परिवर्तन
हर शिक्षक की अभिलाषा होती है कि उसकी कक्षा का हर बच्चा उस कक्षा के शैक्षिक स्तर को प्राप्त करे और वह अपने पेशे के साथ न्याय कर सके. सरकारी विद्यालय की हर कक्षा में विभिन्न व प्रतिकूल परिवेश से बच्चे आते हैं इस कारण उनके अधिगम स्तर में भी काफी अंतर होता है. प्राय:: बहुत मेहनत करने के बाद भी जब कुछ बच्चों से वांछित परिणाम नहीं मिलता तो मानवीय स्वभाव होने के कारण झल्लाहट स्वाभाविक सी बात है लेकिन यदि बच्चे को प्रोत्साहित करते हुए बच्चे पर करीबी नजर रख कर उसका लगातार अप्रत्यक्ष मूल्यांकन किया जाता रहे तो झल्लाहट के स्थान पर आत्म संसुष्टि और सुकून निश्चित है.यदि प्रारंभ में ही तुरंत ध्यान न दिया जाय तो ऐसे बच्चे पिछड़ते चले जाते हैं फलस्वरूप हीन भावना से ग्रस्त होकर प्राथमिक स्तर में ही स्कूल आना छोड़ देते हैं और शिक्षा से दूर हो जाते हैं..तस्वीर में मेरे साथ ज्योति है. पहली कक्षा से ही बहुत ही आक्रामक स्वभाव ! पढाई-लिखाई में कोई रुचि नहीं !! मैले-कुचैले कपड़े, बिखरे बाल !!! कोई बच्चा या अभिभावक शिकायत करने आता तो मैं पूर्व अनुमान लगा लेता था कि शरारत करने वाली कोई और नहीं ! ज्योति ही होगी !
खैर ! ज्योति के घर-परिवार की जानकारी ली तो ज्ञात हुआ की पिता का निधन हो चुका है ..माँ कोठियों में काम करके परिवार का भरण-पोषण करती है...अब ज्योति की इस अतिरिक्त ऊर्जा को कक्षा कार्य के साथ-साथ अन्य रचनात्मक कार्यों की तरफ मोड़कर, डांट-डपट के स्थान पर व्यक्तिगत महत्व देकर, छोटे-छोटे काम पर प्रशंसा, प्यार- दुलार, समझाने और प्रोत्साहन का दौर चलता रहा लेकिन शरारतें कम न हुई. खैर मैंने भी हार नहीं मानी ....तीन साल के बाद पिछले साल चौथी कक्षा में ज्योति में सार्थक परिवर्तन नजर आने लगा तो प्रयास का प्रतिफल अनुभव कर आत्म संतुष्टि हुई.
अब पांचवीं कक्षा में पहुँचने पर स्थिति ये है कि जब मैं कक्षा में पढ़ा रहा होता हूँ तो बात करने वाले बच्चे को धमका कर ध्यान देने को कहती है. कभी-कभी बच्चों का भाषा मात्रा ज्ञान परखने के उद्देश्य से श्याम पट्ट पर लेखन में जानबूझकर कुछ शब्दों पर मात्राएँ नहीं लगाता तो ज्योति तुरंत उस तरफ ध्यान आकर्षित करने लगी है अर्थात पढाई की तरफ गज़ब का रुझान उत्पन्न हो गया है ...
अब मैं पूर्ण आश्वस्त हूँ कि ज्योति में नेतृत्व व विपरीत परिस्थितियों में भी कुछ अच्छा करने का जज्बा विकसित हो चुका है. इस साल इस पाँचवीं उत्तीर्ण करके दूसरे बड़े विद्यालय में चली जाएगी तो आसानी से वहाँ के वातावरण में खुद को समायोजित कर लेगी।
खैर, इस तरह के बच्चों पर मेरे व्यक्तिगत सम सामयिक अभिनव प्रयोगों और फलस्वरूप प्राप्त सफलता की फेहरिस्त काफी लम्बी है
बहरहाल आज इस बच्ची का जिक्र करने का कारण ये है किआज गणतंत्र दिवस सांस्कृतिक कार्यक्रमों में पहली बार भाग लेकर अपनी नृत्य प्रतिभा से सभी को आश्चर्य चकित कर अपनी तरफ आकर्षित कर दिया ... सोचता हूँ विद्यालय केवल किताबी पाठ्यक्रम को पूर्ण करने का केंद्र न होकर, विभिन्न क्रियाकलापों के माध्यम से छात्र में अन्तर्निहित प्रतिभा को पहचानकर, छात्र के सम्पूर्ण व्यक्तित्व को निखारने का संस्थान है.
मेरा निजी अनुभव है कि इस तरह के बच्चों की अतिरिक्त ऊर्जा को सकारात्मक दिशा देकर जीवन को सही राह पर लगा दिया जाय तो ये बच्चे कक्षा के होशियार बच्चों की अपेक्षा, सम्बन्धित शिक्षक को जीवन भर याद रखते हैं...और अधिक मान भी देते हैं.
No comments:
Post a Comment