तुम साक्षात गीता लग रही हो.....
आज़ादी की लड़ाई के दौरान किसी आदमी ने साबरमती आश्रम में जाकर गांधी जी को पांच चरखे भेंट किये . गांधी जी ने कहा इन पर सूत कातने वाले 5 आदमी भी भेंट करो मुझे . अगले दिन प्रातः गांधी जी ने अपनी बैठक में पाँचों चरखे रख दिये ,उन में से एक चरखा लेकर वह सूत कातने लगे लेकिन बाकी 4 चरखे खाली पड़े रहे कोई नहीं आया.दूसरे दिन एक आदमी और प्रकट हुआ, वह भी गांधी जी के साथ सूत कातने लगा, बाकी 3 चरखे फिर खाली रहे ! तीसरे दिन एक आदमी और प्रकट हुआ वह भी सूत कातने में शामिल हो गया, 2 चरखे फिर खाली !!
अब चौथे दिन वह चरखे भेंट करने वाला सज्जन गांधी जी के पास आया ,उसने गांधी जी से कहा मैं 11 चरखे और भेंट करनेवाला हूँ आपको - गांधी जी ने कहा क्या फायदा इन 5 चरखों का समुचित उपयोग हो जाय वही काफी रहेगा . उस सज्जन ने कहा- बापू आप चिंता न करें आप कल से चरखे के साथ गीता का पाठ करना शुरू करो .
ऐसा ही हुआ और देखते देखते चरखा कातने वालों की संख्या बढ़ने लगी . गांधी जी ने अपने हाथ से काते गये सूत की पहली साड़ी कस्तूरबा को भेंट की .
जब "बा" उस साड़ी को पहनकर गांधी जी के सामने आई तो गांधी जी ने कहा - तुम इस साड़ी में साक्षात गीता लग रही हो, मैं तुमको प्रणाम करता हूँ.
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