ad

Wednesday 20 April 2016

मन की शांति





मन की शांति

        विद्वानों द्वारा बताए अनुसार आचरण कर थका हारा एक युवक स्वामी विवेकानंदजी के पास आया और उनसे कहने लगा, ‘‘स्वामीजी, मैं घंटो तक बंद कक्ष में बैठकर ध्यानधारणा करता हूं । परंतु मन की शांतिका अनुभव नहीं करता ।’’
        यह सुनकर स्वामीजी बोले, ‘‘सबसे पहले कक्ष का द्वार खुला रखो । अपने आस-पास रहनेवाले दुःखी, रोगी तथा भूखे लोगों को ढूंढो । अपनी क्षमतानुसार उनकी सहायता करो ।’’
इसपर उस युवक ने प्रतिप्रश्नथ किया, ‘‘किसी रोगी व्यक्ति की सेवा करते हुए यदि मैं ही बीमार पड़ गया तो ?’’
      विवेकानंद जी ने कहा, ‘‘तुम्हारी इस कुशंका से मेरे यह ध्यान में आया है कि तुम्हें प्रत्येक अच्छे कार्य में कुछ ना कुछ अनिष्ट दिखता हैं । इसीलिए तुम्हें शांति नहीं मिलती । शुभकार्य हेतु विलंब नहीं करते तथा उनमें दोष भी नहीं निकालते । यही मनःशांति प्राप्त करनेका निकटतम मार्ग है ।“
      आज समाज में कमोवेश हर अच्छे कार्य में छिद्रान्वेषण व दोष अन्वेषण की प्रवृत्ति का विस्तार हो रहा है. !! जो समाज के लिए घातक है. हर अच्छे कार्य का समाज हित तत्पश्चात व्यक्तिहित में निष्पक्ष, दीर्घावधिक तथा सामयिक मूल्यांकन आवश्यक है तभी समाज में शांति और प्रगति संभव है. केवल ‘किन्तु‘ और ‘परन्तु‘ की मानसिकता उन्नयन का नही बल्कि अवनयन का मार्ग प्रशस्त करती है.

No comments:

Post a Comment