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Wednesday, 30 March 2016

पेशावर कांड









       

पेशावर कांड

             23 अप्रैल 1930, पेशावर कांड द्वारा इंसानियत को बुलंद करने वाले, उत्तराखंड, जनपद पौड़ी के हवलदार मेजर चन्द्र सिंह भंडारी, इंसानियत के महानायक, वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली के रूप में याद किये जाते हैं और भविष्य में भी श्रद्धा पूर्वक, प्रेरक व्यक्तित्व के रूप में याद किये जाते रहेंगे ..
              सीमान्त गाँधी, खान अब्दुल गफ्फार खान द्वारा सृजित खुदाई खिदमदगार के निहत्थे पठान कार्यकर्ता जब खिलाफत आन्दोलन के तहत पेशावर में शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे थे ब्रिटिश सेना के अंतर्गत कार्य कर रही रॉयल गढ़वाल रायफल के अंग्रेजी कमांडर ने प्रदर्शनकारियों पर “ ओपन फायर “ का आदेश दिया लेकिन परिणाम को समझते हुए भी मातृभूमि के पुजारी चन्द्र सिंह भंडारी ने उनके आदेश की नजरअंदाज करते हुए आदेश दिया “ सीज फायर “ !!! रॉयल गढ़वाल रायफल के जवानों ने गोली चलाने से इनकार कर दिया.परिणाम स्वरुप सभी का कोर्ट मार्शल कर दिया गया . अलग-अलग तरह की सजाएँ भी दी गयी... लैंसडाउन से गए बैरिस्टर मुकंदी लाल की पैरवी के फलस्वरूप वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली को मृत्युदंड, की जगह आजन्म कारावास की सजा सुनाई गयी ..
      पिताजी पौड़ी में पूर्व सैनिकों के पुनर्वास को देखने वाले विभाग में कार्यरत थे तो वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली उनके ऑफिस में आया करते थे अत: मेरा भी उनसे साक्षात्कार हो जाता था !! आज प्रेरक व्यक्तित्व की तस्वीर स्वाभाविक रूप से मानस पटल पर श्रदापूर्वक उभर आई 
 
 
 

R T E क्विज़ प्रतियोगिता ( 31.03.15 )



           छात्र व शिक्षक की दिनचर्या लगभग समान ही होती है, दोनों को अध्ययन में निरंतरता रखने व सम-सामयिक जानकारी से विज्ञ होने के साथ-साथ उत्साही व कर्तव्यों के प्रति संजीदा होना आवश्यक है. इसी क्रम में प्रशासन द्वारा छात्र और अध्यापकों के लिए अलग-अलग प्रतियोगिताएं भी आयोजित की जाती हैं. वास्तव में प्रतिभागी के रूप में किसी भी स्तर की प्रतियोगिता में अध्यापक का सम्मिलित होना, समय के साथ घर करती जड़ता व नीरसता का अंत करता है साथ ही आत्मविश्वास भी उत्पन्न करता है ..
          आज ( 31.03.15) सर्व शिक्षा अभियान के अंतर्गत R T E ( The Right of Children to Free and Compulsory Education Act, 2009 ) के परिप्रेक्ष्य में, अध्यापकों की क्विज़ प्रतियोगिता का आयोजन हुआ था जिसमें हमारी टीम ( विजय जयाड़ा, तरुण कुमार व अजय कुमार ) ने प्रथम स्थान प्राप्त किया..


मन की बात ... " साइंस क्विज "




मन की बात ... " साइंस क्विज "

