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Monday, 27 August 2018

पुरस्कार !!


पुरस्कार !!          

 मेरे अध्यापक साथी प्रतियोगिताओं में अपनी सफलता पर बधाइयां स्वीकार रहे हैं लेकिन मैं अपनी असफलता को भी आपके समक्ष प्रस्तुत करने का इच्छुक हूँ. अवसर क्षेत्रीय विज्ञान मेला था जिसमें अध्यापकों की विज्ञान आधारित स्वरचित काव्य पाठ प्रतियोगिता का आयोजन हुआ.. और तीसरी बार भाग लेने के बाद भी मैं पिछले अवसरों की तरह इस बार भी फिसड्डी ही रहा !!
हालांकि अपनी कमियों से अच्छी तरह वाकिफ हूँ और ये भी समझता हूँ कि मुझे पुरस्कार नहीं मिलेगा फिर भी अपनी कविता लेकर पहुँच जाता हूँ !! निर्णायक महोदय, जो कि मेरे अच्छे दोस्त भी हैं, के मुख से अपनी कमी जाननी चाही.. तो उन्होंने छूटते ही वही कमियाँ गिना दी.... अब ये कैसे बताऊँ कि मुझे यह बताने के लिए भी कि सुबह क्या खाया, सोचना पड़ता है !! तो इतनी लम्बी स्वरचित कविता को कैसे याद कर सकूँगा !! और जब कविता याद नहीं होगी तो भला सुर ताल का उचित समावेश कैसे हो पायेगा. निश्चित है कि प्रस्तुतीकरण प्रभावित होगा और प्रतिभागी में आत्मविश्वास की कमी परिलक्षित होगी लिहाजा नतीजा फिसड्डी ही तय है.
अपनी भुलक्कड़ी पर याद आया.. मेरे इतिहास पर आधारित आलेख के रेडियो रूपांतरण के प्रसारण के प्रारंभ में कुमुद जी ने अपनी बेहतरीन आवाज और अंदाज में शेर सुनाया. मुझे शेर बहुत अच्छा लगा तो मैंने कुमुद जी से उस शेर को आलेख में शामिल करने पर ख़ुशी का इजहार किया. कुमुद जी बोली ... “ विजय जी... वो शेर आपने ही तो लिखकर भेजा था !! “.............. दरअसल आलेख की पृष्ठभूमि के आधार पर मैंने ही वह शेर लिखकर आलेख के साथ मेल किया था !!!
इस तरह कुमुद जी द्वारा बेहतरीन आवाज और अंदाज में प्रस्तुतीकरण ने मेरे एक सामान्य से शेर को किसी मंजे हुए शायर सा लिखा शेर बना दिया !!
खैर ! लिखने का प्रयास तो करता हूँ लेकिन काव्य पाठ को लेकर मैं कभी भी संजीदा नहीं हुआ. लिखना और उसका मंच से सस्वर पाठ करने में निश्चित ही बड़ा अंतर है. हालाँकि सोचता हूँ..स्कूली दिनों में पढ़ी जिन कविताओं को अब भी गुनगुनाता हूँ उनके रचयिताओं ने अपनी कविता के साथ कविता की लय के सरगम को सम्बद्ध नहीं किया !! लेकिन पाठक कविता के विषय पर प्रभावशाली लेखन से प्रभावित होकर कविता को अपने अनुसार गुनगुना लेता है ..




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