बाल कवि का बालपन ........
बाल कवि बैरागी जी की पहली कविता.....उन्हीं की जुबानी ...
यह घटना उस समय की है जब मैं कक्षा चौथी का विद्यार्थी था। उम्र मेरी नौ वर्ष थी।
मेरे कक्षा अध्यापक श्री भैरवलाल चतुर्वेदी थे। उनका स्वभाव तीखा और मनोबल मजबूत था। रंग साँवला, वेश धोती-कुर्ता और स्कूल आते तो ललाट पर कुमकुम का टीका लगा होता था। हल्की नुकीली मूँछें और सफाचट दाढ़ी उनका विशेष श्रृंगार था।
एक बार भाषण प्रतियोगिता का विषय आया 'व्यायाम'। चौथी कक्षा की तरफ से चतुर्वेदी जी ने मुझे प्रतियोगी बना दिया।
मैं, पिताजी के साथ उनके चिकारे (छोटी सारंगी) पर गाता रहता था। मुझे 'व्यायाम' की तुक 'नंदराम' से जुड़ती नजर आई। मैं गुनगुनाया 'भाई सभी करो व्यायाम'। इसी तरह की कुछ पंक्तियाँ बनाई और अंत में अपने नाम की छाप वाली पंक्ति जोड़ी - 'कसरत ऐसा अनुपम गुण है/कहता है नंदराम/ भाई करो सभी व्यायाम'। इन पंक्तियों को गा-गाकर याद कर लिया.
अब प्रतियोगिता का दिन आया। बाद मेरा नाम आया। मैंने अच्छे सुर में अपनी छंदबद्ध कविता 'भाई सभी करो व्यायाम' सुनाना शुरू कर दिया। हर पंक्ति पर सभागार हर्षित होकर तालियाँ बजाता रहा और मैं अपनी ही धुन में गाता रहा।चतुर्वेदी जी ने मुझे उठाकर हवा में उछाला और कंधों तक उठा लिया।
जब प्रतियोगिता पूरी हुई तो निर्णायकों ने अपना निर्णय अध्यक्ष महोदय को सौंप दिया। कक्षा छठी जीत गई थी। इधर चतुर्वेदी जी साक्षात परशुराम बनकर निर्णायकों के सामने अड़ गए। वे भयंकर क्रोध में थे और उनका एक मत था कि उनकी कक्षा ही विजेता है।
कुछ शांति होने पर बताया गया कि यह भाषण प्रतियोगिता थी, जबकि चौथी कक्षा के प्रतियोगी नंदराम ने कविता पढ़ी है, भाषण नहीं दिया है। कुछ तनाव कम हुआ। इधर अध्यक्ष जी खड़े हुए और घोषणा की - 'कक्षा चौथी को विशेष प्रतिभा पुरस्कार मैं स्कूल की तरफ से देता हूँ।' सभागार फिर तालियों से गूँज उठा। चतुर्वेदी जी पुलकित थे और रामनाथ जी आँखें पोंछ रहे थे। मेरे लिए यह पहला मौका था जब मुझे माँ सरस्वती का आशीर्वाद मिला और फिर कविता के कारण ही आपका अपना यह नंदराम बालकवि हो गया।
हर बच्चे में कोई न कोई प्रतिभा अवश्य होती है आवश्यकता है उस प्रतिभा को तलाशने की और निखारने की..इस कार्य में अभिभावक और अध्यापक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं..
गुरु द्वारा ह्रदय से दिया गया आशीर्वाद फलित अवश्य होता है..इस बात में कोई दो राय नही ...
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