         जब कभी सफलता या सम्मान मिलता है तो उस सफलता के पीछे प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े लोग सहसा ही याद आ जाते हैं दूसरे क्षेत्रों में जो कोई भी सफलता मुझे मिली उसका जिक्र उचित समय पर करूँगा फिलहाल आज समाप्त हुए क्षेत्रीय विज्ञान मेले में अध्यापकों की "साइंस क्विज प्रतियोगिता" में हमारी टीम (मैं स्वयं, कु. आरती,कु. प्रिया राणा, श्रीमती राज लक्ष्मी) को प्राप्त दूसरे स्थान के उपलक्ष्य में क्विज में सफलता की बात साझा करने का मन है.
        खेल की पृष्ठभूमि होने से मैदान में दर्शकों का सामना करने मैं मुझे संकोच नहीं होता लेकिन अन्य प्रतियोगिताओं में व मंच से दर्शकों का सामना करने में बहुत संकोच होता था !!
            करीब 10 वर्ष पहले विज्ञान मेले में हमारे विद्यालय की टीम में एक सदस्य की कमी थी मेरी प्रधानाचार्या श्रीमती कमलेश कुमारी जी ने मुझ पर विश्वास कर टीम में शामिल होने को कहा.. लेकिन मेरा संकोच आड़े आ रहा था। मना करना चाहता था लेकिन प्रधानाचार्या जी के विश्वास के चलते या कहिये बड़ों की अवज्ञा न करने के शिष्टाचार के चलते उनकी बात न टाल सका और संकोची मन से प्रतियोगिता में टीम के अन्य साथियों के साथ सम्मिलित हो गया. हमारी टीम अंतिम दौर में पहुँच गयी स्थान सुनिश्चित हो गया लेकिन प्रथम स्थान के लिए दो टीमों के समान अंक होने के कारण अनिर्णय की स्थिति में अंतिम प्रश्न दोनों टीमों के सामने प्रस्तुत किया गया.दूसरी टीम जवाब न दे सकी. मेरी टीम की दूसरी तीन महिला साथियों के पास भी नहीं था. उन्होंने आशान्वित निगाहों से मेरी तरफ देखा !! अब तक मैं झिझक के कारण सिकुड़ रहा था लेकिन छूटते ही मैंने उत्तर दे दिया .. इसी के बाद मेरा आत्मविश्वास चरम पर पहुँच गया ... प्रश्न था .." वोद्का शराब किस से बनायीं जाती है " ... मेरा सही उत्तर सुनकर सारे दर्शक और प्रतिभागी जोर से हंस पड़े ( हंसने का कारण आप समझ ही रहे होंगे !! ) और हम विजेता बन गए !!
             तब से आज तक, क्विज में नौ ( 5 प्रथम, 4 द्वितीय ) पुरस्कार प्राप्त कर चुका हूँ .. जब भी क्विज प्रतियोगिता में स्थान प्राप्त होता है तो उस पुरस्कार को मन से अपनी प्रधानाचार्या श्रीमती कमलेश कुमारी जी को समर्पित करना और साथियों से क्विज में प्रथम प्रविष्टि में उनके योगदान का जिक्र करना कभी नहीं भूलता.
         ये कोई बहुत बड़ी सफलता नही लेकिन यहाँ इन बातों को साझा कर मैं ये कहना चाहता हूँ कि हमें सफलता तक पहुंचने के अवसर कई रूपों में व माध्यमों से मिलते हैं, यदि कोई शुभेच्छु हमें उसका लाभ लेने को प्रेरित या बाध्य करता है तो सम्मान वशात् कहिये या बड़ों की अवज्ञा न करने का शिष्टाचार.. स्वयं के अहम् व संकोच पर विजय प्राप्त कर उत्साह से आगे बढ़ना ही श्रेयस्कर है. हर व्यक्तित्व में अपार सम्भावनाएं निहित होती हैं, प्रेरितकर्ता व शुभेच्छु साथियों का आशीर्वाद, ये तय है कि सदैव हमारी सफलता सुनिश्चित करेगा ..ये मेरा स्वयं का साक्षात् जीवन अनुभव है।
 
 

विद्यालय, संस्कार मंदिर : एक विचार



विद्यालय, संस्कार मंदिर : एक विचार

घर पहुँचने से पहले,
नेक काम कर लिया जाए,
करने तो हैं काम बहुत...
चलो पहले प्यासे पौधों को
पानी पिला लिया जाए ..

......विजय जयाड़ा 
 
            “ बच्चों !! आज छुट्टी का वक़्त हो चला है, अब आप घर जायेंगे, इसलिए बचा हुआ पानी इन पौधों को दे दीजिये. आजकल गर्मियां बहुत हैं इस पानी से ये पौधे, कल तक ताजगी और ठंडक महसूस करते रहेंगे.”
                    बचपन से ही बच्चों में पेड़-पौधों और जंतुओं के प्रति प्रेम और सहिष्णुता का भाव जगाना आवश्यक है. इस कार्य में बिद्यालय का वातावरण महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है. विद्यालय केवल किताबी ज्ञान प्रदान करने का या एकत्र सूचनाओं को सम्प्रेषण करने का संस्थान नही बल्कि अच्छे संस्कारों को प्रदान करने व संस्कारों को संवर्धित करने का मंदिर भी है जहाँ अलग-अलग पृष्ठभूमि के बच्चे एक ही स्थान पर प्रतिदिन अपने जीवन का महत्वपूर्ण समय गुजारते हैं. विभिन क्रिया-कलापों के माध्यम से बातों-बातों में, बच्चों में अच्छे संस्कारों का हस्तांतरण व पुष्टिकरण किया जा सकता है ...इस कार्य के लिए किसी विशेष कक्षा या पीरियड की आवश्यकता भी नही ..


खुदी को कर कर बुलंद इतना ..... !! सलाम .....प्रोफ़ेसर देसाई साहब




 

                                 खुदी को कर कर बुलंद इतना ..... !! 

