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Wednesday, 20 April 2016

मानसिक बंधीकरण ..



मानसिक बंधीकरण ..

          रेगिस्तान में एक व्यक्ति कई ऊँटों को लेकर जा रहा था, रात हुई तो निकट की सराय में ठहर गया. ऊँटों को खूँटी से बाँधने के क्रम में एक ऊँट को बाँधने के लिए रस्सी कम पड़ गई ! व्यक्ति परेशान होने लगा तो सराय के मालिक ने, व्यक्ति को ऊँट के समक्ष खूँटी से बाँधने का स्वांग करने की सलाह दी !! खूँटिया गाड़ने के क्रम में हथौड़ा ठोककर आवाजें की गयी !! ऊँट के गले से रस्सी बांधकर खूँटी से बाँधने का स्वांग किया गया !!
      परिणामस्वरूप ऊँट उसी जगह बैठ गया मानो उसे खूँटी से बाँध दिया गया हो !!और सो गया ! सुबह व्यक्ति ने सभी ऊंटों को खूँटियाँ उखाड़ी और रस्सियाँ खोली. सभी ऊँट चल पड़े लेकिन वह ऊँट बैठा रहा !!
       पुन: उस ऊँट के सामने, खूँटी उखाड़ने व रस्सी खोलने का स्वांग किया गया (जिनका अस्तित्व ही न था), और वह ऊँट भी उठकर चल दिया !!
कमोवेश हम भी ऐसी ही खूंटियों और रस्सियों से मानसिक रूप में किसी न किसी रूप से विपरीत       

        मान्यताओं, दुराग्रह और झूट के प्रति इतना आसक्ति बंधित हो जाते हैं कि प्रत्यक्ष व तथ्यात्मक विश्लेषण किए बिना ही सत्य को नकारने लगते हैं !! शायद हमें स्वयं के अहम हरण की चिंता सताने लगती थी !! परिणाम स्वरुप हम अपना मन और मस्तिष्क दूसरे के पास गिरवी रख देते हैं !! और स्वयं विवेक शून्यता में जीने लगते हैं !! फलस्वरूप ऊँट के मालिक की तरह सम्बंधित पक्ष बिना प्रतिरोध के अपने हित साधने में सफल हो जाता है !! यह स्थिति तानाशाही को जन्म देती है ..
        यह स्थिति स्वयं और समाज के, सकारात्मक दृष्टि से उन्नयन में बहुत बड़ी बाधा है.
          समाज के व्यापक हित में मानसिक बंधनों को तोड़ सकने की हिम्मत दिखानी ही होगी ! तथ्यात्मक तथा भावात्मक विश्लेषण करने के साथ-साथ व्यापक दृष्टिकोण अपनाकर ही समाज को सकारात्मक दिशा दी जा सकती है।

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