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Wednesday, 20 April 2016

एक चुनौती !!..ई-सिगरेट.!!



एक चुनौती !!..ई-सिगरेट.!!

          नशा तो किसी भी प्रकार का बुरा है लेकिन युवाओं में परंपरागत नशे से हटकर नशा करना समाज के लिए एक समस्या बनता जा रहा है, इस प्रकार के नशे से प्रत्यक्षत: गंध या नशा परिलक्षित नही होता लेकिन युवाओं को यह नशा शारीरिक रूप से खोखला कर देता है.
       इस तरह के नशे में ई-सिगरेट नया उत्पाद है.. जिसमे सामान्य सिगरेट से,छ: गुना अधिक निकोटिन का सेवन किया जाता है.. बेटरी चालित व बाल पेन या अन्य डिजाइनों में उपलब्ध इस सिगरेट के विभिन्न उपकरण पुन: उपयोग योग्य हैं !!
            2003 में एक चीनी फार्मासिस्ट होन लिक द्वारा इलेक्ट्रॉनिक सिगरेट ईजाद किया गया फिर से भरे जाने योग्य कार्ट्रिज में उपयोग के लिए अलग से बेचे जाने वाले निकोटीन घोल को कभी-कभी "ई-लिक्विड" या "ई-जूस" कहा जाता है,विभिन्न निकोटीन सांद्रता में भी घोल उपलब्ध हैं, ताकि उपयोगकर्ता सेवन किये जाने वाले निकोटीन की मात्रा खुद तय करे. शून्य निकोटीन, निम्न और मध्य स्तर की खुराकों (क्रमशः 6–8 मिग्रा/मिली और 10–14 मिग्रा/मिली) से लेकर ऊंची तथा बहुत ऊंची खुराकों (क्रमशः 16–18 मिग्रा/मिली और 24–36 मिग्रा/मिली) में सांद्रता के स्तर होते हैं. सांद्रता की दरें अक्सर ही ई-लिक्विड बोतलों या कार्ट्रिज पर छपी होती हैं, हालांकि मानक संकेत "मिग्रा/मिली" की जगह प्रायः महज "मिग्रा" लिखा होता है.
       हुक्का बार बंद किये जाने के अभियान के बाद , ई-सिगरेट अभिभावकों व समाज के लिए एक बड़ी चुनौती है !!
 
 

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