                                            सलाम .....प्रोफ़ेसर देसाई साहब



                 हम बातें तो बहुत बड़ी-बड़ी कर लेते हैं, दूसरों के कार्यों पर खूब टीका-टिप्पणी कर लेते हैं ..लेकिन...!! स्वयं अपने परिवार तक ही सीमित रह जाते हैं !! . समाज में ऐसे कई प्रेरणादायी व्यक्तित्व हैं जो बिना प्रसिद्धि की चाह में सहज और सहृदय भाव से बिना शोर-गुल व दिखावे के ,समाज को नयी दिशा व दशा प्रदान कर रहे हैं, वे किसी सरकारी सहायता के मोहताज नहीं ..न ही उनको किसी से कोई शिकायत है .. कर्म और सेवा ही उनके जीवन का उद्देश्य है
               51 वर्षीय प्रो. संदीप देसाई, गरीब बच्चों के लिए एक गत्ते का डिब्बा लेकर 'भीख मांगकर' स्कूल बनवाते हैं। ट्रेन के डिब्बे में चढ़कर पहले मराठी में कहते हैं - 'विद्या दान सर्वश्रेष्ठ दान आहे। हा दान द्या आणि निर्धन बालकांची मदद करा।' फिर इसी बात को हिंदी और अंग्रेजी में दोहराते हैं ..
                  फिर विस्तार से कहते हैं , 'आप सब पढ़े-लिखे हैं। पढ़ाई का महत्व जानते हैं। पर बहुत से बच्चों के पास पढ़ने की सुविधा और साधन नहीं है। न ही कभी हो सकते हैं। उन्हें पढ़ने में आप मदद कर सकते हैं। आप समर्थ हैं सर, इसलिए आपको यह नेक काम करना ही चाहिए।'ये हैं प्रोफेसर संदीप देसाई। चमत्कृत कर देने वाली शैली में तीन-चार मिनट बोलकर, सबके आगे डिब्बा घुमाना शुरू कर देते हैं । एक रुपये के सिक्के से लेकर 100 रुपये के नोट तक उस डिब्बे में गिरने लगे। हर यात्री द्वारा डिब्बे में कुछ डालने के बाद देसाई अपनी दाईं हथेली अपने दिल पर रखकर थोड़ा झुकते और मुस्कराकर कहते, 'थैंक यू सर, गॉड ब्लैस यू.'दो स्टेशन के बाद वे फिर अगले डिब्बे में चढ़ जाते हैं । कुछ यात्री उनकी प्रशंसा के पुल बांधने लगते हैं । एक युवक कहता है , 'ये अंकल जब भी ट्रेन में मिलते हैं, तो मैं अपनी पॉकेट मनी से बचाये 50 रुपये इन्हें दे देता हूं।'
यात्रियों में कई प्रो.देसाई को जानते थे. वे गोरेगांव में रहते हैं। पेशे से इंजिनियर हैं। एस. पी. जैन इंस्टिट्यूट ऑफ मैनेजमेंट एंड रिसर्च में प्रोफेसर थे। 1997 में वहां से नौकरी छोड़कर अंग्रेजी माध्यम के एक स्कूल में पढ़ाने लगे। इसमें गोरेगांव की झोपड़ियों के बच्चे पढ़ते थे। वहां पढ़ाते हुए उन्हें महसूस हुआ कि ये बच्चे तो फिर भी पढ़ पा रहे हैं, कितने ही बच्चे पढ़ाई कर ही नहीं पाते। आसपास कोई स्कूल न होने के कारण। बस, उसी दिन से उन्होंने ऐसी जगहों पर स्कूल बनाने की ठान ली। रोजी के लिए ये इधर-उधर कुछ काम करते रहे। 2005 में उन्होंने झोपड़पट्टी के बच्चों के लिए 'श्लोक' स्कूल बनाया। फिर रत्नागिरी में गरीब ग्रामीण के लिए एक स्कूल बनाया। जब उसमें पैसे की कमी आयी, तो उन्होंने ट्रेन में भीख मांगना शरू कर दिया।
             वे छह घंटे गोरेगांव से चर्चगेट तक लोकल ट्रेन में सफर करके भीख मांगने लगे। इस तरह वे 3000 रुपये रोज इकट्ठे करने लगे। पांच महीने में उन्होंने चार लाख रुपये एकत्र कर लिए। अगले चार महीने में दूसरा स्कूल भी शुरू हो गया। देसाई वहीं नहीं रुके। उनकी योजना ऐसे दर्जनों स्कूल बनाने की है। इसलिए वे आज भी रोज ट्रेनों में भीख मांगते हैं। रोज जितना पैसा मिलता है, रात को उसका हिसाब लिखकर सोते हैं और अगली सुबह पैसा बैंक में जमा कर देते हैं। अभी उन्हें दर्जनों स्कूल जो बनवाने हैं।
               अभिनेता सलमान खान ने एक दिन ट्विटर पर प्रोफेसर देसाई को सलाम किया। फिर सलमान ने उन्हें फोन करके उनसे उनका बैंक एकाउंट नंबर लिया। उनसे वादा भी लिया कि मैं आपकी मदद करूंगा, पर आप किसी को बताना मत। इसलिए वे सलमान द्वारा दी गई रकम के बारे में नहीं बताते। दरअसल प्रो. देसाई की मां एक ग्रामीण स्कूल में अध्यापिका थीं। देसाई ने बचपन से देखा था कि किस तरह गरीब बच्चे पढ़ नहीं पाते। तभी उन्होंने ऐसे बच्चों के लिए कुछ करने का संकल्प किया था। वह संकल्प आज वे पूरे तन-मन-धन से निभा रहे हैं।ज्ञान की ज्योति ऐसे ही जलती है... आपके इस समर्पण युक्त ज़ज्बे को .. ... सलाम .....प्रो, देसाई साहब
 
 
 

Saturday, 19 March 2016

इजाजद हो गर नफरत की



इजाजद हो
गर नफरत की
  तो वो मजहब नहीं !
इंसानियत से भी
       जरूरी हो ___
   कोई मजहबी किताब नहीं !!

.. विजय जयाड़ा


हर लम्हा हसीन और खुशगवार होता है




हर लम्हा हसीन और खुशगवार होता है
    मासूम सा बचपन जब आसपास होता है !!
.. विजय जयाड़ा 

            इस वर्ष की बौद्धिक फसल तैयार है .. बस सत्रान्त में औपचारिक रूप से ये देखना बाकी है कि बौद्धिक फसल की हर बाली का कितना बौद्धिक विकास हो पाया है !!
            वर्तमान सत्र के पठन-पाठन व परीक्षाओं के दौर की औपचारिक समाप्ति का यादगार लम्हों से परिपूर्ण अंतिम दिन .. मेरी कक्षा, कक्षा-चतुर्थ के बच्चे ..


