दूसरों पर जय से पहले खुद को जय करें..
हमारा मन आस-पास के वातावरण के प्रति बहुत ही संवेदनशील होता है बेशक हम त्वरित प्रतिक्रिया करने में संयम दिखाएँ लेकिन घटनाएँ मन-मस्तिष्क पर,स्थायी या अस्थायी कुछ न कुछ प्रभाव अवश्य छोड़ जाती हैं.
मनुष्य के मन पर नकारात्मक विचारों का प्रभाव बहुत जल्दी पड़ता है क्योंकि यह मानव सुलभ जन्मजात गुण है. जिसे हम सद्संगति व शिक्षा आदि से उभरने से रोकते हैं. इस प्रक्रिया में, समय-समय पर “ मै “ को एक तरफ रखकर,सास्वत मूल्यों पर आधारित,स्वस्थ आत्मचिंतन परम आवश्यक है, साथियों, सकारात्मक पृष्ठभूमि में अगर देखा जाय तो “मैं “ या “ स्व” का होना बहुत अनिवार्य है लेकिन जब हम आत्म निरीक्षण करें तब इस “स्व” को भी दूर रखना अति आवश्यक है.. तभी हम स्वयं का सही-सही मूल्यांकन कर पाने में सक्षम हो सकते हैं और स्वयं में एक आदर्श व्यक्तित्व के दर्शन कर सकते हैं.
हमारे मन का सचेतन भाग जो मन का लगभग दसवां भाग है और आस-पास के वातावरण के प्रति हमारी प्रतिक्रिया के लिए जिम्मेदार है, इस भाग को आस-पास घट रही नकारात्मक घटनाओं से हम अलहदा नही रख सकते. यदि हम नकारात्मक प्रतिक्रिया करने से स्वयं को रोकते भी हैं तो वह अर्ध चेतन मन में कहीं न कही घर कर जाती हैं. अत: जिस प्रकार हम समय-समय पर घर की सफाई करते रहते हैं इस प्रकार , आत्मचिंतन द्वारा मन की सफाई भी अनिवार्य है, जिससे उसमे सकारात्मक विचारों के लिए स्थान हर समय रिक्त रहे . इस प्रकार हम स्वयं से अधिक प्रेम कर पाएंगे ..
यदि इस प्रकार हम आत्मशोधन कर पाने में सक्षम हो पाते हैं तो अद्भुत आत्मविश्वास का उदय होता है और हमारे विचारों और व्यव्हार में सकारात्मक विचार सम्प्रेषण क्षमता व प्रभावोद्पादकता दृष्टिगोचर होती है.. कवि ने सच ही कहा है .....
“हमको मन की शक्ति देना मन विजय करें, दूसरों के जय से पहले खुद को जय करें.”