मन की बात ... " साइंस क्विज "
जब कभी सफलता या सम्मान मिलता है तो उस सफलता के पीछे प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े लोग सहसा ही याद आ जाते हैं दूसरे क्षेत्रों में जो कोई भी सफलता मुझे मिली उसका जिक्र उचित समय पर करूँगा फिलहाल आज समाप्त हुए क्षेत्रीय विज्ञान मेले में अध्यापकों की "साइंस क्विज प्रतियोगिता" में हमारी टीम (मैं स्वयं, कु. आरती,कु. प्रिया राणा, श्रीमती राज लक्ष्मी) को प्राप्त दूसरे स्थान के उपलक्ष्य में क्विज में सफलता की बात साझा करने का मन है.खेल की पृष्ठभूमि होने से मैदान में दर्शकों का सामना करने मैं मुझे संकोच नहीं होता लेकिन अन्य प्रतियोगिताओं में व मंच से दर्शकों का सामना करने में बहुत संकोच होता था !!
करीब 10 वर्ष पहले विज्ञान मेले में हमारे विद्यालय की टीम में एक सदस्य की कमी थी मेरी प्रधानाचार्या श्रीमती कमलेश कुमारी जी ने मुझ पर विश्वास कर टीम में शामिल होने को कहा.. लेकिन मेरा संकोच आड़े आ रहा था। मना करना चाहता था लेकिन प्रधानाचार्या जी के विश्वास के चलते या कहिये बड़ों की अवज्ञा न करने के शिष्टाचार के चलते उनकी बात न टाल सका और संकोची मन से प्रतियोगिता में टीम के अन्य साथियों के साथ सम्मिलित हो गया. हमारी टीम अंतिम दौर में पहुँच गयी स्थान सुनिश्चित हो गया लेकिन प्रथम स्थान के लिए दो टीमों के समान अंक होने के कारण अनिर्णय की स्थिति में अंतिम प्रश्न दोनों टीमों के सामने प्रस्तुत किया गया.दूसरी टीम जवाब न दे सकी. मेरी टीम की दूसरी तीन महिला साथियों के पास भी नहीं था. उन्होंने आशान्वित निगाहों से मेरी तरफ देखा !! अब तक मैं झिझक के कारण सिकुड़ रहा था लेकिन छूटते ही मैंने उत्तर दे दिया .. इसी के बाद मेरा आत्मविश्वास चरम पर पहुँच गया ... प्रश्न था .." वोद्का शराब किस से बनायीं जाती है " ... मेरा सही उत्तर सुनकर सारे दर्शक और प्रतिभागी जोर से हंस पड़े ( हंसने का कारण आप समझ ही रहे होंगे !! ) और हम विजेता बन गए !!
तब से आज तक, क्विज में नौ ( 5 प्रथम, 4 द्वितीय ) पुरस्कार प्राप्त कर चुका हूँ .. जब भी क्विज प्रतियोगिता में स्थान प्राप्त होता है तो उस पुरस्कार को मन से अपनी प्रधानाचार्या श्रीमती कमलेश कुमारी जी को समर्पित करना और साथियों से क्विज में प्रथम प्रविष्टि में उनके योगदान का जिक्र करना कभी नहीं भूलता.
ये कोई बहुत बड़ी सफलता नही लेकिन यहाँ इन बातों को साझा कर मैं ये कहना चाहता हूँ कि हमें सफलता तक पहुंचने के अवसर कई रूपों में व माध्यमों से मिलते हैं, यदि कोई शुभेच्छु हमें उसका लाभ लेने को प्रेरित या बाध्य करता है तो सम्मान वशात् कहिये या बड़ों की अवज्ञा न करने का शिष्टाचार.. स्वयं के अहम् व संकोच पर विजय प्राप्त कर उत्साह से आगे बढ़ना ही श्रेयस्कर है. हर व्यक्तित्व में अपार सम्भावनाएं निहित होती हैं, प्रेरितकर्ता व शुभेच्छु साथियों का आशीर्वाद, ये तय है कि सदैव हमारी सफलता सुनिश्चित करेगा ..ये मेरा स्वयं का साक्षात् जीवन अनुभव है।
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