Sunday, 13 March 2016

अथ श्री यमुना कथा ! या व्यथा !! पर्यावरण पर एक मंथन : भाग - तीन



अथ श्री यमुना कथा ! या व्यथा !!

पर्यावरण पर एक मंथन : भाग - तीन

यह कदम्ब का पेड़ अगर होता यमुना तीरे
    मैं भी इस पर बैठ कन्हैया बनता धीरे धीरे !!

        वर्तमान परिप्रेक्ष्य में अगर देखा जाय तो दिल्ली में निष्प्राण व बेहाल यमुना को देखकर सुभद्रा कुमारी चौहान जी की ये पंक्तियाँ दुर्भाग्यवश अप्रासंगिक सी जान पड़ती हैं !!
         ये दृश्य गंगा नदी का है लेकिन सोचता हूँ क्या दिल्ली में यमुना इतनी ही निर्मल व स्वच्छ दिख सकेगी !! यमुना की इलाहबाद तक की कुल 1376 किमी. तक की यात्रा के दिल्ली में यात्रा के दौरान वजीराबाद से ओखला बैरेज तक 22 किमी. की दूरी का क्षेत्र का यमुना के कुल प्रदूषण में लगभग 79 % (साभार: इण्डिया वाटर पोर्टल) का हिस्सा है. यदि इस हिस्से को गन्दगी मुक्त करने की जिम्मेदारी, राजनीतिक पूर्वाग्रहों को त्यागकर, राज्यपाल, शहरी विकास, पर्यटन मंत्री रह चुके कुशल व सख्त प्रशासक श्री जगमोहन साहब को सौंप दी जाय तो निश्चित ही निष्प्राण यमुना फिर से प्राणवान हो सकती है (व्यक्तिगत विचार). इस क्रम में विभिन्न राजनीतिक दबावों के बावजूद भी अपने काम को निर्भीकता और कुशलता से अंजाम देने वालों में पूर्व चुनाव आयुक्त टी. एन. शेषन साहब व मेट्रो एम डी. श्रीधरन साहब भी उल्लेखनीय नाम हैं.
        दिलों में अपनी खूबसूरत पहचान खोती जा रही प्राकृतिक व सांस्कृतिक धरोहर, यमुना को पुनर्जीवित करने के निहितार्थ विभिन्न केंद्र सरकारों द्वारा अब तक किये गए प्रयासों में हजारों करोड़ रूपये यमुना में बहाए जा चुके हैं ! लेकिन यमुना की स्थिति बद से बदत्तर होती जा रही है !! इस कारण अब युद्ध स्तर पर प्रयास किये जाने आवश्यकता है. जिससे लन्दन की खूबसूरती बढ़ाती, टेम्स नदी की तरह यमुना भी दिल्ली की खूबसूरती में चार चाँद लगा सके और यमुना के गौरवमयी अतीत की वापसी सुनिश्चित हो सके.
         गंगा और यमुना को यदि परिदृश्य से हटा दिया जाय तो हमारी संस्कृति व कृषि निष्प्राण सी लगती है. सोचता हूँ दृढ राजनीतिक इच्छा शक्ति के आगे कुछ भी असंभव नहीं !! अकेले टेम्स ही नहीं दुनिया की कई नदियां ऐसे ही साफ़ की गईं हैं. जर्मनी में राइन, दक्षिण कोरिया में हान और अमरीका में मिलवॉकी नदियों को दृढ राजनीतिक इच्छा शक्ति के बल पर ही पुनर्जीवित किया जा सका है ..


Friday, 11 March 2016

निभाना भी धरम है ..





   > निभाना भी धरम है <

जीवन में अगर गम हैं
तो खुशियाँ भी कम नहीं
पथ में अगर शूल हैं
   फूलों की भी कमी नहीं ..

अंधेरों के बाद उजाले
   जब उसका ही करम है !
विश्वास है भगवान् पर
     तो निभाना भी धरम है ...
 ... विजय जयाड़ा

Thursday, 10 March 2016

अथ श्री यमुना कथा ! या व्यथा !! पर्यावरण पर एक मंथन : भाग - दो


अथ श्री यमुना कथा ! या व्यथा !!

