विद्यालय, संस्कार मंदिर : एक विचार
घर पहुँचने से पहले,
नेक काम कर लिया जाए,
करने तो हैं काम बहुत...
चलो पहले प्यासे पौधों को
पानी पिला लिया जाए ..
......विजय जयाड़ा
नेक काम कर लिया जाए,
करने तो हैं काम बहुत...
चलो पहले प्यासे पौधों को
पानी पिला लिया जाए ..
......विजय जयाड़ा
“ बच्चों !! आज छुट्टी का वक़्त हो चला है, अब आप घर जायेंगे, इसलिए बचा हुआ पानी इन पौधों को दे दीजिये. आजकल गर्मियां बहुत हैं इस पानी से ये पौधे, कल तक ताजगी और ठंडक महसूस करते रहेंगे.”
बचपन से ही बच्चों में पेड़-पौधों और जंतुओं के प्रति प्रेम और सहिष्णुता का भाव जगाना आवश्यक है. इस कार्य में बिद्यालय का वातावरण महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है. विद्यालय केवल किताबी ज्ञान प्रदान करने का या एकत्र सूचनाओं को सम्प्रेषण करने का संस्थान नही बल्कि अच्छे संस्कारों को प्रदान करने व संस्कारों को संवर्धित करने का मंदिर भी है जहाँ अलग-अलग पृष्ठभूमि के बच्चे एक ही स्थान पर प्रतिदिन अपने जीवन का महत्वपूर्ण समय गुजारते हैं. विभिन क्रिया-कलापों के माध्यम से बातों-बातों में, बच्चों में अच्छे संस्कारों का हस्तांतरण व पुष्टिकरण किया जा सकता है ...इस कार्य के लिए किसी विशेष कक्षा या पीरियड की आवश्यकता भी नही ..
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