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Wednesday, 20 April 2016

अल्प ज्ञान !


       आपने एक कथा अवश्य सुनी होगी ..तीन मित्र एक सिद्ध पुरुष के पास पहुंचे और कहा .” महाराज,तमाम तरह के यत्न किये. बहुत विद्वानों के पास गए लेकिन हमें कहीं ज्ञान प्राप्त नही हुआ. आप हमारे ज्ञान मार्ग को प्रशस्त कीजियेगा.”
     सिद्ध पुरुष ने कहा. “ मेरे पास कोई चमत्कार नही जो पल भर में तुमको ज्ञान प्राप्त हो सके. पहले मैं तुम तीनों की परीक्षा लूँगा. “
     सिद्ध ने तीनों को कौवे पर निबंध लिखने को कहा..
     पहले ने लिखा ..कौवे के बारे में मुझे कुछ लिखना नही आता मैं तो निरा गंवार और अनजान हूँ ..
     दूसरे ने लिखा .कौवा ऐसा पक्षी है जिसकी तीक्षण बुद्धि होती है उस जैसा गुण यदि इंसान पा ले तो कभी दुखी नही रह सकता .
     तीसरे ने लिखा .. कौवा रंग में जिस प्रकार काला होता है उसी प्रकार उसकी नियत में भी खोट होता है जो सुबह-सुबह उसे देख ले उसका पूरा दिन बेकार चला जाता है ..
यह सब पढ़ कर सिद्ध ने फैसला दिया .. ‘कौवे के बारे में जो नहीं जानता उस निरे अज्ञानी को और जो उसमें दूरदृष्टि देखता है उस परम बुद्धिमान को मैं अपना शिष्य बनाऊंगा जिसने कौवे में केवल दोष देखे उसमें एक भी गुण नही देख पाया उस अल्पज्ञानी को मैं ज्ञान नही दे पाऊंगा.

       अल्पज्ञानी के मस्तिष्क में अल्पज्ञान के रुप में अधकचरे ज्ञान का समावेश होता है जो किसी भी बात को उसके मस्तिष्क तक पहुंचने ही नहीं देता. वह अर्जित आधे-अधूरे ज्ञान को पूर्ण मान कर उसका प्रदर्शन करने लगता है और इस क्रम में यदि उसे कुछ अज्ञानियों या अल्पज्ञानियों का समर्थन प्राप्त हो जाता है तो उसमे धीरे-धीरे ज्ञान का अहंकार घर कर जाता है परिणाम यह होता है कि वह किसी की बात सुनना या समझना ही नही चाहता.
      कमोवेश, आज समाज में ऐसे ही अल्पज्ञानियों (स्वयंभू भगवान) की अधिकता दिखायी देती है जो स्वयम तो माया में आकंठ डूबे हुए हैं लेकिन माया से विरक्त होने का वाचन करते हैं !! विडंबना यह है कि ऐसे अल्प ज्ञानियों से,ज्ञान प्राप्त करने हेतु अज्ञानियों व अल्पज्ञानी की कतारें लगी होती हैं !! इसका परिणाम क्या होता है इससे हम सब अनविज्ञ नही !! ^^ विजय 


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