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Wednesday, 20 April 2016

कसौटी



       तस्वीर आधारित कहानी आपने अवश्य सुनी या पढ़ी होगी ...हाथी के विभिन्न अंगों को छूकर चारों दृष्टिहीनों ने जिस अंग को छुआ उसी प्रकार हाथी के आकार का अनुमान लगा लिया ..जब वे आपस में हाथी के आकार पर चर्चा करने लगे तो चारों अपने अनुसार हाथी का आकर होने की बात पर अड़ने लगा.
       चारों दृष्टिहीनों में जूतम-पैजार होने लगी यह देख पास ही गुजरते गांव के एक ताऊ ने पहले तो उन्हें लड़ते झगड़ते छुड्वाया फिर डाक्टर के पास ले जाकर उनकी आँखों का ओपरेशन करवाया | जब चारो दृष्टिहीनों की आँखों की आँखों में रोशनी आ गयी तब ताऊ उनको एक हाथी के सामने ले गया और बोला - ये देखो हाथी ऐसा होता है . तब अंधों को पता चला कि उनके हाथ में तो हाथी का अलग- अलग एक एक अंग हाथ आया था और वो उसे ही पूरा हाथी समझ रहे थे.|

      कमोवेश उसी प्रकार आजकल कुछ लोग,आधे-अधूरे, सुने-सुनाये एकांगी ज्ञान या विकृत व पूर्वाग्रह ग्रसित मन:स्थिति वाले लेखक की पुस्तक या लेख को पढ़ कर स्वयं को " ज्ञानी " समझ लेते हैं. इसका कारण उनको विरासत में मिली, खुद की संकीर्ण व कुंठित मानसिकता भी हो सकता है !!
       फलस्वरूप वे "ज्ञानी" महपुरुषों व गुज़रे समय के महान नेताओं के व्यक्तित्व व कृतित्व के साथ-साथ साथियों की पोस्ट भी नकारात्मक,अभद्र,अशालीन, अमर्यादित व मूर्खतपूर्ण टिप्पणियां करके स्वयं को "गौरवान्वित" महसूस करते हैं। इस तरह वे "ज्ञानी" स्वयं के पाल्यों के साथ-साथ समाज में वर्तमान पीढ़ी को "मुफ्त में" दिग्भ्रमित व असंस्कारित करने का ही कार्य कर रहे हैं !!
        समाज के हर हर क्षेत्र में इन "तथाकथित ज्ञानियों" के सानिध्य में "अंथभक्तों" की "जुगलबंदी", इन ज्ञानियों को ईंधन देने का काम कर रही है और उनका हौसला बढ़ा रही है !
       विवेकानन्द जी ने कहा था यदि हमें बिना स्वयं मूल्यांकन किए ही किसी का अनुसरण करना होता तो कुछ लोगों को ही ज्ञानेन्द्रियाँ मिली होती और शेष उनका अनुसरण करते !!
        सामाजिक सौहार्द की दृष्टि से यह एक अशोभनीय कृत्य है, जो नकारात्मक ध्रुवीकरण को पोषित करता है। ऐसे लोग समाज को तब तक दिग्भ्रमित करते रहेंगे जब तक इन्हें कोई “ ताऊ “ नहीं मिल जाता !!!
     ये लोग या तो अज्ञानतावश ऐसा करते हैं या स्वार्थवश ऐसा कृत्य करते हैं। शायद ऐसे लोगों में तुलनात्मक अभिवृत्ति का नितांत अभाव होता है !! उन में इतना समझने का विवेक नही कि तत्कालीन देश काल और परिस्थितियाँ कहीं न कहीं निर्णयों को प्रभावित करती हैं।
      और न ही ये " ज्ञानी" पोस्ट को ठीक से समझने का प्रयास करते हैं। हर जगह अपने "पांडित्य" प्रदर्शन की "होड़" में रहते हैं !!
        फेसबुक पर देखता हूँ, कमोवेश हर कोई (उनमें मैं भी शामिल हूँ) स्वयं को " उठाईगीरी " से प्राप्त सूचना के आधार पर, विषय प्रज्ञ साबित करने की होड़ में है!!
      लेकिन __
       किसी भी स्रोत से प्राप्त ज्ञान या सूचनाओं को भावनात्मक पूर्वाग्रह त्याग कर .... सत्यता व व्यवहारिकता की कसौटी पर कसना आवश्यक है। तभी वह ज्ञान या सूचना समाज हित में उपयोगी है। ^^ विजय 


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