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Wednesday 20 April 2016

दस्यु रत्नाकर से महर्षि वाल्मीकि तक !!



दस्यु रत्नाकर से महर्षि वाल्मीकि तक !!

पुराणों के अनुसार नागा प्रजाति में जन्मे महर्षि वाल्मीकि ने अपने डाकू के जीवन के दौरान एक बार देखा कि एक बहेलिए ने सारस पक्षी के जोड़े में से नर पक्षी का वध कर दिया और मादा पक्षी जोर-जोर से ‍विलाप कर रही है। उसका मादक विलाप सुन कर वाल्मीकि के मन में करुणा जाग उठी और वे अत्यंत दुखी हो उठे।
उस दुखभरे समय के दौरान उनके मुंह से अचानक ही एक श्र्लोक निकल गया-

'मां निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः।
यत्क्रौंचमिथुनादेकम् अवधीः काममोहितम्।।'
अर्थात्- अरे बहेलिए, तूने काम मोहित होकर मैथुनरत क्रौंच पक्षी को मारा है, अब तुझे कभी भी प्रतिष्ठा प्राप्त नहीं होगी।
इस श्र्लोक के साथ ही वाल्मीकि को एक अलग ही ज्ञान प्राप्ति का अनुभव हुआ तथा उन्होंने 'रामायण' जैसे प्रसिद्ध महाकाव्य की रचना कर दी। जिसे आम भाषा में 'वाल्मीकि रामायण' भी कहा जाता है। इसीलिए वाल्मीकि को प्राचीन भारतीय महर्षि माना जाता हैं।
ऋषि वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण एक ऐसा महाकाव्य है जो हमें प्रभु श्रीराम के जीवन काल का परिचय करवाता है। जो उनके सत्यनिष्ठ, पिता प्रेम और उनका कर्तव्य पालन और अपने माता तथा भाई-बंधुओं के प्रति प्रेम-वात्सल्य से रूबरू करवा कर सत्य और न्याय धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है।
महान संत और आदिकवि महर्षि वाल्मीकि का जन्म दिवस आश्विन मास की शरद पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। सादर नमन व वंदन ..
सतो, तमो और रजो गुण, मानव में जन्मजात निहित होते हैं ..उचित शिक्षा द्वारा ज्ञान प्राप्त कर तमो गुणों को शोधित किया जाता है, फलस्वरूप एक सभ्य समाज का निर्माण होता है .. आज समाज में " रत्नाकारों" की पूरी फ़ौज है क्या वे "महर्षि" बनाना चाहेंगे ?


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