मानव और मानवता
मजहबी मेलों में इंसान गुम गया,
कोई हिन्दू कोई मुसलमां तो कोई ईसाई हो गया !!
.. विजय जयाड़ा
मानव और मानवता ... उत्तराखंड में स्वामी विवेकानंद
अपने अस्तित्व में आने के बाद हिमालय, मानव को अपनी नैसर्गिक सुन्दरता से आकर्षित करता आया है लेकिन वाह्य सुन्दरता से इतर जो भी हिमालय की आतंरिक या अप्रत्यक्ष सुन्दरता और चुम्बकत्व को महसूस कर पाया, वह हिमालय से रहस्यमय ऊर्जा प्राप्त करके विशिष्ट मानव हो गया..
स्वामी विवेकानंद जी ने उत्तराखंड की प्रथम यात्रा पर ही हिमालय के इन दिव्य पहलुओं को भलीभांति महसूस कर लिया था. यही कारण था कि स्वामी जी कई बार उत्तराखंड आये..
बकौल पूर्व मुख्यमंत्री उत्तराखंड श्री निशंक जी.... एक बार अल्मोड़ा यात्रा पर लम्बे चढ़ाई वाले मार्ग पर चलते हुए जब स्वामी जी बहुत थक गए तो करबला नाम के स्थान पर रुके. उन्होंने गुरु भाई से पानी लाने को कहा. अखंडानंद पानी लेने चले गए लेकिन स्वामी जी इतने निढाल हो गए कि लगभग अचेतावस्था में चले गए. तभी पास ही कब्रिस्तान में रहने वाले फ़कीर जुल्फिकार अली की नजर उन पर पड़ी. वो दौड़कर आया और उसने खाने के लिए स्वामी जी की तरफ ककड़ी बढाई लेकिन स्वामी जी अपना हाथ तक हिलाने में असमर्थ थे इसलिए स्वामी जी ने फ़कीर से ककड़ी मुंह में डालने का इशारा किया.
किन्तु फ़कीर पीछे हटते हुए बोला– " मैं मुसलमान हूँ ! "
स्वामी जी ने कहा- “ तो इसमें क्या हुआ ? क्या हम सब भाई नहीं हैं ? “
इसके बाद फ़कीर ने अपने हाथों से स्वामी जी को ककड़ी खिलाई. इस प्रकार स्वामी जी की प्राण रक्षा हो गयी.
कालांतर में शिकागो धर्म संसद से जगत प्रसिद्धि पाने के बाद जब स्वामी जी पुन: अल्मोड़ा आये तो स्वागत के लिए पहुंची हजारों की भीड़ में भी स्वामी जी ने फ़कीर जुल्फिकार को पहचान लिया और मंच पर बुलाकर लोगों को बताया – “मैं जीवन में कभी भी इतना नहीं थका था तब इन्होने मेरे प्राण बचाए थे."
अपने अस्तित्व में आने के बाद हिमालय, मानव को अपनी नैसर्गिक सुन्दरता से आकर्षित करता आया है लेकिन वाह्य सुन्दरता से इतर जो भी हिमालय की आतंरिक या अप्रत्यक्ष सुन्दरता और चुम्बकत्व को महसूस कर पाया, वह हिमालय से रहस्यमय ऊर्जा प्राप्त करके विशिष्ट मानव हो गया..
स्वामी विवेकानंद जी ने उत्तराखंड की प्रथम यात्रा पर ही हिमालय के इन दिव्य पहलुओं को भलीभांति महसूस कर लिया था. यही कारण था कि स्वामी जी कई बार उत्तराखंड आये..
बकौल पूर्व मुख्यमंत्री उत्तराखंड श्री निशंक जी.... एक बार अल्मोड़ा यात्रा पर लम्बे चढ़ाई वाले मार्ग पर चलते हुए जब स्वामी जी बहुत थक गए तो करबला नाम के स्थान पर रुके. उन्होंने गुरु भाई से पानी लाने को कहा. अखंडानंद पानी लेने चले गए लेकिन स्वामी जी इतने निढाल हो गए कि लगभग अचेतावस्था में चले गए. तभी पास ही कब्रिस्तान में रहने वाले फ़कीर जुल्फिकार अली की नजर उन पर पड़ी. वो दौड़कर आया और उसने खाने के लिए स्वामी जी की तरफ ककड़ी बढाई लेकिन स्वामी जी अपना हाथ तक हिलाने में असमर्थ थे इसलिए स्वामी जी ने फ़कीर से ककड़ी मुंह में डालने का इशारा किया.
किन्तु फ़कीर पीछे हटते हुए बोला– " मैं मुसलमान हूँ ! "
स्वामी जी ने कहा- “ तो इसमें क्या हुआ ? क्या हम सब भाई नहीं हैं ? “
इसके बाद फ़कीर ने अपने हाथों से स्वामी जी को ककड़ी खिलाई. इस प्रकार स्वामी जी की प्राण रक्षा हो गयी.
कालांतर में शिकागो धर्म संसद से जगत प्रसिद्धि पाने के बाद जब स्वामी जी पुन: अल्मोड़ा आये तो स्वागत के लिए पहुंची हजारों की भीड़ में भी स्वामी जी ने फ़कीर जुल्फिकार को पहचान लिया और मंच पर बुलाकर लोगों को बताया – “मैं जीवन में कभी भी इतना नहीं थका था तब इन्होने मेरे प्राण बचाए थे."
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