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Saturday 14 May 2016

सादगी की मिशाल : शास्त्री जी




सादगी की मिशाल : शास्त्री जी

शास्त्री जी खुद कष्ट उठाकर दूसरों को सुखी देखने में आनंद प्राप्त होता था ..
एक बार की घटना है उस समय शास्त्री जी रेल मंत्री थे और रेल से मुंबई जा रहे थे.उनके लिए प्रथम श्रेणी का डिब्बा लगा था..
गाड़ी चलने लगी तो शास्त्री जी बोले, " बाहर तो बहुत गर्मी है लेकिन इस डिब्बे में ठंडक है!!! "
उनके पी.ए. कैलाश बाबू बोले, " जी, इसमें कूलर लग गया है, इसलिए ठंडक है"
शास्त्री जी ने उनको पैनी निगाहों से देखा और बोले," कूलर लग गया है ?? बिना मुझे बताये ?? आप लोग कुछ काम करने से पहले मुझे कुछ पूछते क्यों नही ?? क्या और सारे लोग जो गाड़ी में चल रहे हैं. क्या उनको गर्मी नहीं लगती होगी ??"
शास्त्री जी ने कहा , " कायदा तो ये है की मुझे भी थर्ड क्लास डिब्बे में चलना चाहिए, लेकिन उतना तो नही हो सकता लेकिन जितना हो सकता है उतना तो करना ही चाहिए ??
उन्होंने कहा," आगे जहाँ गाड़ी रुके, सबसे पहले ये कूलर निकलवाइए"
मथुरा स्टेशन पर गाड़ी रुकी, वहीँ कूलर उतारने के बाद ही गाड़ी आगे बढ़ी,
आज भी फर्स्ट क्लास के डिब्बे में जहाँ वह कूलर लगा था, लकड़ी जड़ी हुई है'
काश , आज भी ऐसी नैतिकता के उदाहरण पेश किये जाते !!! तो व्यवस्था स्वमेव ही परिवर्तित हो जाती, क्योंकि भ्रष्टाचार की गंगा ऊपर से ही नीचे की तरफ बहती है
 
 

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