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Saturday, 2 April 2016

गाँधी दर्शन : मनसा - वाचा - कर्मणा, श्रम के प्रति निष्ठा



गाँधी दर्शन : मनसा - वाचा - कर्मणा, श्रम के प्रति निष्ठा

          सामान्यत हमारे मन में 'यह मेरा काम नहीं है, उसका काम है' जैसी धारणा बनी रहती है, जबकि बापू यह मानते थे कि अपनी सेवा किये बिना कोई दूसरों की सेवा नहीं कर सकता है। दूसरों की सेवा किये बिना जो अपनी ही सेवा करने के इरादे से कोई काम शुरू करता है, वह अपनी और संसार की हानि करता है. वे खुद कैसे दूसरों के लिए प्रेरणा बन जाते थे, इस सम्बन्ध में गांधी जी से जुड़े कई स्वाभाविक रोचक व प्रेरणास्पद प्रसंग हैं, यहाँ एक प्रसंग प्रस्तुत है ...
         मगनवाड़ी आश्रम में सभी को अपने हिस्से का आटा पीसना पड़ता था। एक बार आटा समाप्त हो गया। आश्रमवासी रसोईया सोचने लगा कि अब क्या किया जाय? यदि वह चाहता तो स्वयं भी पीसकर उस दिन का काम चला सकता था, लेकिन चिढ़कर उसने ऐसा नहीं किया। वह सीधे गांधी जी के पास गया और बोला ‘आज रसोईघर में रोटी बनाने के न आटा है न कोई पीसने वाला है। अब आप ही बताएं, क्या करूं? गांधी जी ने शांत भाव से कहा- ‘इसमें चिन्ता की कोई बात नहीं है। चलो, मैं चलकर पीस देता हूँ।’ बापू अपना काम छोड़कर गेंहूँ पीसने बैठ गए। जब रसोईया ने गांधी जी को चक्की चलाते देखा तो उसे बड़ी आत्मग्लानि हुई। उसने गांधी जी से कहा कि ‘बापू आप जाइये, मैं खुद ही पीस लूंगा।’ इसका गहरा प्रभाव केवल रसोईया पर ही नहीं बल्कि सभी व्यक्तियों पर पड़ा.


आइये, स्वच्छता अभियान में, मनसा - वाचा - कर्मणा सहयोग करें....
 
चल पड़े जिधर दो डग मग में,
चल पड़े कोटि पग उसी ओर,
पड़ गई जिधर भी एक दॄष्टि,
मुड़ गये कोटि दॄग उसी ओर ..


 

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