शास्त्रों में भी माता, पिता गुरु देवता के क्रम में माता को सर्वोच्च स्थान दिया गया है. व्यव्हार में भी माता सर्वत्र आदरणीय व पूजनीय है..मेरे विचार से भी माँ त्याग और ममता की अद्भुत प्रतिमूर्ति है हालाँकि बदलते परिवेश में माँ ने और अधिक जिम्मेदारियां संभाल ली हैं ...
लेकिन बदलते भौतिक परीवेश में भी पिता का स्वरुप आज भी कम विराट नही ..वह एक वट वृक्ष के समान है जो सर्दी-गर्मी , आंधी- तूफ़ान जैसी विपरीत परिस्थितियों में भी अडिग खड़ा रहकर छाँव की व्यवस्था करता ही दिखाई पड़ता है .लेकिन पिता के मुंह से उफ्फ तक नही निकलता , परिवार में और लोग भी चिंता ग्रस्त न हो जाएँ इसलिए किसी को अपनी परेशानी बताना ही उचित समझता है..चुपचाप अपने धर्म का निर्वाह करता रहता है ...
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