'ऐ मेरे वतन के लोगों..... '
आज 'ऐ मेरे वतन के लोगों' गीत को स्वर साम्राज्ञी लता मंगेशकर जी ने कवि प्रदीप के लिखे इस गाने को 27 जनवरी
1963 को भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू जी के सामने गाया था.
इस अद्भुत भावनात्मक गीत, जिसको सुनकर नेहरु जी की आँखों से आंसू छलक आये थे, के जन्म से जुडी रोचक कहानी स्वयं गीतकार प्रदीप जी की जुबानी सुनिए ..
1962 के भारत-चीन युद्ध में भारत की बुरी हार हुई थी.
सरकार की तरफ़ से फ़िल्म जगत को कहा जाने लगा कि भई अब आप लोग ही कुछ करिए. कुछ ऐसी रचना करिए कि पूरे देश में एक बार फिर से जोश आ जाए और चीन से मिली हार के ग़म पर मरहम लगाया जा सके.
मुझे पता था कि ये काम फ़ोकट का है. इसमें पैसा तो मिलना नहीं. तो मैं बचता रहा. लेकिन आख़िर कब तक बचता. मैं लोगों की निगाह में आ गया. चूंकि मैंने पहले भी देशभक्ति के गाने लिखे थे इसलिए मुझसे कहा गया कि ऐसा ही एक गीत लिखा जाए.
उस दौर में तीन महान आवाज़ें हुआ करती थीं. मोहम्मद रफ़ी, मुकेश और लता मंगेशकर.
उसी दौरान नौशाद भाई ने तो मोहम्मद रफ़ी से 'अपनी आज़ादी को हम हरगिज़ मिटा सकते नहीं', गीत गवा लिया, जो बाद में फ़िल्म 'लीडर' में इस्तेमाल हुआ.
राज साहब ने मुकेश से 'जिस देश में गंगा बहती है' गीत गवा लिया. तो इस तरह से रफ़ी और मुकेश तो पहले ही रिज़र्व हो गए.
अब बचीं लता बाई. उनकी मखमली आवाज़ में कोई जोशीला गाना फ़िट नहीं बैठता. ये बात मैं जानता था.
तो मैंने एक भावनात्मक गाना लिखने की सोची. इस तरह से 'ऐ मेरे वतन के लोगों' का जन्म हुआ.
जिस समय प्रदीप जी ने यह गीत लिखा उस समय वे समुद्र के किनारे टहल रहे थे । उनके पास कागज न होने के कारण उन्होंने यह गीत सिगरेट के चमकीले कागज की पिछली तरफ लिखा था । जिसे लता ने पंडित जी के सामने गाया और उनकी आंखों से भी आंसू छलक आए.
इस अद्भुत भावनात्मक गीत, जिसको सुनकर नेहरु जी की आँखों से आंसू छलक आये थे, के जन्म से जुडी रोचक कहानी स्वयं गीतकार प्रदीप जी की जुबानी सुनिए ..
1962 के भारत-चीन युद्ध में भारत की बुरी हार हुई थी.
सरकार की तरफ़ से फ़िल्म जगत को कहा जाने लगा कि भई अब आप लोग ही कुछ करिए. कुछ ऐसी रचना करिए कि पूरे देश में एक बार फिर से जोश आ जाए और चीन से मिली हार के ग़म पर मरहम लगाया जा सके.
मुझे पता था कि ये काम फ़ोकट का है. इसमें पैसा तो मिलना नहीं. तो मैं बचता रहा. लेकिन आख़िर कब तक बचता. मैं लोगों की निगाह में आ गया. चूंकि मैंने पहले भी देशभक्ति के गाने लिखे थे इसलिए मुझसे कहा गया कि ऐसा ही एक गीत लिखा जाए.
उस दौर में तीन महान आवाज़ें हुआ करती थीं. मोहम्मद रफ़ी, मुकेश और लता मंगेशकर.
उसी दौरान नौशाद भाई ने तो मोहम्मद रफ़ी से 'अपनी आज़ादी को हम हरगिज़ मिटा सकते नहीं', गीत गवा लिया, जो बाद में फ़िल्म 'लीडर' में इस्तेमाल हुआ.
राज साहब ने मुकेश से 'जिस देश में गंगा बहती है' गीत गवा लिया. तो इस तरह से रफ़ी और मुकेश तो पहले ही रिज़र्व हो गए.
अब बचीं लता बाई. उनकी मखमली आवाज़ में कोई जोशीला गाना फ़िट नहीं बैठता. ये बात मैं जानता था.
तो मैंने एक भावनात्मक गाना लिखने की सोची. इस तरह से 'ऐ मेरे वतन के लोगों' का जन्म हुआ.
जिस समय प्रदीप जी ने यह गीत लिखा उस समय वे समुद्र के किनारे टहल रहे थे । उनके पास कागज न होने के कारण उन्होंने यह गीत सिगरेट के चमकीले कागज की पिछली तरफ लिखा था । जिसे लता ने पंडित जी के सामने गाया और उनकी आंखों से भी आंसू छलक आए.
साभार : बी बी सी समाचार (1990 के दशक में बीबीसी के नरेश कौशिक से हुई बातचीत के अंश)
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