कर्त्तव्य परायणता : लौह पुरुष...
सरदार पटेल वास्तव में अपने कर्तव्य के प्रति ईमानदार थे। उनके इस गुण का दर्शन हमें सन् 1909 की इस घटना से लगता है। वे कोर्ट में केस लड़ रहे थे, उस समय उन्हें अपनी पत्नी की मृत्यु का तार मिला। पढ़कर उन्होंने इस प्रकार पत्र को अपनी जेब में रख लिया जैसे कुछ हुआ ही नहीं। दो घंटे तक बहस कर उन्होंने वह केस जीत लिया।
बहस पूर्ण हो जाने के बाद न्यायाधीश व अन्य लोगों को जब यह खबर मिली कि सरदार पटेल की पत्नी का निधन हुआ है। तब उन्होंने सरदार से इस बारे में पूछा तो सरदार ने कहा कि उस समय मैं अपना फर्ज निभा रहा था जिसका शुल्क मेरे मुवक्किल ने न्याय के लिए मुझे दिया था। मैं उसके साथ अन्याय कैसे कर सकता था। ऐसी थी उनकी कर्तव्यपरायणता और शेर जैसा कलेजा।
आज हम बहुत बड़ी- बड़ी बाते तो कर लेते हैं दूसरो पर खूब शब्द प्रहार भी कर लेते हैं लेकिन इस तरह की कर्त्तव्य परायणता विरले लोगों में ही देखने को मिलती है. अत: पहले स्वयं का आत्मावलोकन कर दूसरों में कमियों को देखें तो अधिक उचित होगा हालाँकि दूसरों की कमियों से स्वयं सकारात्मक प्रेरणा लेने की ही परम आवश्यकता है.
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