भयंकर शस्त्र : स्वातंत्र्यवीर सावरकर
‘एक समय लंदन में गुप्तचरों ने सावरकर जी को जांच-पडताल के लिए रोका और कहा, ‘‘महाशय, क्षमा कीजिए, हमें आप पर शंका है । आपके पास भयानक शस्त्र है ,ऐसी निश्चित सूचना होने से आपकी जांच-पडताल करनी है ।’’ सावरकर रुक गये, गुप्तचरों ने जांच-पडताल की । कुछ भी नहीं मिला । गुप्तचरों का प्रमुख अधिकारी सावरकर जी से बोला, ‘‘क्षमा कीजिए, अनुचित सूचना के कारण आपको कष्ट हुआ ।’’ सावरकरजी ने कहा, ‘‘आपको मिली सूचना अयोग्य नहीं है । मेरे पास भयानक शस्त्र है ।’’ जेब में रखी लेखनी (पेन) निकालकर सावरकर बोले, ‘‘ देखिए ! यह शस्त्र । इससे निकलने वाला प्रत्येक शब्द युवाओं को अन्याय के विरुद्ध लडने की प्रेरणा देता है । इन शब्दों से देशभक्तों का रक्त खौलता है तथा वे राष्ट्र के लिए प्राणों को संकट में डालकर लडने हेतु तत्पर रहते हैं ।’’एक देशी कहावत है “लिखतम के आगे बख्तम नही चलती” अर्थात हम कुछ भी कहते रहें लेकिन लेखनी ने जो लिख दिया वही महत्वपूर्ण है।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सम्मान अवश्य किया जाना चाहिए लेकिन दूसरे की स्वतंत्रता की कीमत पर नहीं !! अज्ञानता, स्वार्थसिद्धि या मौज-मस्ती वश कुछ भी लिख देना, लेखनी की ताकत को प्रदर्शित नही करता !! राष्ट्र हित में राष्ट्रीय चरित्र निर्माण हेतु लेखनी से मर्यादित, सार्थक व सशक्त शब्द प्रवाह बहे तो ही “ लेखनी “ की ताकत, समाज में सार्थक जन चेतना ला सकती है।
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