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Friday 29 April 2016

नमस्ते



नमस्ते

             नमस्ते या नमस्कार मुख्यतः हिन्दुओं और भारतीयों द्वारा एक दूसरे से मिलने पर अभिवादन और विनम्रता प्रदर्शित करने हेतु प्रयुक्त शब्द है। इस भाव का अर्थ है की सभी मनुष्यों के हृदय में एक दैवीय चेतना और प्रकाश है जो अनाहत चक्र (हृदय चक्र) में स्थित है। यह शब्द संस्कृत के नमस शब्द से निकला है।
           इस भावमुद्रा का अर्थ है एक आत्मा का दूसरी आत्मा से आभार प्रकट करना।  नमस्ते के अतिरिक्त नमस्कार और प्रणाम शब्द का प्रयोग करते हैं।
           संस्कृत व्याकरण की दृष्टि से इसकी उत्पत्ति इस प्रकार है- नमस्ते= नमः+ते । अर्थात् तुम्हारे लिए प्रणाम। संस्कृत नमस्ते का शाब्दिक अर्थ है- तुम्हारे लिए प्रणाम। इसे "तुमको प्रणाम" या "तुम्हें प्रणाम" भी कहा जा सकता है। परन्तु इसका संस्कृत रूप हमेशा "तुम्हारे लिए नमः" ही रहता है,
            नमस्ते करने के लिए, दोनो हाथों को अनाहत चक  (हाथ ह्रदय के पास) पर रखा जाता है, आँखें बंद की जाती हैं, और सिर को झुकाया जाता है। इसके अलावा हाथों को स्वाधिष्ठान चक्र (भोहों के बीच का चक्र) पर रखकर सिर झुकाकर और हाथों को हृदय के पास लाकर भी नमस्ते किया जा सकता है। दूसरी विधि गहरे आदर का सूचक है।
 नमस्ते का भावार्थ....
                 नमस्कार का अर्थ है की सभी मनुष्यों के हृदय में एक दैवीय चेतना और प्रकाश है जो अनाहत चक्र (हृदय चक्र) में स्थित है। यह शब्द संस्कृत के नमस शब्द से निकला है। इस भावमुद्रा का अर्थ है एक आत्मा का दूसरी आत्मा से आभार प्रकट करना। नमस्ते के अतिरिक्त नमस्कार और प्रणाम शब्द का प्रयोग करते हैं।।
              हाथों को हृदय चक्र पर लाकर दैवीय प्रेम का बहाव होता है। सिर को झुकाने औरआँखें बंद करने का अर्थ है अपने आप को हृदय में विराजमान प्रभु को अपने आप को सौंप देना। गहरे ध्यान में डूबने के लिए भी स्वयं को नमस्ते किया जा सकता है; जब यह किसी और के साथ किया जाए तो यह एक सुंदर और तीव्र ध्यान होता है।

          एक शिक्षक और विद्यार्थी जब एक दूसरे को नमस्ते कहते हैं तो दो व्यक्ति ऊर्जात्मक रूप से वे समय और स्थान से रहित एक जुड़ाव बिन्दु पर एक दूसरे के निकट आते हैं और अहं की भावना से मुक्त होते हैं। यदि यह हृदय की गहरी भावना से मन को समर्पित करके किया जाए तो दो आत्माओं के मध्य एक आत्मीय संबंध बनता है। आदर्श रूप से, नमस्ते कक्षा के आरंभ और समाप्ति पर किया जाना चाहिए। आमतौर पर यह कक्षा की समाप्ति पर किया जाता है क्योंकि तब मन कम सक्रिय होता है और कमरे की ऊर्जा अधिक शांत होती है। शिक्षक नमस्ते कहकर अपने छात्रों और अपने शिक्षकों का अभिवादन करता है और अपने छात्रों का स्वागत करता है कि वे भी उतने ही ज्ञानवान बनें और सत्य का प्रवाह हो।
सौजन्य : विकिपीडिया


 

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