निल बट्टे सन्नाटा !
दिल को छूती शैक्षणिक फिल्म : निल बट्टे सन्नाटा !
मैं बॉलीवुड की ग्लैमर से लवरेज और जमीनी हकीकत से दूर फिल्मों को देखने का शौक़ीन बिलकुल नहीं !! लेकिन शिक्षक होने के नाते आपको सपरिवार इस टैक्स फ्री फिल्म " निल बट्टे सन्नाटा" को देखने की सलाह अवश्य देना चाहूँगा ! आगरा की पृष्ठभूमि में बनी पहली बार फिल्म निर्देशक के रूप में अश्विनी अय्यर तिवारी द्वारा निर्देशित फिल्म के हर किरदार में आप स्वयं को जीवंत अनुभव करेंगे. हालांकि फिल्म में बॉलीवुड के सुपर स्टार अभिनेता/अभिनेत्री की चमक-दमक न होने से अभी दर्शक कम आ रहे हैं लेकिन व्यक्तिगत रूप से मुझे यह फिल्म कुछ मायनों में आमिर खान की लोकप्रिय फिल्म " तारे जमीं पर " से श्रेष्ठ महसूस हुईबॉलीवुड फिल्म के ग्लैमर, लकधक और जमीनी हकीकत से दूर फिल्मों से इतर सुपर स्टार अभिनेताओं/अभिनेत्रियों की अनुपस्थिति में इस फिल्म में निम्न आय वर्ग से जुडी विपरीत पारिवारिक व सामजिक परिस्थितियों से जूझती पृष्ठभूमि में पेशे से बाई, माँ, चंदा सहाय (स्वरा भास्कर ) का अपनी बेटी अपेक्षा सहाय (रिया शुक्ला) के भविष्य को लेकर प्यार व त्याग को बहुत संजीदगी व सहजता से प्रदर्शित किया गया है.
मुख्य भूमिका में, माँ (स्वरा भास्कर ) , बेटी (रिया शुक्ला), मालकिन (रत्ना पाठक शाह) व प्रधानाचार्य ( पंकज त्रिपाठी) ने अपने किरदार को बहुत सहजता से निभाया है.
100 मिनट में जमीनी हकीकत से रूबरू करवाती जार प्रोडक्शन बैनर तले बनी इस फिल्म में आपसी झगड़ों, स्कूल में बाल सुलभ व्यवहार और एक कामवाली बाई की निजी जिंदगी की झलकियों व घर से लेकर स्कूल और गली-कूचे के दृश्यों को अश्विनी तिवारी ने काफी अच्छे तरह से फिल्माया है और रोजमर्रा की जिंदगी के कई पलों को बखूबी पर्दे पर उतारा है। .बॉलीवुड फिल्मों की ट्विस्ट भरी कहानी से हटकर इस फिल्म में दिल को छूती कहानी को बहुत सामान्य ढंग से व निरंतरता के साथ प्रदर्शित किया गया है, जो दर्शकों को अंत तक बांधे रखती है. हंसने-हसाने के दृश्यों के साथ ये फिल्म, दर्शकों को कई अवसरों पर भावुक हो जाने पर भी मजबूर कर रही है. साथ ही ये फिल्म समाज व्याप्त शिक्षा प्राप्त करने के में असमान व अपर्याप्त अवसरों पर तीखा प्रहार भी है अगर आप रोजमर्रा की जिंदगी के हिस्सों को छू जाने वाली फिल्मों को देखना पसंद करते हैं, तो यह फिल्म जरूर देखिएगा.
सोचता हूँ बच्चों के साथ-साथ अभिभवकों के लिए भी शिक्षाप्रद, बाल मनोविज्ञान को उकेरती और सार्थक सन्देश देती इस फिल्म को उन अभिभावकों को अपने पाल्यों के साथ अवश्य देखना चाहिए जिनके पाल्य अपने अभिभावकों के त्याग व अपने भविष्य को लेकर संजीदा नहीं हैं. यदि शिक्षा विभाग द्वारा सरकारी स्कूल के चौथी से दसवीं कक्षा तक के बच्चों को इस फिल्म को दिखाने की नि:शुल्क व्यवस्था की जाय तो बहुत अच्छा होगा !
मैंने तो आज अपने व आस-पड़ोस के बच्चों की पूरी टीम को इस फिल्म को देखने हेतु प्ररित कर लिया है. आप भी प्रयास कीजियेगा ..
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