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Friday, 29 April 2016

साष्टांग दंडवत प्रणाम



साष्टांग दंडवत प्रणाम

                  साष्टांग दंडवत प्रणाम अभिवादन की चरम स्थिति है. दंड (बांस) की तरह जमीन पर सीधे लेटकर किये जाने वाले अभिवादन को साष्टांग दंडवत कहते हैं. इसमें शरीर के छ: अंगों ( महा मर्म या अति संवेदनशील अंग) का स्पर्श धरती से होता है. एक साथ इन अंगों का धरती पर स्पर्श होना पूर्ण समर्पण,श्रद्धा और एकाग्रता दर्शाता है
               दंडवत प्रणाम की मुद्रा में व्यक्ति सभी इंद्रियों अपने श्रद्धेय को समर्पित होता है. श्रद्धेय दंडवत मुद्रा में देखता है, तो स्वत: ही उसके मनोविकार या किसी भी प्रकार की दूषित मानसिकता धुल जाती है ! और उसके पास रह जाता है, केवल त्याग, बलिदान या अर्पण.
             दंडवत प्रणाम की मुद्रा में हम निर्विकार,निर्बाध, निर्विचार केवल श्रद्धेय की ऊर्जा शक्ति का स्वयं में आरोहण या प्रवेश करा रहे होते हैं ! और इसमें कोई संदेह नहीं, कि दंडवत प्रणाम करने के उपरांत व्यक्ति कई गुणी शक्ति और ऊर्जा से परिपूर्ण होकर उठता है.
            कई मंदिरों, तीर्थो या उपासना स्थलों पर दंडवत परिक्रमा करने की परंपराएँ बनाई गई हैं, उनके पीछे भी यही वैज्ञानिकता है, कि व्यक्ति निर्विकार भाव से वहां व्याप्त सकारात्मक विद्युत-चुबंकीय शक्ति को तेजी से आत्म-सात् करे, और उसमें संघर्ष करने, सहने तथा उत्साहित होकर कार्य करने की क्षमता विकसित हो जाए .
             यदि कोई शिष्य अपने गुरू के समक्ष चरण स्पर्श या दंडवत प्रणाम नहीं करता है, तो उसमें से विवेक शक्ति का ह्रास होने लगता है.अर्थात् जिनमें देने की शक्ति होती है, उनमें अपने संकल्प के बल पर लेने की शक्ति भी स्वत: विद्यमान रहती है, जो अनायास है, प्रतिकूल कार्य करने को विवश हो जाती है
गुरू चरण सेवा, गुरू चरण स्पर्श, गुरू चरण पूजा, गुरू चरण वंदन, गुरू चरण स्तवन आदि अलग विषय हैं, जिनमें गुरू की रहस्यात्मक शक्तियों का शिष्य में हस्तांतरण ही है.
             शास्त्रों के अनुसार दण्डवत प्रणाम के समय चादर कुरता कमीज बनियान आदि को उतार देना चाहिए.महिलाओं द्वारा लेटकर प्रणाम नहीं करना चाहिए.
             आजकल के भाग दौड़ भरे जीवन मे साष्टांग दंडवत प्रणाम से अभिवादन करना सरल नही, साथ ही इस तरह के महापुरुष मिलना भी दुर्लभ ही है लेकिन माता -पिता, गुरु और देवता सदैव साष्टांग दंडवत प्रणाम के पात्र रहे हैं.


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