक खूबसूरत इतिहास या स्मृति होती है I "बस हम इस तरह हंसे थे,
या इसी बात को लेकर हंसे " -"इतिहास" का एक अर्थ यह भी हो सकता है .
15 अगस्त की रात 12 बजने के बाद जैसे ही घड़ी की सुई आगे बढ़ी राष्ट्रीय ध्वज को फहराने के लिए नेहरू और मौन्टबेटन आगे बढे ,तभी पीछे से जोर से शंख ध्वनि का नाद सुनाई दिया सब चौंक कर पीछे देखने लगे ,माउन्टबेटन के चेहरे पर डर के मारे हवाइयां उड़ने लगी तो नेहरू जी के चेहरे पर मुस्कान देखकर ,माउन्टबेटन आश्वस्त हो गये कि कोई ख़तरा नहीं है , उन्हें बाद में बताया गया कि यह मंगल ध्वनि सरदार बल्लभ भाई पटेल के हुकुम पर बजाई गई.
No comments:
Post a Comment