गुरु ब्रह्मा, गुरु विष्णु गुरु देवो महेश्वर:,
गुरु साक्षात् परमं ब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवे नम:।आज का दिन मेरे भू लोक प्रवास हेतु तय अवधि के अंतर्गत एक और वर्ष पूर्ण होने का दिन था ! आत्मचिंतन का दिन था !!
सोचा ! मौका भी है और दस्तूर भी ! अतः क्यों न बच्चों के साथ मिलकर धरती का श्रृंगार किया जाय..तस्वीर की पृष्ठभूमि में दिख रहे घने नीम को भी कुछ वर्ष पहले इसी तरह रोपित किया था. समय तो पंख लगाकर उड़ता चला गया ! लेकिन इस दौरान नन्हा नीम, दरख़्त रूप धारण चुका है. और भी कई पेड़ हैं जो अब वयस्क हो चुके हैं.
नीम की छाँव में बच्चों को खेलते हुए देखता हूँ तो आत्मिक आनंद प्राप्त होता है और फिर बरबस ही बाल कविता फूट पड़ती हैं..
.......... नीम .........
सुबह सवेरे सबसे पहले
हमको दिखता प्यारा नीम
सुबह सुबह स्कूल में पहुंची
सो रहा था प्यारा नीम
मैंने उस पर पानी डाला
झट से जागा प्यारा नीम
सरसर सरसर पतियाँ हिलाता
हंसकर बैठा प्यारा नीम
सब बच्चे खुश होकर बोले
हमको भाता प्यारा नीम
आओ मिलकर वृक्ष लगायें
रोग भगाता प्यारा नीम
.. विजय जयाड़ा
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