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Tuesday 12 April 2016

“ राजा होना सुखी होने का साधन नहीं है “



“ राजा होना सुखी होने का साधन नहीं है “ .. चाणक्य

        आज छुट्टी का दिन था, भ्रमण को लेकर उहापोह में था !! तभी श्री सानंद रावत जी का फेसबुक पर ही निमंत्रण मिला और पहुँच गया सीरी फोर्ट ऑडिटोरियम !!
      दरअसल यहाँ वार्षिक शिक्षक सम्मलेन 2016 के अंतर्गत मनोज जोशी कृत व निर्देशित तथा मिहिर भूता रचित नाटक, “ चाणक्य “ का "भारतीय धरोहर" संस्था द्वारा 975 वीं प्रस्तुती के तौर पर मंचन होना था. शिक्षा व संस्कृति से जुड़े स्वदेशी व विदेशी शिक्षाविदों के सानिध्य में जोशी जी के कुशल निर्देशन व पात्रों के जीवंत अभिनय के साथ-साथ कर्णप्रिय संस्कृत निष्ठ हिन्दी में रोचक, प्रभावशाली व धाराप्रवाह संवादों ने खचाखच भरे प्रेक्षागृह में दर्शकों को ढाई घंटे तक सम्मोहित रखा.
         लगभग 2300 साल पुराना ऐतिहासिक चरित्र, चाणक्य, सभी धर्मों से ऊपर, राष्ट्रधर्म का भाव उत्पन्न करने के लिए आज भी उस काल जितना ही सार्थक व प्रासंगिक तो है ही साथ ही राष्ट्र निर्माण में शिक्षकों के योगदान के संदर्भ में सभी शिक्षकों के लिए प्रेरणास्रोत भी है..
         राष्ट्र को संगठित रखने में एक शिक्षक की महत्वपूर्ण भूमिका को प्रदर्शित करते इस नाटक में ढाई घंटे की अल्प अवधि में चाणक्य के व्यक्तित्व व कृतित्व को जिस खूबसूरती और प्रभावशाली तरीके से प्रदर्शित किया गया वह निश्चित ही काबिले तारीफ़ है.
        रंगमंच, अभिनय के किसी अन्य मंच की तुलना में सबसे चुनौतीपूर्ण होता है, जहाँ रिटेक की कोई गुंजाइश नहीं होती ! दर्शक, अभिनेता के एकदम सामने होते हैं ! और अभिनेता को अपना सर्वोत्तम एक बार में ही प्रस्तुत करना होता है ! नाटक के सभी पात्रों का अभिनय जीवंत, स्वाभाविक, प्रभावशाली व मंत्रमुग्ध कर देने वाला था। नाटक के मुख्य चरित्र, चाणक्य का किरदार निभा रहे पात्र ने अपने किरदार को बखूबी निभाकर अपने अभिनय से दर्शकों के दिल को छू लिया. पार्श्व संगीत ने दृश्यों को जीवन्तता प्रदान करने में कोई कोर कसर बाकी नहीं छोड़ी। पार्श्व ध्वनि के माध्यम से सूत्रधार द्वारा नाटक की विभिन्न कड़ियों को सफलतापूर्वक जोड़कर लय बनाए रखने का प्रयास सराहनीय था। मंच सज्जा व वेशभूषा उस काल खंड वातावरण निर्मित करने में सफल रहा।
ट्रिनिडाड (वेस्ट इंडीज) से आये शिक्षाविद् व ट्रिनिडाड में विश्व विद्यालय के उप कुलपति, सन्यासी महोदय के मुखारविंद से सुनकर आश्चर्य हुआ कि वहां के विश्व विद्यालयों में वेदों का अध्ययन अनिवार्य है साथ ही अमेरिका में प्राथमिक कक्षाओं में संस्कृत पढाई जा रही है ! उनके इस कथन ने सोचने पर भी मजबूर किया कि भारत में रह कर यहाँ की संस्कृति की गहराई और ऊँचाई का आभास नहीं होता !! यह आभास विदेश में रहकर ज्यादा करीब से होता है !!
        नाटक में चाणक्य द्वारा चन्द्रगुप्त को ये निर्देशित करना कि .. “ राजा होना सुखी होने का साधन नहीं है “ संक्षिप्त में बहुत गहरा और सार्थक सन्देश देने में सफल रहा.
कुल मिलाकर आयोजन सार्थक व प्रभावशाली संदेश दे सकने में पूर्ण सफल रहा।
नाट्य मंचन पश्चात नि:शुल्क भोजनोपरान्त मित्रों के साथ कुछ सुखद पलों की तस्वीर में मेरे दायें श्री सानंद रावत (प्रधानाचार्य), बाएं श्री मंगल कसाना व श्री चेतन सहरावत अध्यापक मित्र हैं। 


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