पर्यावरण पर एक मंथन : भाग - दो

         नदियाँ, संस्कृति व समृद्धि का पर्याय ही नहीं बल्कि प्राकृतिक सौन्दर्य की पूरक भी हैं. लन्दन के बीचों-बीच बहकर शहर की खूबसूरती बढ़ाती टेम्स नदी भी कभी यमुना की तरह मृत होकर बीमारियों की जड़ बन चुकी थी. टेम्स नदी इतनी प्रदूषित हो गयी थी कि 1858 में इससे उठती भयंकर दुर्गन्ध के कारण संसद की कार्यवाही तक रोकनी पड़ी.. इसके बाद वहां की सरकार चेती और ईमानदारी से लगातार 50 वर्षों के सघन प्रयासों के उपरांत टेम्स पुन: अपने खूबसूरत स्वच्छ निर्मल रूप में आ सकी.
       अब मूल विषय पर चर्चा की जाय .. हिमालय के कालिंद शिखर से उद्गम से लेकर इलाहाबाद में गंगा में मिलने तक के यमुना के लगभग 1376 किमी. के सफ़र को पांच क्षेत्रों में बांटा गया है. इस सफ़र के अंतर्गत यमुना बहाव का सबसे छोटा व तृतीय क्षेत्र जो कि मात्र 22 किमी. का है दिल्ली महानगर के अंतर्गत आता है. यही क्षेत्र प्रदूषण की दृष्टि से यमुना के सफर में सबसे भयानक पड़ाव है जहाँ मैले नालों का पानी और कूड़ा-कचरा, कुल प्रदूषण में 79 % का हिस्सेदार बनकर, यमुना को सबसे अधिक विषैला करके उसे मृत घोषित करने को मजबूर कर देता है !! अकेले इस क्षेत्र में 22 गंदे नालों के जरिये प्रतिदिन लगभग 300 करोड़ ली. अपशिष्ट जल यमुना में छोड़ा जाता है. इसी कारण यमुना सफाई के लिए चलाया गया द्वितीय यमुना एक्शन प्लान केवल दिल्ली में यमुना की सफाई पर केन्द्रित किया गया था.
     दिल्ली, यमुना में केवल गन्दगी ही नहीं डाल रही है बल्कि यमुना के तटीय क्षेत्रों में अतिक्रमण करके, यमुना बैंक व शास्त्री पार्क मेट्रो स्टेशन अक्षरधाम मन्दिर, मिलेनियम बस डिपो, कॉमनवेल्थ खेल गाँव, इन्दिरा गाँधी इनडोर स्टेडियम सहित हजारों झुग्गी-झोपड़ियाँ भी बन गई है.
     DND पुल के पास यमुना खादर में “ आर्ट ऑफ़ लिविंग “ के सौजन्य से एक ताजा अस्थायी अतिक्रमण आजकल सुर्ख़ियों में है. 11 मार्च से 13 मार्च तक ध्वनि विस्तारक यंत्रों व तेज प्रकाश की पृष्ठभूमि में विश्व प्रेम और शान्ति का सन्देश के देने नाम पर श्री श्री रविशंकर और उनके अनुयायियों द्वारा आयोजित किये जा रहे विश्व सांस्कृतिक महोत्सव, का उद्घाटन भारत के प्रधानमंत्री और समापन माननीय राष्ट्रपति करेंगे. इस कार्यक्रम में शामिल होने वाले अनुमानित 35 लाख लोगों की व्यवस्था हेतु नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ((एनजीटी) के आदेशों का खुलम्म खुल्ला उल्लंघन करते हुए शांत यमुना खादर के एक बड़े भाग की प्राकृतिक भू स्थिति को अर्थ मूवर, जेनरेटर, जे सी वी, ट्रकों के उपयोग से रौंदकर और अशांत करके जैव विविधता को समाप्त कर स्थानीय पारिस्थितिक तंत्र को ध्वस्त कर दिया गया है ! 

         आयोजन के माध्यम से प्रेम और शान्ति के सन्देश के देने के क्रम में न जाने कितने पशु-पक्षी और जीवों के प्राकृतिक आवास समाप्त हो जायेंगे और तेज प्रकाश व ध्वनि विस्तारक यंत्रों द्वारा उच्च आवृत्ति वाली ध्वनियों के उपयोग से किस हद तक क्षेत्र के बचे-खुचे जीव व पारिस्थितिक तंत्र प्रभावित होगा इसका अनुमान आप स्वयं ही लगा सकते हैं. ध्यान देने योग्य यह भी है कि जिन क्षेत्रों में आर्ट ऑफ़ लिविंग संगठन कार्य कर रहा है उनमे एक क्षेत्र “ पर्यावरण स्थिरता “ भी है !!
      हालांकि गठित प्रिंसिपल कमेटी ने NGT को जमा की गयी रिपोर्ट में कहा है कि आर्ट ऑफ़ लिविंग संगठन से कार्यक्रम प्रारंभ होने से पूर्व 120 करोड़ रुपये का क्षतिपूर्ति हर्जाना वसूला जाय और सम्बंधित क्षेत्र में पूर्ववत भौगोलिक पुनर्स्थापना भी सुनिश्चित की जाय ..
        अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गयी खेत ! प्रदूषण नियंत्रण के लिए नियुक्त कलयुगी “ कृष्ण “.. दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण कमेटी और जिला आपदा प्रबन्धन प्राधिकरण ने यदि कार्यक्रम के लिए अनापत्ति प्रमाण पत्र देते हुए इतनी जल्दबाजी न दिखाई होती तो ये स्थिति न आती ..
प्रश्न उठता है कि यदि हर्जाना वसूल भी लिया जाय तो क्या हम स्थानीय पारिस्थितिक तंत्र को पुन: उसी रूप में स्थापित कर पायेंगे !! हम इसी लचर इच्छा शक्ति के बल पर दिल्ली में बहती यमुना को टेम्स की तरह खूबसूरत और स्वच्छ बना पायेंगे !! क्या हम इसी लचर इच्छा शक्ति के बल पर यमुना सफाई पर हजारों करोड़ रुपये व्यय करने के बाद भी हम मृत यमुना को टेम्स की तरह पुनर्जीवित कर इस प्राकृतिक धरोहर का गौरवशाली अतीत लौटा पायेंगे !!
विभिन्न यमुना एक्शन प्लान्स, जिनमें 2015 तक यमुना को पूर्णतया प्रदूषण मुक्त करने की कार्य योजना तय की गई थी के बाद यमुना की वर्तमान स्थिति देखकर सोचता हूँ ! जब टेम्स नदी की तरह यमुना की सडांध संसद तक पहुंचकर संसदीय कार्यवाही रोककर स्वयं को स्वच्छ करने को गरियाएगी ! शायद ही हमारे सफेदपोश राजनेताओं की नींद खुलेगी !!
         अंत में सोचता हूँ शायद !! प्रागैतिहासिक काल से निरंतर प्रेम - शांति - समृद्धि का सन्देश देती माँ यमुना को कलयुग में हमने अनियंत्रित " विकास " के कारण उस लायक अब नहीं रखा !! और अब माँ यमुना के स्थान पर हम स्वयं ही विश्व शांति और प्रेम का सन्देश देने इसके तट पर भव्य अतिक्रमण कर डेरा डाल कर पहुँच गए हैं ..

