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Wednesday 27 April 2016

खेल-खेल में ...



छोटी लेकिन महत्वपूर्ण बातें

         विभागीय आदेशों के तहत हर माह स्कूल में आपदा प्रबंधन के अंतर्गत कृत्रिम परिस्थितियाँ उत्पन्न करके बच्चों को भूकंप आने या आग लगने जैसी आपदा के समय बरती जाने वाली सावधानियां व सुरक्षा उपायों के प्रति जागरूक किया जाता है.
       कुछ दशक पहले मैंने किसी से सज्जन से एक आवासीय स्कूल में दीर्घ शीतकालीन अवकाश होने पर असावधानी के कारण विद्यालय के आवासीय कक्ष में छात्र के बंद रह जाने और उसके बाद जब तक वह जीवित रहा किस प्रकार उसने जीवन जिया, छात्र द्वारा स्वयं लिखे मार्मिक वृत्तांत के सम्बन्ध में सुना था. हालांकि मैंने स्वयं ऐसा कोई वृतांत नहीं पढ़ा इसलिए इस वृत्तांत को प्रमाणिक रूप से सत्य कह सकने में असमर्थ हूँ !
        फिर भी सोचता हूँ कि इस तरह की परिस्थितियाँ विभिन्न स्वरूपों में छोटे बच्चों के सामने आती हैं और आ सकती हैं. मसलन, घर या स्कूल के कमरे में या टॉयलेट में बच्चे द्वारा खेल-खेल में कुण्डी/ चटकनी बंद करने के बाद पुन: खोल न सकने की स्थिति में ऐसी स्थिति बन सकती है !!
       आज सोचा छुट्टी से कुछ समय पहले बच्चों को इस सम्बन्ध में अभ्यास करवाया जाय ! क्योंकि विद्यालय केवल किताबी ज्ञान प्रदान करने का संस्थान नहीं !! बल्कि व्यक्ति के सर्वांगीण विकास का मंदिर है !!
       स्वयं की उपस्थिति में कृत्रिम परिस्थितियाँ उत्पन्न करके, अभ्यास हेतु खासकर उन बच्चों को चुना जो अंतर्मुखी, संकोची, शारीरिक रूप से कमजोर व कार्य करने में स्वयं पहल नहीं करते हैं. देखा गया है ऐसी स्थिति में बच्चे इतना घबरा जाते हैं कि उपजे सदमे से जीवन भर के लिए उनके मष्तिष्क में घबराहट घर कर जाती है ! अत: उद्देश्य था... ऐसी विषम परिस्थितियों में बौखलाए बिना धैर्य व हिम्मत बनाये रखकर रखकर, बाहरी सहायता उपलब्ध होने तक उपलब्ध साधनों का समुचित प्रयोग करके बाहरी सहायता उपलब्ध होने पर सहयोग करना. इस प्रकार बच्चों में विषम परिस्थितियों से निपटने हेतु स्वयं समाधान तलाशने का कौशल विकसित करना ...
        चित्र सं-1 में ईशा बेंच लगाकर चटकनी तक पहुंची, हाथों से चटकनी के न खुलने पर उपलब्ध डस्टर से चटकनी पर प्रहार करने के बाद दरवाजा खोलने में कामयाब रही. चित्र सं. 2, 3,4,5,6 में कद में कुछ छोटी व शारीरिक रूप से कमजोर शालू ने पहले बेंच लगाई. उसने भी हाथ से न खुलने पर चटकनी पर डस्टर से प्रहार किये लेकिन चटकनी नहीं खुली ! फिर उसने कक्षा में उपलब्ध कुर्सी को बेंच पर रखा और उस पर चढ़कर दरवाजे के ऊपर बनी छोटी खिड़की से बाहर आवाज लगाकर सहायता प्राप्त करने की कोशिश की !
         विषम परिस्थितियाँ का स्वरुप व उपलब्ध साधन भी अलग-अलग हो सकते हैं लेकिन अभ्यास के पीछे मुख्य उद्देश्य, ऐसी परिस्थितियों में बच्चे में आत्म विश्वास व साहस बनाये रखना था. जिससे वो बाहरी सहायता उपलब्ध होने तक धैर्य व साहस बनाये रख कर प्रयास जारी रखे और सहायता उपलब्ध होने पर प्रक्रिया में सहयोग करे..
          आपके घर में यदि छोटे बच्चे हैं तो आप भी स्वयं की उपस्थिति में खेल-खेल में इस तरह का अभ्यास करवाकर बच्चों का हौसला बढा सकते हैं .. और उनमें विषम परिस्थितियों के समय स्वयं समाधान तलाशने का कौशल विकसित कर सकते हैं .


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