स्वामी विवेकानंद के अनुसार.........
" एक शिक्षक विद्यार्थी का सही मार्गदर्शक तब तक रह सकता है, जब तक वह पढ़ना जारी रखता है "
स्वामी शंकराचार्य समुद्र किनारे बैठकर अपने शिष्य से वार्तालाप कर रहे थे कि एक शिष्य ने चाटुकारिता भरे शब्दों में कहा 'गुरुवर! आपने इतना अधिक ज्ञान कैसे अर्जित किया, यही सोचकर मुझे आश्चर्य होता है। शायद और किसी के पास इतना अधिक ज्ञान का भंडार न होगा।
शंकराचार्य बोले - मेरे पास ज्ञान का भंडार है, यह तुम्हें किसने बताया मुझे तो ज्ञान में और वृद्धि करना है। फिर उन्होंने अपने हाथ की लकड़ी पानी में डुबोई और उसे इस शिष्य को दिखाते हुए बोले 'अभी-अभी मैंने इस अथाह सागर में यह लकड़ी डुबोई, किंतु उसने केवल कुछ बूँदें ग्रहण की।
बस यही बात ज्ञान के बारे में है, ज्ञान सागर कभी भरता नहीं, उसे कुछ-कुछ ग्रहण करना ही होता है। मुझसे भी बढ़कर विद्वान हैं, मुझे अभी भी बहुत कुछ ग्रहण करना है।
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