 

आयोजन की तैयारियों में जुटे अर्थ मूवर, जे सी वी,जेनरेटर

आयोजन हेतु समतल कर दिया गया खादर क्षेत्र 
आवाजाही के लिए निर्माणाधीन पन्टून पुल
आयोजन स्थल के पास से बहती मृतप्राय यमुना 
यमुना खादर 
कूड़े-कचरे और गंदे नालों के अपशिष्ट  ढोती यमुना 
DND फ्लाई ओवर पर लगाया गया बोर्ड

अथ श्री यमुना कथा ! या व्यथा !! .. एक विवेचना .: भाग - एक




अथ श्री यमुना कथा ! या व्यथा !! .. 

एक विवेचना .: भाग - एक

          आज DND (  दिल्ली – नोएडा ) फलाई ओवर के ऊपर से गुजर रहा था. मन हुआ यमुना नदी की पृष्ठभूमि में एक तस्वीर क्लिक की जाय ! बाइक रोकी .. पुल के नीचे जल राशि पर नजर डाली तो विश्वास नहीं हुआ कि ये यमुना नदी है ! सोचा ! शायद, बरसात में जमुना खादर के किसी कुंड में इकठ्ठा हुआ पानी है जो कई महीनों तक इकठ्ठा रहने के कारण काला कीचड़ बन गया है !! तभी पुल पर लगा एक सुन्दर सा बोर्ड दिखा जिस पर लिखा था .... 
                                   “ मेरी दिल्ली.. मेरी जमुना .. गन्दगी हटाओ .. जमुना बचाओ “
.....अब पूर्ण विश्वास हो गया कि ये यमुना नदी ही है !!
           यमुना नदी की बात चले और चिर-परिचित, श्री कृष्ण द्वारा कालिय नाग मर्दन प्रसंग का जिक्र न हो तो शायद बात अधूरी ही रह जायेगी !! प्रसंग से तो आप अच्छी तरह विज्ञ हैं लेकिन मैं इस प्रसंग की पूर्व क्षमा सहित वर्तमान सन्दर्भ में विवेचना अवश्य करना चाहूँगा .....
            रमण द्वीप निवासी पन्नग वंशी और कद्रू का पुत्र कालिय द्वापर युग में कोई बाहुबली भू माफिया ही रहा होगा, अतिक्रमण और प्रदूषण फ़ैलाने की प्रवृत्ति के कारण ही प्रचलित प्रसंग में उसे प्रतीक रूप में नाग के रूप में प्रस्तुत किया गया होगा. रमण पर्वत पर पर्यावरण विपरीत कार्यों के चलते जब वहां के राजा गरुड़, कालिय पर क्रोधित हुए तो कालिय नाग अपनी जान बचाने के लिए अपने गैंग के साथ यमुना के किनारे सुनसान खादर क्षेत्र में आकर रहने लगा. लेकिन उसने अपनी मूल प्रवृत्ति को यहाँ आकर भी नहीं त्यागा !!
            कालिय ने अपने गैंग के साथ मिलकर आस पास के लोगों में भय उत्पन्न कर यमुना खादर में अतिक्रमण करके और पर्यावरण विपरीत कृत्यों से जमुना खादर जल कुंडों में इतना अधिक रासायनिक प्रदूषण फैलाया की उन कुंडों का जल अति विषाक्त हो गया जो रासायनिक क्रियाओं के कारण गर्म होकर खौलता रहता था. इस कारण क्षेत्र की जैव विविधता नष्ट होने लगी और जल पीने वाले पक्षी और पशुधन मृत्यु को प्राप्त होने लगा ..
                  उस काल में पशु धन को सबसे अधिक महत्व दिया जाता था. कालिय के कुकृत्यों के कारण जब जन जीवन बहुत अधिक प्रभावित होने लगा तो श्री कृष्ण ने क्रोधित होकर इस बाहुबली भू माफिया कालिय का मर्दन करके स्थानीय लोगों को राहत दिलाई तथा यमुना क्षेत्र के पर्यावरण को प्रदूषण मुक्त किया ..
                आज के सन्दर्भ में सोचता हूँ कि आज कलयुग में कालिय की वंश वृद्धि बहुत बहुत तेजी से हुई है ! एकाधिक कालिय और उनके गैंग साथियों को पकड़ने के लिए एक नहीं बल्कि कई कृष्ण तैनात किये गए हैं !! और इस कार्य के लिए उनको अच्छा खासा वेतन भी दिया जाता है लेकिन लगता है कलयुगी कृष्णों ने कालिय से मिलीभगत कर गठबंधन बना लिया है !!

               जब खेत की बाड़ ही खेत को खाने लगे तो भला खेत को कौन बचा सकता है !! यमुना किंकर्तव्यविमूढ़ है !! हम कलियुगी पुत्र उसको समय-समय पर धमकाते रहते हैं !! साथ ही सुबह-सुबह ये मन्त्र उच्चारित कर स्वयं को नदियों के प्रति आस्थावान होने का भी खूब " प्रदर्शन " करते हैं .. लेकिन शायद !! ये मन्त्र हम नदियों के प्रति आस्था भाव से नहीं बल्कि उन पर धौंस जमाते हुए आज्ञा भाव में उच्चारित करते हैं !! 

