खेल संस्मरण
आज
घर में पड़ी ये पुरानी हॉकी स्टिक दिखी तो सहसा उत्तरकाशी,कॉलेज के दिनों
की याद ताजा हो आई, तब क्रिकेट खिलाडी के तौर पर मेरी ठीक-ठाक पहचान बनी
हुई थी लेकिन जब हमारे कोच आदरणीय प्रो. जगदीश बिष्ट जी ने मुझे हॉकी में
भी शामिल होने को कहा तो मैं परेशान हो गया क्योंकि मुझे हॉकी का ककहरा भी
नहीं आता था,साथ ही निक्कर पहनने में बहुत संकोच होता था.
खैर ! मैंने
अनुशासित खिलाडी की तरह भारी मन से बात मान ली. क्रिकेट में विकेटकीपर होने
के कारण मुझे हॉकी में गोलकीपर का स्थान दिया गया, ये मेरे लिए बहुत
सुकूनदायक था क्योंकि अब मैं निक्कर की जगह ट्रैक सूट का लोवर पहन कर खेल
सकता था.
अंतर महाविद्यालय मैचों के लिए मुझे सुबह क्रिकेट और शाम को हॉकी अभ्यास में शामिल होना पड़ता था.
एक महीना हाड तोड़ मेहनत के बाद हमारी हॉकी टीम ऋषिकेश पंहुंची, वहां एक
धर्मशाला में रुके. दोपहर को पहली बार प्रतियोगिता में शामिल होने वाली
हमारी अनुभवहीन टीम का मुकाबला गत कई वर्षों की चैम्पियन टीम डी.ए.वी.
देहरादून से था सुबह पौड़ी की टीम वापस आई .. तो जानकारी मिली की हार गयी है
.. लेकिन गोलकीपर होने के नाते मेरी उत्सुकता गोल संख्या के अंतर जानने
में अधिक थी, पता चला 0-19 स्कोर रहा.!! ये सुनकर तो मेरा सारा हौसला पस्त
हो गया !! क्योंकि पौड़ी में लम्बे समय से हॉकी का अच्छा माहौल है.और उसका
ये हाल !
खैर, मैंने अपने हतोत्साहित मनोभाव प्रकट नहीं होने
दिए क्योंकि टीम को मुझ पर बहुत भरोसा था. पूरी टीम आई.डी.पी.एल. मैच
खेलने समय पर पहुँच गयी. दो-दो कोच और पूर्ण साजो-सामान से सज्जित डी.ए.वी
टीम की किसी राष्ट्रीय टीम से कम नहीं लग रही थी .. और हमारी टीम....... !!
परिदृश्य ऐसा था जैसे गाँव देहात की टीम का किसी विदेशी टीम से मुकाबला
होना है !
बहरहाल मुकाबला प्रारम्भ हुआ, हमारी टीम ने शुरू
में 2-3 अच्छे मूव बनाये, मुझे संतोष हुआ. लेकिन उसके बाद डी.ए.वी. ने
आक्रमणों की झड़ी लगा दी वो इतना तेज मूव बनाते थे कि हमारे खिलाडी कहीं
पीछे छूट जाते थे ! फिर वो निश्चिंत होकर हमारे गोलपोस्ट पर निशाना साधते
थे. मुझे अब तक अच्छी तरह याद है कि मैंने बिना हेलमेट और चेस्ट गार्ड के,
खिलाडी से अधिक एक " योद्धा " की तरह कम से कम बीस सीधे गोल बचाए थे.
ये सब देखकर हमारे खिलाडियों का हौसला अवश्य बढ़ता था. दूसरे हाफ के
पूर्वार्ध तक स्कोर था, 0-0.. इतने में टीम के सबसे अनुभवी और काबिल खिलाडी
से चूक हो गयी जीरो एंगल ( कार्नर ) से किये गए तेज रफ़्तार हिट को रोकने
के प्रयास में वो ठीक मेरे सामने आ गया लेकिन अपनी स्टिक से गेंद को न रोक
सका ! ठीक सामने अपने खिलाडी के होने के कारण गेंद मुझे नहीं दिखाई दी,
गेंद पर नजर रखने की हड़बड़ाहट में मेरे और गोल पोस्ट के मध्य मुश्किल से
एक फुट की दूरी बन गई जिसको भेदती हुई तेज गेंद सीधे गोल में पहुँच गयी और
हम अनुभवहीन, चैम्पियन टीम से अंत में 0-1 से सम्मान जनक रूप से मैच हार
गए.
हार से निराश जरूर था लेकिन अपने प्रदर्शन से मैं संतुष्ट
था .. मैच समाप्त हुआ.. दौड़कर मैच रेफरी ने मेरी पीठ थपथपाई, डी.ए.वी टीम
के सभी खिलाडियों ने मेरे पास आकर, मेरा हौसला बढाने हेतु मुझसे हाथ
मिलाया.
पहला मैच हारने के बाद भी मेरा चयन विश्व विद्यालय की
टीम में कर लिया गया जो कि आश्चर्यजनक था ! क्योंकि परम्परानुसार फाइनल में
पहुँचने वाली टीमों के ही दोनों गोलकीपर चुने जाते हैं.
हालांकि इतना लम्बा संस्मरण बहुत कम साथी ही पढेंगे लेकिन सोचता हूँ
कि मेरे मजबूत गोल रक्षण के बावजूद, सबसे अनुभवी व काबिल खिलाडी की जरा सी
असफलता और मेरी जरा सी गलती से गेंद गोल पोस्ट में जा लगी जिससे विपक्षी
टीम विजेता बन बैठी !!मुझे तो मान मिल गया लेकिन साथी खिलाडियों का परिश्रम
तो निष्फल ही गया !!
देश के सम्बन्ध में भी यही महसूस करता हूँ
कि सामजिक,आर्थिक व सामरिक किसी भी क्षेत्र में अनजाने में भी ऐसाी कोई
कमी न रह जाए जिसका शत्रु पक्ष लाभ उठा कर अपने घिनौने मकसद में कामयाब हो
सकें.... 12.06.15