ज्ञान सूचना संग्रह तक ही सीमित ही सीमित नहीं ! ज्ञान को जीने का साधन बनाना आवश्यक है ..
जानकारियां ज्ञान में तभी परिवर्तित हो पाती हैं जब उसे व्यव्हार में लाया जाए.. विभिन्न धर्मो से सम्बंधित धर्मशास्त्रों में अलग-अलग क्षेत्रों से सम्बंधित महत्वपूर्ण जानकारिय हैं .कदाचित हम उनका सूचना के रूप में संग्रह तो कर लेते हैं लेकिन व्यवहार में लाने का प्रयास नही करते !
विज्ञान भी किसी बात की सत्यता को व्यावहारिक होने पर ही स्वीकार करता है जबकि शास्त्रोक्त जानकारियां सिर्फ मोड़ हैं अंतिम पड़ाव नहीं ! इनमें संकेत है सबकुछ नहीं है ! ये साधन हैं साध्य नहीं ! ये मात्र इशारे हैं ईश्वर नहीं हैं ! अत: अपने धार्मिक इतिहास से केवल सूचना ही नहीं समझ लेने की क्रिया जारी रखी जाए तो उत्तम होगा.
हम विभिन्न धर्म ग्रंथों को तो घर में श्रद्धा पूर्वक स्थान देते है लेकिन उनमे वर्णित जीने के तरीकों को आत्मसात नही कर पाते !!धर्मशास्त्रों से जानकारियों लेकर मानस पटल पर सूचनाये अंकित करना ज्ञान नही यदि ऐसा किया तो हाथ कुछ नहीं लगेगा, असल बात, इन जानकारियों के माध्यम से जीने की तैयारी कर उन तरीकों को आत्मसात करना है !
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