                                       " गंगे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति ।
                                    नर्मदे सिंधु कावेरि जलेऽस्मिन् सन्निधिं कुरु.. "

                              लेकिन “ पुत्रो कुपुत्रो जायते माता कुमाता न भवति” 
              यमुना आज भी निश्छल भाव में हम छली पुत्रों की प्यास बुझा रही है ! शांत प्रवाहमय है !!
मन में प्रश्न उठा !! कि क्या कलयुग में फिर श्री कृष्ण के अवतरित होने तक यमुना यूँ ही विषाक्त होती रहेगी ? या यमुना को माँ का दर्जा देने वाले हम पुत्रों को माँ यमुना के निरंतर मैले कुचैले होते आंचल को साफ़ रखने में आत्मा की आवाज़ पर आगे बढ़कर योगदान देना होगा ?


DND (  दिल्ली – नोएडा ) फ्लाई ओवर से यमुना का दृश्य

यमुना जल !! 
जय हो यमुना मैया !!
हम सबने मिलकर क्या हाल कर दिया है यमुना का !!


ऋषिकेश के पास गंगा नदी का स्वच्छ जल.. 
जब यमुना उत्तराखंड क्षेत्र में बहती है तो बिलकुल ऐसा ही स्वच्छ जल यमुना नदी का भी दिखाई देता है .. क्या कभी मैदानी क्षेत्र में ये दोनों नदियाँ इतनी ही स्वच्छ दिख पाएंगी

नक्कार खाने में तूती !! "संग्रहालयों व स्मारकों में थूकना सख्त मना है।"




नक्कार खाने में तूती !!

"संग्रहालयों व स्मारकों में थूकना सख्त मना है।"

      विश्व धरोहरों के प्रति, प्रतिदिन आने वाले हजारों स्वदेशी पर्यटकों की संजीदगी व रुझान का अनुमान आर्कियोलोजिकल सर्वे ऑफ़ इण्डिया द्वारा हाल ही में लगायी गयी तथा हिंदी में लिखी .. " संग्रहालयों व स्मारकों में थूकना सख्त मना है " निषेधात्मक चेतावनी पट्टिकाएं, बखूबी बयाँ करती हैं !! साथ ही ये पट्टिकाएँ विदेशियों के सामने हमारे सार्वजनिक स्वच्छता संस्कारों की पोल खोलती भी दिखाई देती हैं !
केवल थूकना ही परेशानी का सबब नहीं !! इन धरोहरों पर " पढ़े-लिखे " पर्यटकों द्वारा भविष्य में यहाँ आने वाले पर्यटकों को स्वयं का स्मरण दिलाने के लिए धरोहरों पर बहुत कुछ " चिर स्थायी " अंकन भी कर दिया जाता है !!
        ये निषेधात्मक पट्टिका लाल किला, नक्कार खाने पर लगी है. शायद स्वच्छता की बात करना भारत में नक्कार खाने में तूती की सी आवाज है !! इसी कारण कुछ साल पहले धरोहरों के जिन भागों को हम करीब से देखकर अनुभूत कर सकते थे ! अब उनके बहुत करीब जाना निषिद्ध कर दिया गया है!!
सोचता हूँ विदेशियों के मुकाबले हम बहुत तेजी से " तरक्की " कर रहे हैं !!
       सार्वजनिक स्वच्छता, राज्य का दायित्व अवश्य है मगर बच्चों में बचपन से ही व्यक्तिगत व सार्वजनिक स्वच्छता अनुशासन संस्कार स्थापित करना माता-पिता, अभिभावकों व शिक्षकों का राष्ट्रीय कर्तव्य भी है। केवल भारत माता की जय के जयकारों से ही देश की चहुंमुखी प्रगति सुनिश्चित नहीं हो सकती बल्कि मनसा-वाचा-कर्मणा, सुचिता अपनाकर देश की सांस्कृतिक, सामाजिक व आर्थिक प्रगति सुनिश्चित हो सकती है।

बाल-बलिदानी व शौर्य गाथा दीर्घा : लाल किला









बाल-बलिदानी व शौर्य गाथा दीर्घा
लाल किला : दिल्ली

उम्र के उस दौर में हम
  खुश होते थे खिलौनों से खेल कर !
सीने पे खायी गोलियां और
     चूम लिया फंदा ! उन्होंने ___
   सरफरोशी की तमन्ना कह कर !!
.. ..विजय जयाड़ा
 
