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Saturday 2 April 2016

आत्मिक शांति, सेवा और आज़ादी




आत्मिक शांति, सेवा और आज़ादी

          कल विद्यालय में माह का अंतिम कार्य दिवस था साथ ही अभिभावक मीटिंग भी !! तभी नीम पर नजर गयी उस पर हमेशा बैठा दिखने वाला "काग युगल" ( जिन पर मैंने पिछले सप्ताह एक बाल कविता लिखी थी) गायब था !! जिज्ञासा हुई तो देखा एक कौआ मांझे में फंसा नीचे एक शाख से लटक रहा है, मांझे से स्वयं को छुडाने के क्रम में वो बुरी तरह उलझ चुका था मांझा उसके पंजे, पंख और चोंच में उलझ चुका था, धागे के खिंचाव से उसके जख्म भी साफ़ दिख रहे थे. साथी अध्यापिका की सहायता से उसको बंधन मुक्त कर आत्मिक  शांति काअनुभव किया ...

आज़ादी का जश्न हम
मनाते हैं पतंगें उड़ाकर,
खो देते हैं आज़ादी परिंदे  
   मांझे की जद़ में आकर !!
^^ विजय जयाड़ा 31/08/14

 

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