छोटी मगर दिल खुश करती बातें.....
कल कक्षा में फसलों के त्योहार प्रकरण के अंतर्गत “मकर संक्रांति” पर विस्तार से चर्चा की जिसमें बताया कि उत्तर भारत में प्राय: “खिचड़ी” नाम से प्रसिद्ध तथा विभिन्न प्रदेशों में अलग-अलग नाम से जाने जाने वाले इस त्योहार को किस प्रकार मनाया जाता है
पाठ के अंत में बंगाली खिचड़ी बनाने की विधि लिखी गयी है, तो मैंने चलते-चलते बच्चों से अपने-अपने घर में माँ से बंगाली खिचड़ी बनवाने को भी कह दिया ..
आश्चर्य हुआ !! आज ज्योति मेरे लिए हॉट केस में “बंगाली खिचड़ी” बनाकर ले आई !! पूछने पर पता लगा कि बनाने की विधि में लिखी गयी सामग्री वह स्वयं ही दुकान से लायी थी.
बेशक ! पांचवीं कक्षा की छात्रा, ज्योति, अभी कक्षा के मेधावी बच्चों में शामिल नही ! लेकिन पूरी कक्षा में ज्योति ने ही पढाये गए पाठ को घर पर व्यावहारिक रूप में परिणत करने में रूचि ली. इससे ज्योति द्वारा कक्षा में प्रकरण पर उचित ध्यान देना तो परिलक्षित हुआ ही साथ ही अध्ययन में उसकी बढती रूचि अनुभव कर संतोष मिश्रित प्रसन्नता भी हुई.
सोचता हूँ प्रकरण में बच्चों द्वारा किसी भी रूप में सहभागिता, सीखने की प्रक्रिया को आसान करती है. शिक्षा का व्यावहारिक स्वरुप ही प्रकरण के माध्यम से वांछित स्थायी प्रभाव डालने के साथ-साथ लक्षित उद्देश्य को आसानी से प्राप्त करने में कारगर हो सकता है.
संभव है ! आप सोचें ! इसमें कौन सी बड़ी बात है !! लेकिन मन प्रसन्न हुआ इसलिए सोचा आपके साथ भी साझा करूँ..
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