       लाल किला भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का मूक लेकिन चश्मदीद गवाह है. जब भी यहाँ पहुँचता हूँ हर बार कुछ नया मिल जाता है ! ब्रिटिश काल में भारत मां की आजादी हेतु कई ज्ञात-अज्ञात और हर उम्र के लोगों ने देशप्रेम की बलिवेदी पर अपना सब कुछ न्यौछावर किया. इनमें कई मासूम बच्चे भी थे ! लेकिन दुर्भाग्य ! उनकी कुर्बानियों से कवि, लेखकों, इतिहासकारों की कलम अछूती ही रही !! आज भी हम राष्ट्रीय पर्वों पर इन बाल बलिदानियों को यथोचित रूप में याद नहीं करते !
          ये बाल शूरवीर, डॉक्टर, इंजीनियर, कवि, लेखक, उद्योगपति या व्यापारी बनकर भी सुखमय जीवन जी सकते थे लेकिन इन मासूमों ने मातृभूमि के लिए बलिदान मांगने वाला पथ चुना !
           पिछले दिनों भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने लाल किले के स्वतंत्रता संग्राम संग्रहालय में शहीद स्मृति चेतना समिति द्वारा गहन शोध उपरांत उपलब्ध कराये गए, 7-8 से लेकर 20 वर्ष तक के बाल बलिदानियों की गाथाओं और 101 दुर्लभ मूल चित्रों के आधार पर हस्तनिर्मित चित्रों से सज्जित गैलरी का लोकार्पण कर इन गुमनाम बाल बलिदानियों को उचित सम्मान और पहचान देने की स्वागत योग्य पहल की है.
           ऐसे 440 से अधिक बाल-बलिदानी जिनके चित्र उपलब्ध नहीं हो सके उनका राज्यवार परिचय दीर्घा के अंत में प्रदर्शित किया गया है. सभी हस्तनिर्मित चित्रों के चित्रकार श्री गुरुदर्शन सिंह ‘ बिंकल ‘ हैं. इस गैलरी में बाल बलिदानियों की तस्वीरें और शौर्य गाथाएं तो रोमांचित करती ही हैं साथ ही चित्रकार ‘बिंकल‘ साहब द्वारा स्वयं के रक्त से बनाये गए 28 बाल बलिदानियों के हस्त निर्मित चित्र कौतुहल और चित्रकार की देशप्रेम से ओतप्रोत भावना से परिचय भी करवाते हैं..
              चित्रकार 'बिंकल' साहब स्वयं की भावना व्यक्त करते हुए लिखते हैं कि राष्ट्र की बलिवेदी पर अपना सर्वस्व न्यौछावर करने वाले ये बाल बलिदानी मेरे लिए देव तुल्य हैं. अत; ऐसे देव तुल्य बाल-बलिदानियों के चित्रों का अपने रक्त से श्रृंगार कर मैं स्वयं को धन्य समझता हूँ....
             सोचता हूँ कि जिला स्तर भी पर इस तरह की गैलरियां बनायीं जानी चाहिए और इन गैलरियों में छात्रों को शैक्षिक भ्रमण के अंतर्गत लाया जाना चाहिए, साथ ही बाल बलिदानियों को स्कूली पाठ्यक्रम में भी स्थान दिया जाना चाहिए। जिससे जापान और ऑस्ट्रेलिया की तरह भारत में भी बाल्यकाल से ही बच्चों में बचपन से ही देश प्रेम के संस्कार विकसित हो सकें..
             गैलरी में छायांकन निषिद्ध है लेकिन देशप्रेम की शौर्य गाथाओं व तस्वीरों से ओतप्रोत इस गैलरी से अधिक से अधिक लोग परिचित हो सकें. इस मन: स्थिति में बिना फ्लैश के छायांकन करने से स्वयं को न रोक सका.. इस दृष्टता हेतु सम्बंधित अधिकारियों से क्षमा प्रार्थी हूँ..
           जब भी लाल किला आइयेगा तो लाल किले में प्रवेश उपरांत छत्ता बाजार पार करते ही नौबत खाने से पहले ही बाएं मुड़कर एक बैरक को छोड़ अगली बैरक में पर्यटकों के आकर्षण से वंचित, स्वतंत्रता संग्राम संग्रहालय में बाल-बलिदानी गैलरी में इन बाल-बलिदानियों के जज्बे और देशप्रेम को अवश्य अनुभूत कीजियेगा..


कृतज्ञता ....



कृतज्ञता ....

  देहरादून से प्रकाशित साप्ताहिक पत्र , न्यू एनर्जी स्टेट, परिवार का कृतज्ञ हूँ । साथ ही मेरे आलेख " अथ श्री यमुना कथा ! या व्यथा !! " भाग - एक के बाद भाग दो को भी ज्यों का त्यों अपने संपादकीय कॅालम में स्थान देने योग्य मूल्यांकित करने हेतु संपादक श्री गणेश प्रसाद जुयाल जी का विशेष आभारी हूँ।

Friday, 4 March 2016

धन्यवाद ज्ञापन



धन्यवाद ज्ञापन

        परसों, 2 मार्च को यमुना प्रदूषण पर भाग-एक के अंतर्गत, “अथ श्री यमुना कथा ! या व्यथा !!” शीर्षक के अंतर्गत पोस्ट किया था, जिसे देहरादून से प्रकाशित साप्ताहिक पत्र, New Energy State के संपादक श्री गणेश प्रसाद जुयाल जी ने ज्यों का त्यों अपने पत्र में संपादकीय कॉलम के अंतर्गत प्रकशित करने योग्य समझा, साथ ही अपनी सम्पादकीय कलम से मेरे प्रति जो उदगार व्यक्त किये उससे अभिभूत हूँ. ज्ञातव्य है कि संपादक श्री जुयाल जी 1992-93 में मेरे छात्र रह चुके हैं, और लगन, ईमानदारी व परिश्रम से पत्रकारिता में संलग्न हैं. लम्बे समय के बाद फेसबुक पर ही उनसे मुलाकात हुई थी. आलेख प्रकाशन हेतु New Energy State परिवार व श्री जुयाल जी का हार्दिक धन्यवाद करते हुए यह भी कहना चाहूँगा, साथ  ही पाठक गानों का भी हार्दिक धन्यवाद